कहानी- याद न जाए… 4 (Story Series- Yaad Na Jaye… 4)

 

अपने प्यार के जुनून में उसने ख़ुद को ही नहीं सरला को भी अकेला कर रखा था. आख़िर कब तक सरला उसकी बेरूखी बर्दाश्त करती रहेगी और वह उसके प्यार और समर्पण को अनदेखा करता रहेगा. सरला के पूर्ण समर्पण के बाद भी उसका दिल हमेशा नलिनी की यादों में ही अटका रहा.

 

 

 

… ‘‘हां, कभी हम दोनो एक ही काॅलेज में साथ पढ़ते थे.’’ उसकी आवाज़ में बिछड़े साथी से मिलने की खनक की जगह गहरी उदासीनता थी. नवीन अपने जिस प्यार की झलक उसकी आंखों में देखना चाहता था, उस प्यार का तो कही नामोनिशान नहीं दिख रहा था. नवीन के अंदर कुछ टूट कर बिखर गया. क्या यह वही नलिनी थी, जिसके टूटे-बिखरे प्यार के रिश्ते से आज तक चिपका, अपनी पत्नी की अवहेलना कर एक समझौतापूर्ण ज़िंदगी जी रहा था.
नवीन का दिल तो चाह रहा था कि किसी निभृत, निर्जन कोने में ले जाकर उससे पूछे कि हम दोनों सिर्फ़ सहपाठी थे और कुछ नहीं. क्या तुम सचमुच वही नलिनी हो, जिससे मैंने प्यार किया था? पर अब उसकी फ़ितरत उसके समझ में आने लगी थी कि उससे कुछ भी कहना या पूछना बेकार था. वह सिर्फ़ अपने फ़ायदे के हिसाब से लोगों के साथ अपने संबंध बनाती और तोड़ती थी.
वह थोड़ी देर तक अखिलेशजी के पास बैठा इघर-उघर की बातें करता रहा, पास ही के सोफे पर नलिनी भी बैठी हुई थी. पर उसने नवीन से चाय तक के लिए पूछना भी ज़रूरी नहीं समझा. अखिलेशजी ने ही उससे चाय के लिए पूछा, तो वह साफ़ इंकार कर दिया, ‘‘नहीं सर… आज क्षमा कीजिए. रात बहुत हो गई है घर पर सरला परेशान होगी.’’
वह जान-बूझकर सरला का नाम लिया शायद वह जताना चाहता था कि वह भी अब नलिनी की परवाह नहीं करता और तेजी से उठकर वहां से चल दिया. उसके इस नए तेवर से अचंभित नलिनी उसे गेट तक जाते हुए देखती रही. वहां से निकलकर एक पार्क के पास कार खड़ी कर देर तक सड़क पर यहां-वहां टहलता रहा. अब वह नलिनी के मोहपाश से पूरी तरह मुक्त हो गया था. आज उसे एहसास हो रहा था कि अब तक वह एक भ्रम में जी रहा था. बदलते परिवेश के साथ नलिनी किसी गिरगिट की तरह अपने रंग बदल ली थी और एक वह था, जो वर्तमान को भूला, आज भी उसी मोड़ पर खड़ा था, जहां कभी नलिनी ने उसे छोड़ा था. आज उसे शिद्दत से अपनी ग़लती का एहसास हो रहा था. जीवन में पत्नी का महत्व सिर्फ़ उसके सौंदर्य से ही नहीं होता है, घर-परिवार में उसका महत्व होता है उसकी ममता, समर्पण, विद्वता और उसके संस्कार से. जिसे न समझने के कारण ही आज वह घर-परिवार से निस्पृह हो एकाकी जीवन जीने के लिए मजबूर था.

 

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अपने प्यार के जुनून में उसने ख़ुद को ही नहीं सरला को भी अकेला कर रखा था. आख़िर कब तक सरला उसकी बेरूखी बर्दाश्त करती रहेगी और वह उसके प्यार और समर्पण को अनदेखा करता रहेगा. सरला के पूर्ण समर्पण के बाद भी उसका दिल हमेशा नलिनी की यादों में ही अटका रहा. शादी के पूरे चौदह बरसों बाद भी घर और सरला की ज़िम्मेदारियों से भागता रहा. आज जब नलिनी मिली तो, उससे मिली प्रवंचना के नकाब भी उतर गए, जिसने उससे मिलने की सारी ख़ुशियां ही छीन ली. मन में एक अजीब-सा सूनापन भरने लगा था, जहां न कोई ख़ुशी थी, न कोइ ग़म. बस, एक शून्य पसर गया था.
कभी-कभी आदमी के जीवन में ऐसे पल भी आते हैं, जब वह ख़ुशी और ग़म से परे शून्य हो जाता है. तब उस शून्य से होती है एक नई शुरूआत. यह शायद एक नई शुरूआत का आगाज़ था. उसकी सोच फिर सरला की तरफ़ मुड़ने लगी थी. वह यहां सड़क किनारे बेंच पर बैठा है और घर पर सरला उसके लिए परेशान हो रही होगी. वह उठकर अपने कार की तरफ़ बढ़ चला. घर पहुंचा, तो सरला घबराई हुई सी बरामदे में खड़ी उसी का इंतज़ार कर रही थी, जो सरला की निष्ठा का प्रत्यक्ष प्रमाण था. उसे देख घबराई-सी बोली, ‘‘कहां रह गए थे, आप इतनी देर तक? कम से कम एक काॅल तो कर ही देना चाहिए था. आपका फोन भी नहीं लग रहा था.”
‘‘देर तो हो गई मुझे तुम्हारे पास वापस लौटने में, पर लौटा हूं पूरा दुरूस्त होकर. घबराने की कोई बात नहीं है. बस, तुमसे एक गुज़ारिश है कि एक बार तुम, मेरे द्वारा किए गए उपेक्षा को भूलाकर मुझे अपना लो, फिर आज और अभी से मैं हर कदम पर तुम्हारे साथ हूं.’’
वह अचंभित खड़ी सरला को खींचकर अपने सीने से लगाते हुए हंस कर बोला.
उसके इस अप्रत्याशित व्यवहार से हैरान सरला अचंभित उसे निहारती रह गई थी.

 

 

 

 

 

रीता कुमारी

 

 

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