कहानी- ब्रोकेन वास 4 (Story Series- Broken Vase 4)

“बाद में क्या बात करते हैं? इधर आ के बैठिए… बच्चे क्या कह रहे हैं? आप शांत कैसे हैं इस सब पे?”
पता नहीं शरीर की कमज़ोरी थी या मन की, मैं बोलते-बोलते कांपने लगी थी. प्रमोद दो पल ठहरकर मेरे पास आए. बिस्तर पर बैठ के थोड़ी देर कहीं दूर देखते रहे, फिर अचानक बोले, “सच बताना मंजू, शादी के इतने सालों में तुमको मैंने ख़ुश नहीं रखा? कोई कमी रखी?”
मैं रुआंसी हो गई, “मैं आपसे क्या पूछ रही हूं, वो बताइए ना, उल्टा मुझसे क्यों सवाल कर रहे हैं?”

 

 

 

 

… अंजलि ने ग़ुस्से से एक-एक शब्द चबाते हुए अपनी बात रखी. “ये मेरे घर में हो क्या रहा था? इतनी प्लानिंग, इतना सब कुछ मेरे साथ हो रहा था? कब से हो रहा था? और… और आख़िर क्यों हो रहा था?..” मुझे याद नहीं कि कब तक कुछ बुदबुदाते हुए मैं रोती रही और कब मैं अंजलि के कंधे पर टिककर बेहोश हो गई थी.
जब आंख खुली, तो अपने आसपास सबको बैठा पाया. अंजलि-अतुल मेरे सिरहाने के पास बैठे और प्रमोद थोड़ी दूर कुर्सी पर बैठे… सिर झुकाए, फोन में कुछ देखते हुए. कमरे में मरघट का सन्नाटा फैला था. मैंने उठने की कोशिश की, तो अंजलि ने प्यार से डांट दिया, “चुपचाप लेटी रहिए इसी तरह. बीपी अचानक लो हो गया था, बेहोश हो गई थीं आप… ये पीती रहिए बस.”

 

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उसने शिकंजी का ग्लास मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा, मैंने धीरे से पूछा,
“पापा कब आए बेटा? कुछ बात… कुछ कहा तो नहीं तुमने?”
पूछते ही मुझे लगा, कितना ग़लत सवाल मैं पूछ बैठी थी. कितना कुछ हंगामा हो चुका था, क्यों नहीं पूछा होगा उसने? अंजलि ने मेरा कंधा थपथपाया, “मेरी बात… मतलब मेरी और अतुल की बात हो चुकी है पापा से. हम बता चुके हैं कि हमको सब पता है.”
अंजलि मुझे एक दवा खिलाकर, तेजी से कमरे से बाहर चली गई, उसके पीछे-पीछे अतुल भी. मैं चुपचाप कमरे में बैठी प्रमोद को देखती रही. उनका चेहरा अब भी झुका हुआ था, वो अब भी फोन में कुछ देखते जा रहे थे. मेरे लिए ये सन्नाटा दमघोंटू था. प्रमोद उठ के मेरे पास क्यों नहीं आ रहे? क्यूं नहीं कह रहे कि ये सब बकवास है, जो घर में कहा जा रहा है? वो क्यूं नहीं कह देते कि देविका वाली बात हम सबके मन का वहम है! आख़िर मैंने ही चुप्पी तोड़ी,
“प्रमोद…”
“हां, बोलो…”
एक स्पष्ट, रूखा जवाब!
“सुनिए” मैंने किसी तरह अपने भरे गले को संभालकर कहा, “वो अंजलि और अतुल…”
“बच्चों से मेरी बात हो चुकी है. तुम ठीक हो जाओ फिर बात करते हैं, अभी रेस्ट करो.”
इतने हल्के ढंग से इतनी भारी बात टालकर प्रमोद जैसे ही कुर्सी से उठे, पता नहीं कहां से इतनी हिम्मत मुझमें आ गई कि मै लगभग चीख उठी, “बाद में क्या बात करते हैं? इधर आ के बैठिए… बच्चे क्या कह रहे हैं? आप शांत कैसे हैं इस सब पे?”
पता नहीं शरीर की कमज़ोरी थी या मन की, मैं बोलते-बोलते कांपने लगी थी. प्रमोद दो पल ठहरकर मेरे पास आए. बिस्तर पर बैठ के थोड़ी देर कहीं दूर देखते रहे, फिर अचानक बोले, “सच बताना मंजू, शादी के इतने सालों में तुमको मैंने ख़ुश नहीं रखा? कोई कमी रखी?”
मैं रुआंसी हो गई, “मैं आपसे क्या पूछ रही हूं, वो बताइए ना, उल्टा मुझसे क्यों सवाल कर रहे हैं?”
प्रमोद ने एक लंबी सांस लेकर कहा, “तुम्हारे ही सवाल का जवाब देने की कोशिश कर रहा हूं. तुम मेरे साथ ख़ुश रही ना? मैंने तुम्हारी ज़िम्मेदारी से कभी मुंह नहीं मोड़ा ना. जितना हो पाया, किया ना!”
इतनी बात कहकर प्रमोद चुप हुए.

 

 

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चश्मा उतारकर स्टूल पे रखा, थोड़ा रुककर बोले, “बाकी जो कुछ हुआ. वो कैसे हुआ, क्यूं हुआ… वो सब मुझको नहीं पता. लाइफ है, अपना रास्ता ख़ुद तय करती है. देविका के साथ एक कम्फर्ट ज़ोन शेयर करता हूं और मुझे इस बात का कोई अफ़सोस, कोई गिल्ट भी नहीं है.”
प्रमोद इतना बोलकर कमरे से बाहर निकल गए थे.

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें

लकी राजीव

 

 

 

 

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Usha Gupta

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