कहानी- सती का सच 3 (Story Series- Sati Ka Sach 3)

क्या सांसों का रुक जाना ही मृत्यु है? मैं जो सौ-सौ मरण सुबह से शाम तक झेल रही हूं, वो तुम्हें नज़र नहीं आता मां… मरने के लिये थोड़ी-सी हिम्मत चाहिए, पर ऐसा जीवन जीने के लिए पहाड़-सा धीरज और वज्र-सा कलेजा चाहिए. किसे पता है कि एकबारगी पति के साथ जीवित जल जानेवाली मेरी मासूम बहन ने ऐसा कठोर निर्णय किस तरह ले लिया होगा?

चार दिन पूर्व जब बैठक में रत्ना के ससुराल के एक व्यक्ति ने यह सूचना दी तो मैं स्वयं को रोक नहीं पायी और दहाड़ मार कर रो उठी और तब मां ने कठोरता से मुंह पर रखे मेरे हाथों को झटक कर कहा था. “कलमुंही! यह क्या रोने का व़क़्त है? तुझ सी बेहया नहीं थी वह… बड़ी आन वाली थी मेरी रत्ना… नाम अमर कर गयी हमारा.”
ये सुन कर हतप्रभ रह गयी थी मैं. बच्चे की ज़रा-सी उंगली भी जल जाए तो मां मुंह से ममतामयी हवा दे-देकर ताप हरने की तत्परता में तड़प उठती है. यहां समूची जीती-जागती जल जानेवाली फूल-सी बेटी के दु:ख से जिसका कलेजा कांप नहीं उठा, कैसी मां थी वो? उलटे मुझे बेहया कह रही है. सच बेहया ही तो हूं मैं, जो इतने अपमान को सह कर भी जी रही हूं. क्या सांसों का रुक जाना ही मृत्यु है? मैं जो सौ-सौ मरण सुबह से शाम तक झेल रही हूं, वो तुम्हें नज़र नहीं आता मां… मरने के लिये थोड़ी-सी हिम्मत चाहिए, पर ऐसा जीवन जीने के लिए पहाड़-सा धीरज और वज्र-सा कलेजा चाहिए. किसे पता है कि एकबारगी पति के साथ जीवित जल जानेवाली मेरी मासूम बहन ने ऐसा कठोर निर्णय किस तरह ले लिया होगा? वो तो मुझे सदा कहती रहती “जीजी, क्यों उदास रहती हो? जो हुआ उसमें आख़िर तुम्हारा क्या दोष था?”

यह भी पढ़ें: क्यों एनीमिक होती हैं भारतीय महिलाएं? 
उसने वर्षों अदृश्य चिता पर बैठी अभागी बहन की धुआं-धुआं होती ज़िन्दगी देखी थी. ससुरालवालों का अत्याचार व मायकेवालों का तिरस्कार भी देखा था. ‘विधवा’ शब्द और वैधव्य की भयावह कल्पना का एक मनोवैज्ञानिक भय उसके मन में गहरे जाकर बैठ गया था. बहन के जीवन की त्रासदी की मूक दर्शक बनी, तिल-तिल कर जलने से अच्छा एक बार में जल जाने में ही उसने अपनी बेहतरी समझी. पिछली बार आयी तो कह रही थी, “जीजी, हमारे समाज में औरतें ही औरतों की सबसे बड़ी दुश्मन हैं. अब देखो, तुम्हारी सास ने तुम्हारे साथ क्या किया… और तो और, हमारी मां का दिल भी कैसा पत्थर निकला… और मेरी सास की बात भी सुनो. एलबम में लगी तुम्हारी तस्वीर को निकाल फेंका. कहने लगी, यह अपशकुनी फ़ोटो क्यों लगा रखा है?”

 

– निर्मला डोसी

अधिक कहानी/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां पर क्लिक करेंSHORT STORIES

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta

Recent Posts

कहानी- इस्ला 4 (Story Series- Isla 4)

“इस्ला! इस्ला का क्या अर्थ है?” इस प्रश्न के बाद मिवान ने सभी को अपनी…

March 2, 2023

कहानी- इस्ला 3 (Story Series- Isla 3)

  "इस विषय में सच और मिथ्या के बीच एक झीनी दीवार है. इसे तुम…

March 1, 2023

कहानी- इस्ला 2 (Story Series- Isla 2)

  “रहमत भाई, मैं स्त्री को डायन घोषित कर उसे अपमानित करने के इस प्राचीन…

February 28, 2023

कहानी- इस्ला 1 (Story Series- Isla 1)

  प्यारे इसी जंगल के बारे में बताने लगा. बोला, “कहते हैं कि कुछ लोग…

February 27, 2023

कहानी- अपराजिता 5 (Story Series- Aparajita 5)

  नागाधिराज की अनुभवी आंखों ने भांप लिया था कि यह त्रुटि, त्रुटि न होकर…

February 10, 2023

कहानी- अपराजिता 4 (Story Series- Aparajita 4)

  ‘‘आचार्य, मेरे कारण आप पर इतनी बड़ी विपत्ति आई है. मैं अपराधिन हूं आपकी.…

February 9, 2023
© Merisaheli