कहानी- ब्रोकेन वास 7 (Story Series- Broken Vase 7)

 

कितने दिनों बाद हमारी नज़रें मिलीं. दोनों की आंखें भरी हुई थीं… मेरी आंखें आंसुओं से, उनकी आंखें नाराज़गी से. पूरे कमरे को एक बार ग़ौर से देखा, कोने में रखा फूलदान देखकर उनकी नज़र उस पे टिकी रही, व्यंग्य भरी मुस्कान लिए बोले, “बिना फूलों के खाली फूलदान वो‌ भी टूटा हुआ… ये ब्रोकेन वास किस काम का है?”
इतने दिनों की तल्ख़ी आज सामने आई! मेरा हर कदम प्रमोद पर भारी पड़ा था… समाज, खानदान, अस्पताल सबके सामने सब कुछ खुल गया था.

 

 

 

 

 

… अंजलि का कहना था कि एक लहर-सी मन‌ को भिगो गई… छोटी बच्ची की तरह मैं भागकर गई और वही टूटा फूलदान उठाकर ले आई. सही बात तो कह‌ रही थी वो, मैं कुछ भी टूटा फेंकने में यक़ीन रखती ही नहीं थी, फिर कैसे मैं ख़ुद टूटी बैठी हुई थी इतने दिनों से?क्राफ्ट वाली आलमारी खोली, गोंद, कपड़ा, क्ले… अपना सामान खंगाला. कुछ-कुछ मिलाकर वास को जोड़ने की कोशिश की, टूटन दिख रही थी, लेकिन जुड़ने की उम्मीद लिए उसको सूखने को रख दिया.

 

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अंजलि मेरे साथ ही रुकी. इस रात वो मुझे अकेला‌ नहीं छोड़ना चाहती थी. प्रमोद सामान पैक कर रहे थे. उनको सिविल लाइंसवाले फ्लैट में शिफ्ट होना था. उनका सामान पैक हो रहा था. हर पैक होती चीज़ जैसे मेरा एक हिस्सा अपने साथ लेती जा रही थी… कितनी ही बार आंसू आंखों तक, कितनी ही बार चेहरा भिगोकर गए और कितनी ही बार मैं फूट-फूटकर रोई. हमारी बातचीत तो महीनों से बंद थी, लेकिन प्रमोद का निर्विकार चेहरा मुझसे बर्दाश्त ही नहीं हो रहा था… मेरे तो कुछ स्नेह-धागे अब भी उनके इर्दगिर्द घूम रहे थे. यही धागे तो मुझको रुला रहे थे, लेकिन प्रमोद? उन्होंने एक कैंची से खट्ट से सब काट दिया था क्या?
“चलता हूं… अपना ध्यान रखना.” जाते हुए पता नहीं कौन-सी रस्म निभाने आए थे प्रमोद… कितने दिनों बाद हमारी नज़रें मिलीं. दोनों की आंखें भरी हुई थीं… मेरी आंखें आंसुओं से, उनकी आंखें नाराज़गी से. पूरे कमरे को एक बार ग़ौर से देखा, कोने में रखा फूलदान देखकर उनकी नज़र उस पे टिकी रही, व्यंग्य भरी मुस्कान लिए बोले, “बिना फूलों के खाली फूलदान वो‌ भी टूटा हुआ… ये ब्रोकेन वास किस काम का है?”
इतने दिनों की तल्ख़ी आज सामने आई! मेरा हर कदम प्रमोद पर भारी पड़ा था… समाज, खानदान, अस्पताल सबके सामने सब कुछ खुल गया था. प्रमोद अब भी कमरे में थे. जवाब सुनना चाहते थे या मेरी हालत पर मुझे दुखी देखकर संतुष्ट होना चाहते थे. मैंने एक बार अंजलि की ओर देखा, हिम्मत बटोरी और उठकर फूलदान के पास तक गई. आवाज़ भरी हुई थी, लेकिन अब बोलना ज़रूरी था, “प्रमोद, देखिए, इस वास को मैंने जोड़ दिया है…” कांपती आवाज़ के साथ मैंने कहा, “और आपको पता है? ये अपने आप में ही पूरा है.. बिना फूलों के भी बहुत सुंदर लगता है.”
प्रमोद झटके से कमरे से बाहर चले गए थे. अंजलि ने आकर मुझे चिपका लिया. मैंने रुके आंसुओं को बहने दिया. आंखें खाली हुईं, तो सब कुछ थोड़ा और साफ़ दिखने लगा.
“अगले हफ़्ते से आर्ट एंड क्राफ्ट की क्लासेस शुरू कर रही हूं… टूटी हुई चीज़ें जोड़ने वाली क्लास…”

 

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एक लंबी सांस भरते हुए मैंने अंजलि से कहा और गौर से कोने में देखा, वहां रखा मेरा ब्रोकेन वास, फिर से जुड़कर और भी ज़्यादा सुंदर लग रहा था.

लकी राजीव

 

 

 

 

 

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Usha Gupta

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