… “यू नो मॉम, सारी प्रॉब्लम की जड़ क्या थी?”
“क्या?”
“यही कि मैंने आपको हमेशा सिर्फ़ मॉम ही समझा, कभी नहीं सोचा कि आप भी एक ह्यूमन बींग हैं, जिसकी अपनी पर्सनल लाइफ है, कुछ चाहतें… कुछ ख़्वाहिशें हैं! एक काम करते हैं, आज से अपना रिश्ता बदल लेते हैं…”
“क्या मतलब?”
“आई मीन, अब हम दो मेच्योर वुमन की तरह फ्रेंड्स बनकर साथ रहेंगे… जैसे मैं और तनिषा रहते थे… आप मुझसे कुछ भी शेयर कर सकती हैं और मैं भी… हम एक-दूसरे को सुनेंगे, बिना जजमेंटल हुए, जस्ट लाइक गुड फ्रेंड्स… ठीक है ना मॉम?” वे ऐसे हंसीं जैसे मैंने कोई जोक सुनाया हो.
“आई एम डैम सीरियस मॉम.” उन्होंने प्यार से मेरे गालों को चूम लिया.
“चल मैं कॉफी बनाकर लाती हूं फिर कहीं बाहर लंच पर चलेगे.”
“गुड आइडिया… वैसे मॉम, आप चाहे तो अमित अंकल को भी लंच पर बुला सकती हैं, आई एम फाइन विद दैट.” मैं उन्हें भरोसा दिलाना चाहती थी कि मैं उनके साथ हूं.
“जिया, मैं और अमित अच्छे दोस्त हैं और कुछ नहीं… वो बहुत अच्छे इंसान हैं, उन्होंने मुझे इमोशनली बहुत सपोर्ट किया है… मगर दोस्ती से ज़्यादा हमारे बीच कभी कुछ नहीं रहा.”
“तो फिर आप मुझे बिना बताए..?”
“मैं डरती थी जिया कि कहीं अपने डैड की तरह तू भी मुझ पर शक ना करने लग जाए, मुझे ग़लत ना समझ ले… इसलिए कभी बता नहीं पाई…”
“ओह, आई एम सॉरी मॉम.” मैं उनके गले लग अपनी बेवकूफ़ी पर रो पड़ी.
“नहीं जिया, ग़लती मेरी थी… मेरा ड़रना ग़लत था… ना छिपाती तो ये सब नहीं होता ना…” वो मेरी कमर सहलाने लगी… सच, मां की गलबहियो में कितना सुकून भरा होता है.
“वैसे अगर… तेरी लाइफ में कोई हो, तो बता दे, पढ़ाई हो गई, नौकरी लग गई, अब तेरी शादी भी तो करनी है ना…”
“लो कर दी ना टिपिकल मांओंवाली बात, आप तो थोड़ी देर भी फ्रेंड बनकर नहीं रह पाई.” मैंने रुठते हुए कहा, तो वे खिलखिला पड़ी. बहुत दिनों बाद हमारा वो घर हंसी से गुलज़ार हुआ था, जिसकी नेमप्लेट पर लिखा था- ‘वसुधा एंड जियाज् ड्रीम्स होम’.
दीप्ति मित्तल
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