कहानी- सॉरी मॉम 2 (Story Series- Sorry Mom 2)

 

पूरे गैंग में गपशप चल रही थी, फ्यूचर प्लैन बन रहे थे, मगर मेरे दिमाग़ की सुई तो एक ही ज़गह अटक गई थी. मॉम अमित अंकल से अभी भी संपर्क में हैं?
ये सवाल मेरे कंधे पर सवार हो साथ घर चला आया. मुझे एक अजीब-सी बेचैनी ने घेर लिया था.

 

 

 

… लेकिन मॉम के साथ ये कौन हैं? अमित अंकल जैसे लग रहे हैं… मैंने पहचानने की कोशिश की, हां वहीं तो हैं… दोनों एक कॉफी शॉप में जाकर बैठ गए थे, गर्मजोशी से बातें करते हुए, जैसे पुराने दोस्त करते हैं. हां, दोस्त ही तो थे वे, डैड के दोस्त… मगर इतने सालों बाद यहां… मॉम के साथ? क्या, महज़ इक्तफ़ाक था या कुदरत की साज़िश… मेरा यूं अचानक मॉल आना… और मॉम को देखना, वो भी अमित अंकल के साथ?
आज उन्हें 6-7 साल बाद देख मन की कितनी पुरानी तहें खुलने लगी. अमित अंकल अक्सर हमारे घर आया करते थे. बिल्कुल फैमिली मेंबर जैसे थे… सच कहूं तो मैंने डैड को सिर्फ़ उन्हीं के साथ हंसते हुए, खुलकर बातें करते हुए देखा था. मॉम और मेरे साथ तो वे बस काम भर की बातें करते थे.

 

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याद है मुझे, जब एक बार डैड टूर पर गए हुए थे, मैं बहुत बीमार हो गई थी, तब अंकल ने मॉम के साथ दिन-रात खड़े रहकर मेरा ध्यान रखा था. मॉम भी उनसे घुल-मिल गई थी. वो डैड की गैरहाज़िरी में भी चाय पीने आ जाया करते और हमारे साथ ख़ूब बतियाते… मगर उस रात के बाद तो मॉम ने उनसे मिलना, बात करना छोड़ दिया था ना… तो फिर आज ये दोनों साथ क्यों?
“क्या हुआ, यहां क्यों खड़ी है?” तनिषा ने पीछे से मेरा कंधा थपथपाया.
“नथिंग… लेट्स गो…” मैं अपनी हैरानी छिपाकर उसके साथ चल पड़ी.
पूरे गैंग में गपशप चल रही थी, फ्यूचर प्लैन बन रहे थे, मगर मेरे दिमाग़ की सुई तो एक ही ज़गह अटक गई थी. मॉम अमित अंकल से अभी भी संपर्क में हैं?
ये सवाल मेरे कंधे पर सवार हो साथ घर चला आया. मुझे एक अजीब-सी बेचैनी ने घेर लिया था.
थोड़ी देर बाद बाहर से मेनडोर खुलने की आवाज़ आई, मॉम आ गई थीं.
“जिया…” मॉम की आवाज़ सुन मैंने ज़बरन आंखें मींच ली. वो मेरे बेडरूम में आई और सिराहने बैठ सिर सहलाने लगी.
“आज जल्दी सो गई, तेरे कैंपस इंटरव्यू का क्या रहा बेटा?” मैं अनसुना कर दम साधे पड़ी रही. वो मेरे सिराहने टेबल पर रखा ऑफर लेटर बुदबुदाते हुए पढ़ने लगी.

 

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“तेरी जॉब लग गई जिया, इतनी बड़ी कंपनी में… और तू सो रही है…” वे ख़ुशी से चिल्लाई और मुझे बांहों में भर झिंझोड़ दिया.
“सोने दो मॉम, बहुत थक गई हूं, कल बात करते हैं ना…” मैं उनींदी सी बोली. कुछ बताने का, पूछने का मन नहीं था… कुछ सवालों को उठाने की हिम्मत जुटानी होती है.
रात का सवाल सुबह भी सिर भारी किए था. मैं उठकर रसोई में आई, तो उन्होंने मेरी बेआव़ाज आहट सुन ली.
“उठ गई तू, बहुत-बहुत बधाई हो!” वे मुझे बांहों में कसते हुए बोली. “आज तूने मेरे सारे सपने पूरे कर दिए. अब मुझे कोई चिंता, कोई फ़िक्र नहीं.”

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें

दीप्ति मित्तल

 

 

 

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Usha Gupta

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