कहानी- वो रहस्यमयी कान्हा 2 (Story Series- Woh Rahasyamayi Kanha 2)

अगर आप किसी से प्रेम करते हैं और वो इंसान आपके साथ छल करे या आपका साथ न दे पाए, तो इसका अर्थ ये क़तई नहीं होता की आपका प्रेम असफल हो गया. इसका अर्थ यह है कि आपने तो पूरी निष्ठा और सच्चे हृदय से उससे प्रेम किया और उसने छल किया, तो ये उसका दुर्भाग्य है, ना कि आपका.

 

भैया-भाभी सुबह से तेहरवीं की रस्मों की भागदौड़ में थके-हारे थोड़ी देर अपने कमरे में विश्राम करने चले गए. मैं… मेरे कदम स्वतः ही मां के कमरे की तरफ़ चल पड़े. कितना व्यवस्थित था मां का कमरा. सभी चीज़ें करीने से रखी थीं. दिवार पर लगी मां और पिताजी की उनकी कश्मीरवाली तस्वीर उन दोनों के अटूट प्रेम और समर्पण की साक्षी थी. मैंने हमेशा उन दोनों को एक-दूसरे के लिए निस्वार्थ प्रेम में जीते देखा. एक-दूसरे के दर्द को अपने दर्द की तरह महसूस करते देखा. अगर मैं उन दोनों को दो जिस्म एक जान की संज्ञा दूं, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. किंतु पिताजी की असमय मृत्यु से मां, एक निष्ठावान पत्नी, एक प्रेमिका के रूप में भीतर तक टूट ज़रूर गई थीं, पर साथ ही उनके भीतर की मां ने उन्हें हिम्मत दे
दी.
भैया और मेरे लिए उन्होंने अपना सारा दर्द समेट कर अपने हृदय में क़ैद कर दिया और फिर से जी उठी हम दोनों भाई-बहन के लिए. उनके सभी सामान को महसूस कर अंत में मैंने मां की आलमारी खोली. आलमारी खोलते ही उनकी ख़ुशबू मेरी आंखें नम कर रही थीं. धीरे-धीरे जो ज़रूरी सामान था उसे छोड़कर मैंने बाकी आलमारी की चीज़ें ख़ाली कर रही थी, क्योंकि थोड़ी देर पहले ही भाभी ने मुझे ऐसा करने को कहा था. सामान ख़ाली करते हुए अचानक कोने में रखी एक छोटी-सी ख़ूबसूरत रंगों की मीनाकारीवाली संदूकची ने मुझे आकर्षित किया. उसे देख ऐसा लग रहा था की मानो वो मुझसे छुपने की कोशिश कर रही
हो. मेरा कौतूहल मन जो ये जानने के लिए जिज्ञासु था कि आख़िर उसमें ऐसा क्या था, जिसे मां ने छुपा के रखा था उसे खोलने को विवश कर रहा था.
मैं वो संदूकची लेकर मां की आरामकुर्सी पर बैठ गई. मैंने धीरे -धीरे जैसे ही उसे खोला, उसमें से निकली मोगरे के इत्र की ख़ुशबू ने मेरा मन मोह लिया. अद्धभुत ख़ुशबू थी उसकी. उसके अंदर सिर्फ़ एक छोटी-सी मोगरे के इत्र की शीशी, मुड़ा हुआ काग़ज़ था, जो शायद किसी का पत्र लग रहा था. पत्र इत्र की ख़ुशबू से महक रहे थे. मैंन पत्र पढ़ने के लिए खोला. ये तो किसी कान्हा ने अपनी राधा को लिखा था और वो कान्हा कोई प्रणव था और राधा… राधा कोई और नहीं, बल्कि रागिनी यानी मां थी. नाम पढ़ने के पश्चात, तो उत्सुकता थामे नहीं थम रही थी. मैंने पत्र पढ़ना आरम्भ किया.
प्रिय राधा,
प्रेम ईश्वर का दिया एक अनुपम वरदान है. एक अनुभूति है, जिसे सिर्फ़ महसूस किया जा सकता
है. प्रेम का दूसरा रूप समर्पण और त्याग है. सच्चा प्रेम किसी को पाने का नहीं, अपितु किसी को अपूर्व ख़ुशियां देने का प्रतीक है. एक सच्चा और पवित्र प्रेम सदा मरते दम तक आपके हृदय में महकता है. भले ही साक्षात जीवन में उसका अस्तित्व हो या न हो. अगर आप किसी से प्रेम करते हैं और वो इंसान आपके साथ छल करे या आपका साथ न दे पाए, तो इसका अर्थ ये क़तई नहीं होता की आपका प्रेम असफल हो गया. इसका अर्थ यह है कि आपने तो पूरी निष्ठा और सच्चे हृदय से उससे प्रेम किया और उसने छल किया, तो ये उसका दुर्भाग्य है, ना कि आपका. ये उसकी बदक़िस्मती है, जो उसने आपके सच्चे प्रेम को खोया. माना की टूटा हृदय बहुत दर्द देता है, किंतु वक़्त हर दर्द को भर देता है और जीवन में आगे बढ़ने का नाम ही तो ज़िंदगी है.
रागिनी, तुमसे छल करनेवाला अपराधी मैं हूं और फिर मैंने तुम्हें अपना पक्ष रखने का अवसर भी तो नहीं दिया. पता है रागिनी, जिस तरह कान्हा lजी ने प्रेम तो सदा राधाजी से किया, किंतु विवाह रुक्मणी से किया. फिर भी इस संसार में उनका प्रेम अमर हो गया. आज भी लोग राधा-कान्हा के अमर प्रेम को मानते हैं. तुम हैरान हो रही होगी कि अचानक मैं ये सब बातें क्यूं लिख रहा हूं? क्योंकि मैं वो कान्हा हूं, तुम मेरी राधा जिसे मैं आजीवन प्रेम करूंगा और सुधा मेरी रुक्मणि.

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मैं सुधा से विवाह कर रहा हूं, क्यूंकि मैं घरवालों के आगे विवश हूं. सुधा से विवाह कर दहेज में आए पैसों से पिताजी मेरी दोनों छोटी बहनों का विवाह सहजता से कर सकेंगे. तुम तो मेरी आर्थिक स्थिति से अच्छी तरह वाक़िफ़ हो, फिर एक पढ़े-लिखे नौकरीपेशेवाले बेटे का मोल लगाने का इससे अच्छा अवसर और कब मिलेगा, वो भी तब, जब मुंहमांगा दहेज मिल रहा हो… इससे अतिरिक्त मुझे कुछ नहीं कहना. हो सके तो अपने कान्हा को क्षमा कर देना. इस पत्र के साथ तुम्हारा मनपसंद इत्र दे रहा हूं, इसे मेरी याद बनाकर अपने पास रख लेना. ईश्वर तुम्हारे जीवन को सच्चे प्रेम और ख़ुशियों से आबाद करे, इसी दुआ के साथ…
तुम्हारा
कान्हा

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…

कीर्ति जैन

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Usha Gupta

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