ये माना समय बदल रहा है और लोगों की सोच भी. समाज कहने को तो पहले से कहीं ज़्यादा मॉडर्न ही गया है. लाइफ़स्टाइल बदल गई, सुविधाएं बढ़ गईं, लग्ज़री चीजों की आदतें हो गई… कुल मिलाकर काफ़ी कुछ बदल गया है, लेकिन ये बदलाव महज़ बाहरी है, दिखावाहै, छलावा है… दिखाने के लिए तो हम ज़रूर बदले हैं लेकिन भीतर से हमारी जड़ों में क़ैद कुछ रूढ़ियां आज भी सीना ताने वहीं कि वहींऔर वैसी कि वैसी खड़ी हैं… थमी हैं… पसरी हुई हैं. जी हां, यहां हम बात वही बरसों पुरानी ही कर रहे हैं, बेटियों की कर रहे हैं, बहनों की कर रहे हैं और माओं की कर रहे हैं… नानी-दादी, पड़ोसन और भाभियों की कर रहे हैं, जो आज की नई लाइफ़स्टाइल में भी उसी पुरानी सोच के दायरों में क़ैद है और उन्हें बंदी बना रखा हैखुद हमने और कहीं न कहीं स्वयं उन्होंने भी. भले ही जीने के तौर तरीक़ों में बदलाव आया है लेकिन रिश्तों में आज भी वही परंपरा चली आ रही है जिसमें लड़कियों को बराबरी कादर्जा और सम्मान नहीं दिया जाता. क्या हैं इसकी वजहें और कैसे आएगा ये बदलाव, आइए जानें. सबसे बड़ी वजह है हमारी परवरिश जहां आज भी घरों में खुद लड़के व लड़कियों के मन में शुरू से ये बात डाली जाती है कि वोदोनों बराबर नहीं हैं. लड़कों का और पुरुषों का दर्जा महिलाओं से ऊंचा ही होता है. उनको घर का मुखिया माना जाता है. सारे महत्वपूर्ण निर्णय वो ही लेते हैं और यहां तक कि वो घर की महिलाओं से सलाह तक लेना ज़रूरी नहीं समझते. घरेलू कामों में लड़कियों को ही निपुण बनाने पर ज़ोर रहता है, क्योंकि उनको पराए घर जाना है और वहां भी रसोई में खाना हीपकाना है, बच्चे ही पालने है तो थोड़ी पढ़ाई कम करेगी तो चलेगा, लेकिन दाल-चावल व रोटियां कच्ची नहीं होनी चाहिए.ऐसा नहीं है कि लड़कियों की एजुकेशन पर अब परिवार ध्यान नहीं देता, लेकिन साइड बाय साइड उनको एक गृहिणी बनने कीट्रेनिंग भी दी जाती है. स्कूल के बाद भाई जहां गलियों में दोस्तों संग बैट से छक्के मारकर पड़ोसियों के कांच तोड़ रहा होता है तो वहीं उसकी बहन मां केसाथ रसोई में हाथ बंटा रही होती है.ऐसा नहीं है कि घर के कामों में हाथ बंटाना ग़लत है. ये तो अच्छी बात और आदत है लेकिन ये ज़िम्मेदारी दोनों में बराबर बांटीजाए तो क्या हर्ज है? घर पर मेहमान आ जाएं तो बेटियों को उन्हें वेल्कम करने को कहा जाता है. अगर लड़के घर के काम करते हैं तो आस-पड़ोस वाले व खुद उनके दोस्त तक ताने देते हैं कि ये तो लड़कियों वाले काम करता है.मुद्दा यहां काम का नहीं, सोच का है- ‘लड़कियोंवाले काम’ ये सोच ग़लत है. लड़कियों को शुरू से ही लाज-शर्म और घर की इज़्ज़त का वास्ता देकर बहुत कुछ सिखाया जाता है पर संस्कारी बनाने के इसक्रम में लड़के हमसे छूट जाते हैं.