कितने दिनों बाद हमारी नज़रें मिलीं. दोनों की आंखें भरी हुई थीं... मेरी आंखें आंसुओं से, उनकी आंखें नाराज़गी…
कुछ सवाल, अपने साथ कुछ जवाब भी लेकर आते हैं, अंजलि का ये सवाल मुझे बहुत से जवाब देकर…
जितने दिन प्रमोद शहर में रहते, एक बेचैनी-सी घर में फैली रहती... और जितने दिन वो शहर से बाहर…
"बाद में क्या बात करते हैं? इधर आ के बैठिए... बच्चे क्या कह रहे हैं? आप शांत कैसे हैं इस…
मुझे याद ही नहीं कि समय का वो पल कितने आराम से करवट लेकर पलटा था. इतने आराम से…
अंजलि ने मुझे समझाते हुए गले लगा लिया, तो लगा जैसे रो पडूंगी! अपनी असुरक्षा पर, अपनी जासूसी…
मैं उसके 'नेक्स्ट टाइम' पर हल्का-सा ठहरी फिर याद करके कहा, "हम लोगों का कहां उधर आना हो पाता…