कहानी- प्रतिध्वनि 3 (Story Series- Pratidhwani 3)

“तूफ़ान बहुत भयंकर था, किंतु इतने दबे क़दमों से आया कि मैं जान ही नहीं सका… नौकरी में लगते ही मेरी शादी हो गई. सुंदर-सुशील पत्नी की सबने तारीफ़ की. सबका उसकी तारीफ़ करना मुझे अच्छा लगा, क्योंकि वह मेरी थी. किंतु मन के किसी कोने में यह भाव भी था कि मैं इतना योग्य हूं, तो मुझे अच्छी पत्नी मिलनी ही चाहिए थी. जिसकी सब तारीफ़ कर रहे थे, उसकी तारीफ़ में मेरे मुंह से एक शब्द भी शायद ही कभी निकला होगा. मेरे मुंह से अपने लिए प्रशंसा के बोल सुनने के लिए या फिर मेरी ख़ुशी के लिए वह पूरी तरह से मेरे रंग में रंगती गई. वह एक आदर्श गृहिणी, सुघड़ बहू, ममतामई मां के रूप में मिसाल बन गई. परंतु मेरा पुरुष अहम् कभी प्रशंसा के दो बोल नहीं कह पाया.”

“हां अंकल, यह तो बिल्कुल सही कह रहे हैं आप. सपना तो सब यही देखते हैं.” विवेक सहमति में सिर हिलाता हुआ बोला.
“अच्छा विवेक, यह बताओ ये सब क्या हम स़िर्फ अपने लिए करते हैं?”
“स़िर्फ अपने लिए क्यों अंकल? हम अपने लिए, अपने परिवार, अपने मां-बाप, अपने बीवी-बच्चों सबके लिए इन उपलब्धियों को पाना चाहते हैं. हमारी हर छोटी-बड़ी सफलता में सबसे ज़्यादा यही लोग ख़ुश होते हैं.”
“बिल्कुल ठीक कह रहे हो विवेक. दरअसल, यही जीवन का सच है जिसे हम जान ही नहीं पाते या जानने की कोशिश भी नहीं करते… विवेक, जिस सपने की बात हम कर रहे थे, उस सपने या लक्ष्य से आगे भी एक लक्ष्य है, जो हमारे जीने का मक़सद है.”
“अंकल, क्या है वह मुख्य लक्ष्य?”
“इन अपनों की ख़ुशी.”
दोनों कुछ पल मूक एक-दूसरे की आंखों में देखते रहे. फिर अपने स़फेद बालों पर हाथ फेरते हुए वे बोले, “सुनने में बात बड़ी साधारण लग रही है न? लेकिन इन दो सालों में मैंने जाना है कि यही जीवन का सत्य है. विवेक, इन अपनों का सुख, इनकी ख़ुशी ही है, जो हमारी अंतरात्मा को तृप्ति देती है… हमारा पद, मान-सम्मान, सफलता सब हमें इसीलिए अच्छा लगता है, क्योंकि उससे ये ‘हमारे अपने’ ख़ुश होते हैं… विवेक, मेरे पास बहुत बड़ा पद है, मोटर, गाड़ी, बंगला, नौकर-चाकर, नाम, बैंक बैलेंस सब है. लेकिन ये सब मेरे किसी काम के नहीं हैं, क्योंकि इनका सुख उठानेवाला कोई नहीं है. जानते हो, मेरा ऑफिस से वापस घर जाने का मन ही नहीं होता है… किसके लिए लौटूं? उस विशाल कोठी के लिए या उसमें रखे फर्नीचर के लिए? विवेक, घर दीवारों से नहीं, परिवार से बनता है और जीवन रिश्तों से सजता है.”