अपने घर से शुरू हुए इसी असमानता के बोझ को बेटियां ससुराल में भी ताउम्र ढोती हैं. अगर वर्किंग है तो भी घरेलू काम, बच्चों व सास-ससुर की सेवा का ज़िम्मा अकेले उसी पर होता है. ‘अरे अब तक तुम्हारा बुख़ार नहीं उतरा, आज भी राजा बिना टिफ़िन लिए ऑफ़िस चला गया होगा. जल्दी से ठीक हो जाओ बच्चेभी कब तक कैंटीन का खाना खाएंगे… अगर बहू बीमार पड़ जाए तो सास या खुद लड़की की मां भी ऐसी ही हिदायतें देती है औरइतना ही नहीं, उस लड़की को भी अपराधबोध महसूस होता है कि वो बिस्तर पर पड़ी है और बेचारे पति और बच्चे ठीक से खानानहीं खा पा रहे. ये चिंता जायज़ है और इसमें कोई हर्ज भी नहीं, लेकिन ठीक इतनी ही फ़िक्र खुद लड़की को और बाकी रिश्तेदारों को भी उसकीसेहत को लेकर भी होनी चाहिए. घर के काम रुक रहे हैं इसलिए उसका जल्दी ठीक होना ज़रूरी है या कि स्वयं उनकी हेल्थ केलिए उसका जल्दी स्वस्थ होना अनिवार्य है? पति अगर देर से घर आता है तो उसके इंतज़ार में खुद देर तक भूखा रहना सही नहीं, ये बात बताने की बजाय लड़कियों को उल्टेये सीख दी जाती है कि सबको खिलाने के बाद ही खुद खाना पत्नी व बहू का धर्म है. व्रत-उपवास रखने से किसी की आयु नहीं घटती और बढ़ती, व्रत का संबंध महज़ शारीरिक शुद्धि व स्वास्थ्य से होता है, लेकिनहमारे यहां तो टीवी शोज़ व फ़िल्मों में इन्हीं को इतना ग्लोरीफाई करके दिखाया जाता है कि प्रिया ने पति के लिए फ़ास्ट रखा तोवो प्लेन क्रैश में बच गया… और इसी बचकानी सोच को हम भी अपने जीवन का आधार बनाकर अपनी ज़िंदगी का अभिन्न हिस्साबना लेते हैं. बहू की तबीयत ठीक नहीं तो उसे उपवास करने से रोकने की बजाय उससे उम्मीद की जाती है और उसकी सराहना भी कि देखोइसने ऐसी हालत में भी अपने पति के लिए उपवास रखा. कितना प्यार करती है ये मेरे राजा से, कितनी गुणी व संस्कारी है. एक मल्टी नेशनल कंपनी में काम करने वाली सुप्रिया कई दिनों से लो बीपी व कमज़ोरी की समस्या झेल रही थी कि इसी बीचकरवा चौथ भी आ गया. उसने अपनी सास से कहा कि वो ख़राब तबीयत के चलते करवा चौथ नहीं कर पाएगी, तो उसे जवाब मेंये कहा गया कि अगर मेरे बेटे को कुछ हुआ तो देख लेना, सारी ज़िंदगी तुझे माफ़ नहीं करूंगी. यहां बहू की जान की परवाहकिसी को नहीं कि अगर भूखे-प्यासे रहने से उसकी सेहत ज़्यादा ख़राब हो गई तो? लेकिन एक बचकानी सोच इतनी महत्वपूर्णलगी कि उसे वॉर्निंग दे दी गई. आज भी हमारे समाज में पत्नियां पति के पैर छूती हैं और उनकी आरती भी उतारती दिखती हैं. सदा सुहागन का आशीर्वाद लेकरवो खुद को धन्य समझती हैं… पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद मिलने पर वो फूले नहीं समाती हैं… ऐसा नहीं है कि पैर छूकर आशीर्वाद लेना कोई ग़लत रीत या प्रथा है, बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद बेहद ज़रूरी है और ये हमारेसंस्कार भी हैं, लेकिन पति को परमेश्वर का दर्जा देना भी तो ग़लत है, क्योंकि वो आपका हमसफ़र, लाइफ़ पार्टनर और साथी है. ज़ाहिर है हर पत्नी चाहती है कि उसके पति की आयु लंबी हो और वो स्वस्थ रहे लेकिन यही चाहत पति व अन्य रिश्तेदारों कीलड़की के लिए भी हो तो क्या ग़लत है? और होती भी होगी… लेकिन इसके लिए पति या बच्चों से अपनी पत्नी या मां के लिए दिनभर भूखे-प्यासे रहकर उपवास करने कीभी रीत नहीं… तो फिर ये बोझ लड़कियों पर क्यों?अपना प्यार साबित करने का ये तो पैमाना नहीं ही होना चाहिए.बेटियों को सिखाया जाता है कि अगर पति दो बातें कह भी दे या कभी-कभार थप्पड़ भी मार दे तो क्या हुआ, तेरा पति ही तो है, इतनी सी बात पर घर नहीं छोड़ा जाता, रिश्ते नहीं तोड़े जाते… लेकिन कोई उस लड़के को ये नहीं कहता कि रिश्ते में हाथ उठानातुम्हारा हक़ नहीं और तुमको माफ़ी मांगनी चाहिए.और अगर पत्नी वर्किंग नहीं है तो उसकी अहमियत और भी कम हो जाती, क्योंकि उसके ज़हन में यही बात होती है कि जो कमाऊसदस्य होता है वो ही सबसे महत्वपूर्ण होता है. उसकी सेवा भी होनी चाहिए और उसे मनमानी और तुम्हारा निरादर करने का हक़भी होता है.मायके में भी उसे इसी तरह की सीख मिलती है और रिश्तेदारों से भी. यही कारण है कि दहेज व दहेज के नाम पर हत्या वआत्महत्या आज भी समाज से दूर नहीं हुईं.बदलाव आ रहा है लेकिन ये काफ़ी धीमा है. इस भेदभाव को दूर करने के लिए जो सोच व परवरिश का तरीक़ा हमें अपनाना हैउसे हर घर में लागू होने में भी अभी सदियों लगेंगी, क्योंकि ये अंतर सोच और नज़रिए से ही मिटेगा और हमारा समाज व समझअब भी इतनी परिपक्व नहीं हुईं कि ये नज़रिया बदलनेवाली नज़रें इतनी जल्दी पा सकें. पत्नी व महिलाओं को अक्सर लोग अपनी प्रॉपर्टी समझ लेते हैं, उसे बहू, बहन, बेटी या मां तो समझ लेते हैं, बस उसे इंसान नहींसमझते और उसके वजूद के सम्मान को भी नहीं समझते.गीता शर्मा
अगर आपको लगता है कि स्वाद सिर्फ़ खाने में ही होता है तो ऐसा नहीं है. ज़ायक़ा तो हर चीज़ का होता है और रिश्ते भी इससे अछूतेनहीं. रिश्तों को भी लज़ीज़ बनाया जा सकता है और उनकी भी अलग ही तरह की रेसिपीज़ होती हैं. तो चलिए ऐसी ही ज़ायक़ेदाररिलेशनशिप रेसिपीज़ के बारे में जानें और अपने रिश्तों को स्वादिष्ट बनाएं. सबसे पहले तो रिश्तों की सामग्री पर ध्यान दें. कितनी मात्रा में क्या डालना और किससे बचना है, चाहे वो प्यार हो या तकरार, अपनापन, लगाव या तनाव.सबसे पहले अपनेपन की मिठास घोलें. रिश्ते को और रिश्तेदारों को आप जब तक अपना नहीं मानेंगे तब तक वो स्वीट नहीं बनेंगे. बेहतर होगा रिश्ते को बोझ न समझकर मन से सबको अपनाएं.