कहानी- सीक्रेट सेविंग 4 (Story Series- Secret Saving 4)

“नहीं है, तो अब याद कर ले और समझ ले. ऐसी सीक्रेट सेविंग औरत को कभी कोई सिक्योरिटी नहीं दे सकती, जिसे घर में रखो, तो नकदी-गहने चोरी हो सकते हैं और बैंक का भी क्या भरोसा. बैंक तो आजकल ख़ुद दिवालिया हो रहे हैं. ज़मीन-जायदाद हो, तो नाते-रिश्तेदार हड़प सकते हैं, तेरी बहन की तरह. स़िर्फ इंसान का सीखा हुआ ही उसकी सिक्योरिटी है, वही उसकी रगों में दौड़ता है. उसे कोई नहीं छू सकता.’’

“तू एक-दो दिन चिल कर, अपना मूड ठीक कर, फिर कोई रास्ता निकालते हैं.”

“चिल कर… तुझे ये सब मज़ाक लग रहा है?” नूपुर आवेश में बोली, तो सुगंधा संजीदा हो उठी.

“नहीं नूपुर, मज़ाक नहीं लग रहा है, मगर तुझे इस परिस्थिति को मज़ाक बनाना है. इसे मज़ाक-मज़ाक में ही पास करना है. देखना, धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा. मैंने ये समय देखा है, इसीलिए कह रही हूं.”

एक-दो दिन यूं ही गुज़र गए. सुगंधा गणित और संस्कृत की क्लासेज़ लेती थी. उसका अपने क्षेत्र में काफ़ी नाम था. वह दिनभर व्यस्त रहती, बेटी एमबीए ऐंट्रेंस एग्ज़ाम की तैयारी कर रही थी. नूपुर सारा दिन खाली बैठे-बैठे गड़े मुर्दे उखाड़ती रहती. “ऐसा कब तक चलेगा सुगंधा, अपने भविष्य के बारे में कुछ तो सोचना ही पड़ेगा.” उकताई नूपुर बोली.

“तो उसके लिए पहले अपने गुज़रे जीवन से बाहर निकल नूपुर. जो बीत गया, उसे गुज़र जाने दे.”

“ठीक है. पास्ट नहीं सोचूंगी, पर फ्यूचर भी तो कुछ नज़र नहीं आ रहा. मैं तो उन्हीं पैसों के सहारे भारत आई थी.”

“यही तो तेरी सबसे बड़ी ग़लती थी डियर, तूने अपने से ज़्यादा उस धन पर भरोसा किया. तुझे याद है नूपुर स्कूल में संस्कृत की किताब में एक श्‍लोक हुआ करता था, जिसका मतलब था विद्या और गुण इंसान का वो धन है, जिसे न चोर चुरा सकता है, न राजा छीन सकता है, न भाई-बंधु बांट सकते हैं, जो ख़र्च करने पर भी कम नहीं होता.”

“होगा, मुझे याद नहीं.” नूपुर अनमनी-सी बोली.

“नहीं है, तो अब याद कर ले और समझ ले. ऐसी सीक्रेट सेविंग औरत को कभी कोई सिक्योरिटी नहीं दे सकती, जिसे घर में रखो, तो नकदी-गहने चोरी हो सकते हैं और बैंक का भी क्या भरोसा. बैंक तो आजकल ख़ुद दिवालिया हो रहे हैं. ज़मीन-जायदाद हो, तो नाते-रिश्तेदार हड़प सकते हैं, तेरी बहन की तरह. स़िर्फ इंसान का सीखा हुआ ही उसकी सिक्योरिटी है, वही उसकी रगों में दौड़ता है. उसे कोई नहीं छू सकता. मुझे ही देख, क्या था मेरे पास जब मेरे पति गुज़रे? कुछ नहीं, बस मेरा गणित अच्छा था और संस्कृत पढ़ने का शौक था. आज इन्हीं दो चीज़ों के सहारे अपना घर अच्छे-से चला रही हूं.”