यह भी पढ़े: 20 वास्तु टिप्स, जो दूर करेंगे वैवाहिक जीवन की परेशानियां 
“अंकल, आपके दर्द को मैं महसूस कर रहा हूं. लेकिन जानना चाहता हूं, कौन-सा तूफ़ान आपकी बगिया को उजाड़ गया?”
विराट अंबर पर से दृष्टि हटाए बिना मेहरा साहब बोले, “तूफ़ान बहुत भयंकर था, किंतु इतने दबे क़दमों से आया कि मैं जान ही नहीं सका… नौकरी में लगते ही मेरी शादी हो गई. सुंदर-सुशील पत्नी की सबने तारीफ़ की. सबका उसकी तारीफ़ करना मुझे अच्छा लगा, क्योंकि वह मेरी थी. किंतु मन के किसी कोने में यह भाव भी था कि मैं इतना योग्य हूं, तो मुझे अच्छी पत्नी मिलनी ही चाहिए थी. जिसकी सब तारीफ़ कर रहे थे, उसकी तारीफ़ में मेरे मुंह से एक शब्द भी शायद ही कभी निकला होगा. मेरे मुंह से अपने लिए प्रशंसा के बोल सुनने के लिए या फिर मेरी ख़ुशी के लिए वह पूरी तरह से मेरे रंग में रंगती गई. वह एक आदर्श गृहिणी, सुघड़ बहू, ममतामई मां के रूप में मिसाल बन गई. परंतु मेरा पुरुष अहम् कभी प्रशंसा के दो बोल नहीं कह पाया. यद्यपि उसके चेहरे पर छाई मृदुल मुस्कान मुझे मोह लेती थी. बच्चों के बीच खिलखिलाती वह बहुत सुंदर लगती थी. मैं उसे हमेशा ख़ुश देखना चाहता था, परंतु मेरा हाव-भाव यही दर्शाता था कि वह अच्छी है, तो कौन-सी बड़ी बात है. अच्छा तो उसे होना ही चाहिए, आख़िर मेरी पत्नी जो है.”
मेहरा साहब विवेक की ओर मुड़े और बोले, “आज जैसे तुमने अपनी पत्नी के साथ टहलने की इच्छा का गला घोट दिया था, मैं भी ऐसा ही था. मेरी पत्नी को संगीत पसंद था और मुझे बिलकुल नहीं. वह जब भी संगीत सुनती, मैं यह कहकर बंद करवा देता, क्या हल्ला मचा रखा है. वह कुछ गुनगुनाती तो मेरे मुंह से निकलता, क्यों बच्चों की पढ़ाई डिस्टर्ब कर रही हो?
अब सोचता हूं विवेक, तो लगता है ऐसा मैंने क्यों किया?…”

        नीलम राकेश

अधिक कहानी/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां पर क्लिक करें – SHORT STORIES

[amazon_link asins=’B074HN16WX,8170166403,8177696734,B01EKQR3PY’ template=’ProductCarousel’ store=’pbc02-21′ marketplace=’IN’ link_id=’948328fa-1d46-11e8-ab94-c1bba04a3c9e’]

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

कहानी- इस्ला 4 (Story Series- Isla 4)

“इस्ला! इस्ला का क्या अर्थ है?” इस प्रश्न के बाद मिवान ने सभी को अपनी…

March 2, 2023

कहानी- इस्ला 3 (Story Series- Isla 3)

  "इस विषय में सच और मिथ्या के बीच एक झीनी दीवार है. इसे तुम…

March 1, 2023

कहानी- इस्ला 2 (Story Series- Isla 2)

  “रहमत भाई, मैं स्त्री को डायन घोषित कर उसे अपमानित करने के इस प्राचीन…

February 28, 2023

कहानी- इस्ला 1 (Story Series- Isla 1)

  प्यारे इसी जंगल के बारे में बताने लगा. बोला, “कहते हैं कि कुछ लोग…

February 27, 2023

कहानी- अपराजिता 5 (Story Series- Aparajita 5)

  नागाधिराज की अनुभवी आंखों ने भांप लिया था कि यह त्रुटि, त्रुटि न होकर…

February 10, 2023

कहानी- अपराजिता 4 (Story Series- Aparajita 4)

  ‘‘आचार्य, मेरे कारण आप पर इतनी बड़ी विपत्ति आई है. मैं अपराधिन हूं आपकी.…

February 9, 2023
© Merisaheli