कहानी- सॉरी मॉम 5 (Story Series- Sorry Mom 5)

 

“हां आया था, अमित अंकल का… कह रहे थे, कल की कॉफी अच्छी थी…” मैंने तल्खी से कहा. मॉम बुरी तरह हड़बड़ा गई.
“क्या बकवास कर रही है?” उन्होंने मेरे हाथों से अपना फोन छीन लिया और मेरी पलकों में रूका सैलाब बह चला.
“क्यों किया आपने ऐसा मॉम? पहले डैड को, फिर मुझे धोखा देती रही… आख़िर कौन हैं वे आपके… आपका रिश्ता क्या है उनसे?”
“जिया, तू भी अपने डैड की तरह मुझ पर शक करने लगी?”

 

 

 

 

… आई हेट यू अमित अंकल… आपने मुझसे पहले डैड छीने और आज… आज मेरी मॉम भी छीन ली… एंड आई हेट यू मॉम, मैंने आप पर अंधा विश्वास किया, एक बार भी डैड के बारे में नहीं सोचा कि उन्होंने कैसा महसूस किया होगा… वे किस तकलीफ़ से गुज़रे होगें… आपके आगे डैड कभी नज़र ही नहीं आए… और आपने क्या किया, डैड के साथ मुझे भी चीट किया?
“ऐसे क्यों बैठी है जिया और मेरे फोन में क्या देख रही है, कॉल आया था क्या किसी का?” मॉम उतनी ही नार्मल थी जितनी पांच मिनट पहले, मगर इन पांच मिनट में मेरी दुनिया हिल चुकी थी.
“हां आया था, अमित अंकल का… कह रहे थे, कल की कॉफी अच्छी थी…” मैंने तल्खी से कहा. मॉम बुरी तरह हड़बड़ा गई.
“क्या बकवास कर रही है?” उन्होंने मेरे हाथों से अपना फोन छीन लिया और मेरी पलकों में रूका सैलाब बह चला.
“क्यों किया आपने ऐसा मॉम? पहले डैड को, फिर मुझे धोखा देती रही… आख़िर कौन हैं वे आपके… आपका रिश्ता क्या है उनसे?”
“जिया, तू भी अपने डैड की तरह मुझ पर शक करने लगी?”
“शक की गुंजाइश ही कहां छोड़ी आपने. कल मैंने आप दोनों को अपनी आंखों से देखा था, हंसते हुए, बातें करते हुए… आपके मैसेजेज… आपकी कॉल हिस्ट्री सब देखी हैं मैंने… डैड सही थे, मगर मैंने हमेशा आपको सही समझा एंड यू चीटेड मी…” भीतर भरा गुबार बाहर फेंक मैं अपने कमरे में चली आई. उनसे कोई झूठी सफ़ाई नहीं सुनना चाहती थी.

 

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उस सुबह के बाद मैंने मॉम से कुछ नहीं पूछा. उन्होंने भी कहां कुछ बात की… ना अंकल से अपने रिश्ते के बारे में और न मेरे तनिषा के साथ शिफ्ट होने को लेकर… मैं अपना बैग लेकर चुपचाप उनके सामने से निकल आई… अपनी एक दुनिया बसाने, जिसमें अब सिर्फ़ मैं थी… और वो… वो बेज़ुबान बनी मुझे जाते देखती रही…
महीना गुज़र गया था मॉम का घर छोड़े, जॉब भी ज्वॉइन कर ली थी. वर्किंग डेज् तो जैसे-तैसे कट जाते, मगर छुट्टी के दिन मन सीला-सीला रहता… घर की, मॉम की याद आती… जितनी याद आती दर्द उतना ही बढ़ता…
“अरे, मत फेंक, इसमें मनी प्लांट लगाएंगे.” तनिषा कॉफी का खाली हुआ ग्लास ज़ार फेंकने लगी, तो मैंने उसे रोक दिया.
“मनी प्लांट?”
“हां, यू नो मॉम कभी खाली ग्लास ज़ार फेंकने नहीं देती, उसमें मनी प्लांट लगा लेती हैं.” मैं याद कर हंस पड़ी और दूसरे ही पल आंखें भर आईं.
“आंटी को मिस करती है, तो मिल क्यों नहीं आती?” तनिषा मेरा हाथ दबाते हुए बोली.
मैंने गहरी सांस लेते हुए ना में सिर हिला दिया.
“फोन कॉल ही कर ले… देख यार मुझे नहीं पता कि तुझे उनसे क्या नाराज़गी है, मगर वो तेरी मॉम हैं…” मैं उसे अनसुना कर बाहर बालकनी में चली आई.

 

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रैलिंग पर कोहनियां टिका आसमान ताकने लगी. रिश्ता जितना क़रीबी होता है ना, शिकायतों की, नाराज़गी की नींव उतनी ही गहरी खुदी होती है, इतनी आसानी से नहीं हिलती.
“आज मैं लंच पर बाहर जा रही हूं… डेट है मेरी.” तनिषा कॉफी की सिप भरते हुए बगल में आ खड़ी हुई. उसकी आंखों में प्यार की खुमारी झलक रही थी.
“राहुल से पैचअप हो गया तेरा?”
“नहीं यार, अब हम साथ नहीं हैं…ऐक्च्युअली हम बहुत अलग थे, साथ रहते भी तो ज़्यादा दिन नहीं रह पाते…”
“तो फिर?”

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें

दीप्ति मित्तल

 

 

 

 

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Usha Gupta

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