कहानी- सात सुरों की छींक 5 (Story Series- Saat Suron Ki Cheenk 5)

 

उसने धीमे स्वर में कहा, ‘‘अपने बाकी भाइयों से कहिए कि अब वे अपनी बदूंकें हटा लें.”
‘‘कैसे भाई और किसके भाई? हमारे मियांजी तो अपनी मां-बाप की एकलौती संतान हैं और बंदूक तो छोड़ो उन्होने कभी सब्ज़ी काटनेवाला चाकू भी अपने हाथ में नहीं पकड़ा होगा.’’ नक्कू मियां की पत्नी मुस्कुराई.
‘‘लेकिन वे सात…’’ चोर चाहकर भी अपना वाक्य पूरा न कर पाया.

 

 

 

 

… नक्कू मियां की बहादुरी पर उनकी पत्नी ने आकर जब उनकी पीठ ठोंकी, तो प्रयास कर रोकी गई उनकी छींक निकल गई. और एक बार जब छींक शुरू हुई, तो फिर शुरू ही हो गई. नक्कू मियां जब अपनी सात सुरों की छींकों का दो चक्र पूरा कर चुके, तब चोर को कुछ शक हुआ.
उसने धीमे स्वर में कहा, ‘‘अपने बाकी भाइयों से कहिए कि अब वे अपनी बदूंकें हटा लें.”
‘‘कैसे भाई और किसके भाई? हमारे मियांजी तो अपनी मां-बाप की एकलौती संतान हैं और बंदूक तो छोड़ो उन्होने कभी सब्ज़ी काटनेवाला चाकू भी अपने हाथ में नहीं पकड़ा होगा.’’ नक्कू मियां की पत्नी मुस्कुराई.
‘‘लेकिन वे सात…’’ चोर चाहकर भी अपना वाक्य पूरा न कर पाया.
‘‘वे सात सुरों की छींक तो मेरे मियांजी की ही थीं. अभी-अभी उसके दो चक्र तुमने भी सुने हैं, फिर भी मूर्खों की तरह प्रश्न पर प्रश्न किए जा रहे हो…’’ नक्कू मियां की पत्नी खिलखिलाकर हंस पड़ी.

 

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चोर के हाथ-पैर बांधे जा चुके थे. वह मन मसोसकर रह गया. नक्कू मियां ने उसे पुलिस को सौंप दिया. नक्कू मियां की जिस नाक से उनकी पत्नी चिढ़ती थी, उसी नाक के कारण जब दो लाख रुपए का ईनाम मिला, तो उसने उन्हें सताना छोड़ दिया. इन रुपयों से उसने सबसे पहले ढेर सारा रेश्मी रूमाल ख़रीदें और रोज़ सुबह सबसे पहले उनकी नाक को साफ़ करती. अब अगर भूल से भी कभी मिर्च घर में आ जाती, तो वह फौरन उसे बाहर फेंक देती.
पूरे शहर में अब नक्कू मियां की छींक के साथ-साथ उनकी बहादुरी के डंके भी बजने लगे थे. छोटा-बड़ा जो भी मिलता, उसे वे सीना ठोंक कर बताते, ‘‘चोर बहुत तगड़ा था, पर… छीं… आक् छीं… मैं भी कमज़ोर… छीं… छूं…. छां था… नहीं था…’’
लोगों के पास उनकी बात मानने के अलावा और कोई चारा न था.

संजीव जायसवाल ‘संजय’

 

 

 

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Photo Courtesy: Freepik

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