कहानी- प्रणय परिधि 4 (Story Series-Pranay Paridhi 4)

जान-बूझकर ही मैं लाॅन में खड़ी भीगती रही, इस आस में कि शायद राहुल मुझे अंदर आने के लिए कहे, किंतु उसने स्वयं न आकर जीजू को मुझे अंदर लिवा लाने भेज दिया.

अब मुझे बेहद पछतावा हो रहा था. उसके छोटे-छोटे हंसी-मज़ाक मुझे चोट पहुंचाने के लिए तो नहीं थे, फिर क्यों मैंने उसका दिल दुखाया.

 

 

‘‘दीदी, उसे अच्छा लगे या बुरा, मुझे क्या फ़र्क पड़ता है? मैं उसकी परवाह क्यों करुं?”
‘‘ऐसा मत कह अनु. राहुल बहुत अच्छा लड़का है. इतना बड़ा डाॅक्टर है, फिर भी कितना डाउन टू अर्थ.’’ ‘‘प्लीज़ दीदी, मुझसे उसकी वकालत मत करो.” क्रोध में दनदनाती मैं बाहर आई. यकायक मेरे पांव जड़ हो गए.
अचम्भित-सी रह गई थी मैं उसे वहां खड़े देखकर. वह यहां कब आ गया था? मेरी नज़र उससे टकराई. उसकी आंखों में सिमट आए दर्द ने मुझे बता दिया था कि वह सब कुछ सुन चुका था. इसके बाद वह रुका नहीं और वहां से चला गया. उसके दिल को चोट पहुंचाकर मुझे प्रसन्न होना चाहिए था, किंतु ऐसा हुआ नहीं. मन पर एक बोझ-सा महसूस होने लगा.
क्यों उदास हो रही थी मैं, समझ नहीं पा रही थी. बेमन से मैं तैयार होकर बाहर आई. सभी मेहमान आ चुके थे. दीदी और जीजू के साथ खड़ा वह सबका वेलकम कर रहा था. मेरी नज़रें बार-बार उसकी ओर उठ रही थीं. उसके नज़दीक जाने का मैंने प्रयास किया, किंतु वह मुझसे अनजान बना रहा. पार्टी समाप्त हो गई. एक-एक करके सभी मेहमान जाने लगे. अब तक हल्की बूंदाबांदी शुरु हो गई थी. जान-बूझकर ही मैं लाॅन में खड़ी भीगती रही, इस आस में कि शायद राहुल मुझे अंदर आने के लिए कहे, किंतु उसने स्वयं न आकर जीजू को मुझे अंदर लिवा लाने भेज दिया.
अब मुझे बेहद पछतावा हो रहा था. उसके छोटे-छोटे हंसी-मज़ाक मुझे चोट पहुंचाने के लिए तो नहीं थे, फिर क्यों मैंने उसका दिल दुखाया.
सुबह तक मुझे बुखार हो गया था. दीदी चिन्तित थीं, ‘‘पहली बार मेरे पास आई है और बीमार पड़ गई. क्या ज़रुरत थी बारिश में भीगने की?”
‘‘बस दीदी, यूं ही मन कर रहा था.’’
‘‘तू भी न अनु, अभी बच्ची ही है. कुछ भी नहीं समझती.’’ गर्म दूध और मेडिसिन देकर वह किचन में चली गईं. मैंने दूध पी लिया और मेडिसिन चुपचाप फेंक दी. बीमारी की वजह से ही सही, उसे मेरे पास आना तो पड़ेगा.
रात तक बुखार काफ़ी तेज हो गया. अर्द्धमूर्छित अवस्था में रात कैसे कटी मुझे कुछ नहीं पता. सुबह आठ बजे सोकर उठी, तो दीदी को चिन्तित मुद्रा में पास बैठा पाया.
‘‘अब कैसी है अनु?”
‘‘ठीक हूं दीदी.’’

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‘‘जानती है, कल सारी रात राहुल एक मिनट के लिए भी नहीं सोया. तेरे पास बैठा माथे पर गीली पट्टियां रखता रहा.’’ मन को कुछ राहत मिली, चलो मेरी फ़िक्र तो हुई उसे.. थैंक्स बोलने के बहाने से क्या उसे अपने कमरे में बुलाऊं, हां, यह ठीक रहेगा.
‘‘दीदी, आप उसे यहां बुला दो न…”

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…


रेनू मंडल

 

 

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