“…मगर मेरे पास तो ऐसा कुछ नहीं.”

“क्यों नहीं है, मुझे याद है तू कितना अच्छा डांस किया करती थी. तू कत्थक भी तो सीखती थी.”

“मैंने तो सालों से डांस नहीं किया. शादी के बाद अमेरिका जो गई, तो वहां सब शौक बंद हो गए.”

“वहां जाकर सब गुण गंवा दिए या कुछ सीखा भी?” सुगंधा लगभग डांटते हुए बोली.

“कुछ नहीं सीखा यार. सालों यूं ही निकल गए. दिनेश के साथ सज-धजकर शोपीस जैसे घूमते हुए. उसके क्लाइंट को अटेंड करते. बनावटी हंसी हंसते. अंग्रेज़ी में अदब से खिटपिट करते…” स्वर निराश था.

“अरे वाह, इतना कुछ सीखकर आई है, फिर भी कहती है, कुछ नहीं सीखा.”

“क्या पागलोंवाली बातें कर रही है?”

“पागलोंवाली नहीं, बल्कि बड़े काम की बात कर रही हूं. देहरादून जैसे उभरते शहर में ऐसी क्लासेज़ की कितनी वैल्यू है, जो यहां के युवाओं को कम्यूनिकेशन स्किल सिखा सके. कस्टमर केयर व पर्सनैलिटी ग्रूमिंग के गुर बता सके. तू यह सिखाने लग जाए, तो हज़ारों कमा सकती है.”

“और कौन आएगा सीखने?” नूपुर ने पूछा.

“तेरी पहली शिष्या तो निधि ही बनेगी. पता है कल रात ही कह रही थी कि मौसी की क्या पर्सनैलिटी है और कितने अच्छे ऐक्सेंट और कॉन्फिडेंस के साथ इंग्लिश बोलती हैं. उन्हें कहो ना ज़रा मुझे भी सिखाएं. मेरे इंटरव्यू और ग्रुप डिस्कशन राउंड में काम आएगा.”

तभी निधि वहां फुदकती आई, “सही बात है मौसी, मेरे तो कितने फ्रेंड और क्लासमेट आ जाएंगे आपसे क्लास लेने. हम लोग बस इसी चीज़ में मात खा रहे हैं, मेट्रो के बच्चों से.”

“पर क्लास कहां लूंगी?”

“यहीं जहां मैं क्लासेज़ लेती हूं. हम दोनों थोड़ा टाइमिंग एडजेस्ट कर लेंगे और जब तेरा काम बढ़ेगा, तो कोई अलग जगह रेंट पर ले सकते हैं.”

यह भी पढ़ेसेविंग्स स़िर्फ पैसों की ही नहीं, रिश्तों की भी करें (Save Not Only Money But Relationship Too)

“पर मैं तुझ पर यूं बोझ नहीं बनना चाहती.”

“अरे बाबा, बोझ मत बनना. जब कमाने लगेगी, तो मेरे यहां पेइंग गेस्ट की तरह रह लेना, मगर तब तक मेरी सहेली बनकर रह.”

नूपुर की आंखें भर आईं, “यार मैं तेरा ये एहसान…”

“आज ही उतार सकती है, बल्कि अभी.” सुगंधा ने उसकी बात बीच में ही काट दी. “तुझे मेरे साथ पल्टन बाज़ार चलना होगा चाट खाने. ये पिज़्ज़ा-बर्गर जनरेशनवाली मेरी बेटी कभी मेरे साथ चाट खाने नहीं जाती. बिल्कुल अकेली पड़ गई हूं. तू बस मेरे साथ चाट खाने चला कर. इसी में धीरे-धीरे मेरा एहसान बैलेंस हो जाएगा.” सुगंधा की बात सुन नूपुर खिलखिलाकर हंस पड़ी. लगा जैसे बड़े दिनों बाद वह दिल से हंसी थी. उस दिन के बाद से उसकी वह हंसी जारी थी.

    दीप्ति मित्तल

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