प्यार की चाशनी से रिश्तों को सींचें. प्यार होगा तो हर काम आसान होगा. मीठा बोलें, आप जितना स्वीटली बात करेंगे उतना ही सामने वाले के कानों को और मन को अच्छा लगेगा. रोमांस और रोमांच का तड़का भी लगाएं. आपका रिश्ता समय के साथ बोरिंग न बन जाए इसलिए उसमें रोमांस और रोमांच कातड़का ज़रूर लगते रहें.इश्क़ का नमक भी डालना न भूलें. एकदम कॉलेज रोमांस वाले अंदाज़ में पार्टनर से फ़्लर्ट करें. खाने में तेज़ नमक भले ही नुक़सानकरे और स्वाद भी बिगाड़ दे लेकिन रिश्तों में इश्क़ का नमक जितना तेज़ होगा रिश्तों का स्वाद और सेहत उतनी ही अच्छी रहेगी.एक-दूसरे को सरप्राइज़ गिफ़्ट्स या ऑफ़िस में सरप्राइज़ विज़िट दें. कभी छुट्टी के दिन कहीं बाहर न जाकर एक-दूजे के साथ पूरा दिन साथ बिताएं. रोमांटिक म्यूज़िक सुनें. एक साथ खाना बनाएं और अपनी बेडरूम लाइफ़ को भी रिवाइव करें. अपने रिश्ते को रूटीन न बनने दें, बल्कि उसे मसालेदार बनाएं. वीकेंड पर एक-दो दिन के लिए कहीं बाहर जाकर हनीमून पीरियड की यादें ताज़ा करें. एक-दूसरे की तारीफ़ करना न भूलें. चाहे वो उनके काम की हो या उनके प्रयास की. अपने रिश्ते में करारापन ऐड करने के लिए कॉम्प्लिमेंट्स का माइक्रोवेव यूज़ करें. इसमें अपने पार्टनर की तारीफ़ों को डालें औरगर्मागरम परोसें… ‘वाह, तुम्हारी आवाज़ में आज भी वही जादू है जो सबको अपना बना ले’, ‘तुम्हारे आंखें इतनी गहरी हैं कि बसडूब जाने को दिल करता है’, ‘आप आज भी एकदम फ़िट लगते हो…’ इस तरह की मसालेदार बातें आपके रिश्ते को स्पाइसीबनाती हैं.भरोसे के बाउल में सारी सामग्री को घोलें, क्योंकि जब तक रिश्ते में भरोसा नहीं पनपेगा तब तक प्यार, इश्क़ और मिठास इतनाकाम नहीं कर पाएंगे.केयरिंग और शेयरिंग के घी में रिश्तों को पकने दें. सिर्फ़ मीठा बोलकर, इश्क़ लड़ाकर कुछ नहीं होगा जब तक कि आप शेयरऔर केयर जैसी भावनाओं में रिश्तों को नहीं भिगोएंगे. मन कि बातें, अपने सुख-दुख ज़रूर एक-दूसरे से बांटें और एक-दूसरे कीदेखभाल और परवाह करने में भी कसर न छोड़ें.ईमानदारी की डिश पर रखकर सम्मान से गार्निश करके अपने रिश्ते को परोसें. रिश्तों में चीटिंग की कोई जगह नहीं होती इसलिएईमानदार रहें और एक-दूसरे को प्यार के साथ-साथ सम्मान भी दें. इन अनहेल्दी चीज़ों से बचाएं अपने रिश्ते को… ईगो और ईर्ष्या की तेज़ आंच से बचें. ये रिश्तों को जलाकर ख़ाक कर देती है. झगड़े व तानों की मिर्च से अपने रिश्ते में कड़वापन कभी न घोलें. एक्स्ट्रा मैरिटल अफ़ेयर के जंक फ़ूड से रिश्ते की सेहत ख़राब होगी, इसलिए बाहरी स्वाद के इस आकर्षण से बचें. तनाव के ऑइल में न डूबने दें खुद को भी और अपने रिश्ते को भी, क्योंकि तनावपूर्ण रिश्ता आपके मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्यके लिए ठीक नहीं.