कहानी- ब्रोकेन वास 2 (Story Series- Broken Vase 2)

 

 

अंजलि ने मुझे समझाते हुए गले लगा लिया, तो लगा जैसे रो पडूंगी! अपनी असुरक्षा पर, अपनी जासूसी पर घिन-सी आ गई. अरे नेहा को हो गई होगी ग़लतफ़हमी. मैंने किसी पराई लड़की की बात पर बेमतलब का बवाल क्यों मचा दिया है? अंजलि थोड़ी दूर पर बैठी नेहा से बात करती जा रही थी और मैं अपने वहम के अपराधबोध में फंसती जा रही थी.

 

 

 

 

 

… मैंने उसको ठीक करते हुए कहा, “क्या यार, कहां घूमते-फिरते हैं प्रमोद! कभी कॉन्फ्रेंस, कभी ऑपरेशन.. ये कोई घूमना हुआ?”
वो बात तो हंसी में टल गई, लेकिन फोन रखने के बाद मैं कुछ याद करके सोच में पड़ गई… क्या कह रही थी बेटी की सहेली उस दिन? हालांकि मैं श्योर थी इस बात पर, तब भी प्रमोद से जाकर पूछ लिया, “आप आगरा गए थे क्या पिछले महीने या उससे पहले?”
प्रमोद किसी पेशेंट की फाइल पर झुके हुए थे, एकदम से हड़बड़ाकर बोले, “कहां? कब गया यार आगरा?.. तुमको पता नहीं क्या कि कब कहां जाता हूं? लखनऊ गया था ना लास्ट मंथ… चिकनकारी का कितना सारा सामान लाया था.”
प्रमोद की आवाज़ थोड़ी तेज़ हो गई थी, मैंने बात संभाली, “हां, वही तो.. अंजलि की फ्रेंड है ना डॉक्टर नेहा, वो आगरा में पोस्टेड है आजकल. कह रही थी कि अंकल को देखा था. हां, उसे कन्फ्यूज़न हुआ होगा.”

 

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मैं कहने को तो कहते हुए बाहर आ गई थी, लेकिन दिमाग़ में कुछ फंस गया था. प्रमोद आगरा का नाम सुनते ही इतनी बुरी तरह चौंक क्यों हो गए थे?
उस दिन के बाद से पता नहीं मुझे क्या हो गया था. सोते-जागते, उठते-बैठते बस नेहा की कही बात और उसको सुनकर प्रमोद का हड़बड़ा जाना… ये दोनों बातें दिमाग़ में घर बनाकर बैठ गई थीं. किसी काम में मन लगाना तो दूर, प्रमोद से भी मैं कटी हुई थी. एक उलझन-सी सवार रहने लगी थी मन में… जितनी बार सोचा, अंजलि को फोन करके इस बारे में बात करूं, उतनी ही बार मैंने ख़ुद को ही डपट दिया.. कैसी मां हूं? बेटी हनीमून पर गई है, नई ख़ुशियों से जुड़ रही होगी और मैं अपनी ही व्यथा सुनाने लग जाऊं? किसी तरह उसके आने तक ख़ुद को रोका और उससे मिलते ही रुकते-हिचकते सब कह डाला.
“कम ऑन मम्मा! आप इतनी परेशान थीं और मुझे एक फोन तक नहीं किया? इतनी फॉर्मल कब से हो गईं मुझसे? मैं नेहा से बात करके क्लियर करती हूं, रुको आप. अभी आपके सामने बात करती हूं. रिलैक्स.”
अंजलि ने मुझे समझाते हुए गले लगा लिया, तो लगा जैसे रो पडूंगी! अपनी असुरक्षा पर, अपनी जासूसी पर घिन-सी आ गई. अरे नेहा को हो गई होगी ग़लतफ़हमी. मैंने किसी पराई लड़की की बात पर बेमतलब का बवाल क्यों मचा दिया है? अंजलि थोड़ी दूर पर बैठी नेहा से बात करती जा रही थी और मैं अपने वहम के अपराधबोध में फंसती जा रही थी.
“मम्मा बात हो गई… वो कह रही है, श्योर नहीं है कि पापा ही थे, उसको लगा था बस.”

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अंजलि ने इतना बोलकर जैसे मेरे मन पर रखा भारी पत्थर उठा लिया था. मैंने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया और दिन गिने… प्रमोद फिर लखनऊ गए हुए थे और कल वो वापस आनेवाले थे. कितने ही प्लान बना डाले मैंने… इतने दिनों तक जो मन में बेमतलब की नाराज़गी पाले बैठी थी, उसने कितना दूर कर दिया था हम दोनों को! प्रमोद के वापस आते ही सबसे पहले तो उनकी पसंद का खाना बनाऊंगी, फिर जैसी इनको पसंद हूं, ठीक उसी तरह तैयार होकर कहीं घूमने जाऊंगी. मन में न जाने कितना कुछ सोचते हुए मैं अंजलि के घर से वापस आई और तैयारियों में लग गई.

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें

 

 

 

 

 

 

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Usha Gupta

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