कहानी- ब्रोकेन वास 6 (Story Series- Broken Vase 6)

 

कुछ सवाल, अपने साथ कुछ जवाब भी लेकर आते हैं, अंजलि का ये सवाल मुझे बहुत से जवाब देकर गया था. पता नहीं क्या सोचकर नज़र आलमारी के ऊपर जा टिकी. मेरा ख़ास सफ़ेद वास दो टुकड़ों में टूटा अभी भी मेरे कमरे में था… उसको कैसे फेंकती, जो मुझे अपना ही प्रतिरूप लगता था… जब जुड़ा था तब भी, जब टूट गया था.. तब भी! और अब तो एक बार टूटने के बाद इसे भी कई टुकड़ों में टूटते जाना था, बिल्कुल मेरी तरह.

 

 

 

 

 

… दुख मेरी आंखों में उमड़ने लगा था. मैं फिर बिखरने लगी थी. अंजलि को समझाया, “सुन न‌ बेटा, बात अलग होने की है न… ज़रूरी तो नहीं काग़ज़ पर ही हों, सिविल लाइंसवाले फ्लैट में मैं शिफ्ट हो जाऊंगी.. वो भी तो सही रहेगा न?”
“बिल्कुल सही नहीं रहेगा मम्मा.” अंजलि ने मुझे कसकर बांहों में भींच लिया, “आपने कौन‌-सी ग़लती की है, जिसके लिए आप यहां से छुपकर भागोगी? आप कहीं नहीं जाओगी, ये आपका घर है, आपने इसे जोड़ा है… जिसने घर तोड़ा है, वही इसे छोड़ेंगे भी! और रही बात काग़ज़ों पर अलग होने की, प्लीज़ वो भी होने दीजिए. बात सामने आने दीजिए.” वो तटस्थ थी, पत्थर की तरह.

 

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मैं आनेवाले समय को सोचकर बुझती जा रही थी. कितना हो-हल्ला, कितने सवाल, कितने जवाब, मेरे अंदर इन सबकी सामर्थ्य बची ही कहां थी?
“बेमतलब का हल्ला होगा बेटा, क्या होगा सामने आकर? क्या मिलेगा मुझको? अब कुछ मिलने की उम्मीद भी नहीं मुझे… सब छिन चुका है.” आख़िरी बात बोलते हुए मेरी आवाज़ भर्रा गई थी.
“आपको कुछ नहीं मिलेगा मम्मा… शायद औरों का बहुत कुछ छिनने से तो बचेगा. आपकी तरह हर औरत सोचे कि परिवार की बदनामी होगी, ये सब छुपा लेना चाहिए, तो‌ फिर आदमी बेफ़िक्र होकर ये सब करते रहेंगे न? क्या कहते हैं पापा, हां.. कम्फर्ट ज़ोन! कल अतुल भी किसी फ्रेंड के साथ उसी ज़ोन में चले जाएं और मैं चुपचाप इग्नोर करती रहूं, आप सबसे छुपाती रहूं, चलेगा आपको?”
कुछ सवाल, अपने साथ कुछ जवाब भी लेकर आते हैं, अंजलि का ये सवाल मुझे बहुत से जवाब देकर गया था. पता नहीं क्या सोचकर नज़र आलमारी के ऊपर जा टिकी. मेरा ख़ास सफ़ेद वास दो टुकड़ों में टूटा अभी भी मेरे कमरे में था… उसको कैसे फेंकती, जो मुझे अपना ही प्रतिरूप लगता था… जब जुड़ा था तब भी, जब टूट गया था.. तब भी! और अब तो एक बार टूटने के बाद इसे भी कई टुकड़ों में टूटते जाना था, बिल्कुल मेरी तरह.
उस दिन के बाद होनेवाली हर घटना एक प्रहार की तरह मुझे बिखेरती ही रही.. कोर्ट-कचहरी, नाते-रिश्तेदार.. किसने नहीं मुझे तोड़ा! प्रमोद से बातचीत का तो सवाल ही नहीं उठता था, बस उनकी आग उगलती नज़रें मेरे लिए बहुत थीं. उनके हिसाब से मैं बहुत ग़लत कर‌ रही थी, जो जैसा चल‌ रहा था चलते रहना चाहिए था.

 

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अक्सर घूम-फिरकर सुनने में आता कि पति बाहर आकर्षित हुआ इसमें पत्नी की कमी है, लोग हर तरह की बातें बनाते थे. प्रहार पर प्रहार…
बस जब लगता कि अब चूर-चूर हो जाऊंगी, मेरे बच्चे मुझे इस तरह संभालते जैसे मैं उनकी बच्ची हूं… दामाद अतुल कितनी सारी सकारात्मक बातें बताकर मुझे मज़बूत करता रहता. अंजलि घुमाने ले जाती, कभी मंदिर ले जाती और एक दिन अचानक उसने पूछ लिया, “मम्मा आप फिर से बच्चों को आर्ट एंड क्राफ्ट क्यों नहीं सिखातीं? लैट्स स्टार्ट! आप कितना कुछ बनाती थी न पुरानी चीज़ों से, कुछ भी टूटा फेंकने नहीं देती थीं.”

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें

लकी राजीव

 

 

 

 

 

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Usha Gupta

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