ऐसा नहीं है कि लड़ाई झगड़े हों ही नहीं, क्योंकि ये संभव नहीं. जहां प्यार है, वहां तकरार भी होगी लेकिन ये तकरार एकदमसलाद या साइड डिश जैसी होनी चाहिए. ग़ुस्से में कभी मुंह से ऐसा कुछ न कह दें कि बाद में आपको भी पछताना पड़े. संयम की स्वीटडिश हमेशा मौजूद रहनी चाहिए.हल्की नोक-झोंक तो ठीक है लेकिन लड़ाई-झगड़ा इतना ज़्यादा न हो कि आपके प्यार की आइसक्रीम ही पिघल जाए.स्वार्थ और ब्लैकमेलिंग का फैट न चढ़ने दें अपने रिलेशनशिप पर. अक्सर हम अपनी सुविधा के लिए रिश्तों में भी स्वार्थी बन जातेहैं और अपने अनुसार चीजें करवाने के लिए पार्टनर को इमोशनली ब्लैकमेल करने लग जाते हैं. जिससे पार्टनर का आप पर सेभरोसा उठने लगता है और आपका सम्मान भी कम होने लगता है. बेहतर होगा अपने स्वार्थ के फैट की परत इतनी न चढ़ा लें कि डायटिंग की नौबत आ जाए और फिर डायटिंग से भी वो उतर नपाए.हर चीज़ को सिर्फ़ अपने नज़रिए से ही न देखें, बाकी लोगों का नज़रिया भी देखें, वरना रिश्ता या तो बर्फ़ जैसा ठंडा पड़ जाएगाया फिर जले खाने की तरह ही जल जाएगा. पैसों की रोटियों पर अपने रिश्ते की रेसिपी न बनाएं. प्यार और रिश्तों के बीच जब पैसा आ जाता है तो बहुत कुछ ख़राब हो जाताहै. बेहतर होगा संयमित और संतुलित मात्रा में सारे मसाले डालें. पैसों और ज़िम्मेदारियों को लेकर भी शुरुआत से ही साफ़-साफ़सब कुछ तय कर लें ताकि आपका रिश्ता हमेशा फ़्रेश और क्रिस्पी बना रहे. गीता शर्मा
बदलते वक्त के साथ रिश्तों की ज़रूरतें, गहराई, नैतिक मूल्य और नज़रिए में भी बदलाव आ रहा है. एक वक्त…
रिश्ते अपने आप में खूबसूरत होते हैं और इनकी खूबसूरती छिपी है इनके बंधनों में, इनकी ज़िम्मेदारियों में और इनसे जुड़ी खट्टी-मीठीशिकायतों में. लेकिन अक्सर हम इन चीजों को भूलकर सिर्फ़ इनको बोझ समझने लगते हैं जिससे रिश्तों में नकारात्मकता आ जाती हैऔर इनकी ब्यूटी खोने लगती है. बेहतर होगा रिश्तों से जुड़ी ज़िम्मेदारियों को बोझ न समझकर उनको प्यार से निभाएं. यही सोच आपके रिश्ते को खूबसूरत बनाएगी. रिश्तों को लेकर यथार्थ में जीएं. ख़्वाबों की दुनिया में न रहें. रिश्ते अपने साथ खूबसूरती लाते हैं लेकिन उनसे जुड़ी कई जिम्मेदारियां भी होती हैं. अपनी इन ज़िम्मेदारियों को समझदारी और प्यार से निभाएं. सिर्फ़ आप ही नहीं घर में सभी को अपनी जिम्मेदारियां समझनी ज़रूरी हैं. बेहतर होगा आप सभी अपनी-अपनी ड्यूटी बांट लें ताकि किसी एक पर बोझ न पड़े. लेकिन मात्र ड्यूटी बांटने से काम नहीं चलेगा, इन ड्यूटी को ज़िम्मेदारी से निभाना भी उतना ही ज़रूरी है. ये तभी संभव है जब आप सकारात्मक सोच और पूरे मन से अपने रिश्तों के साथ-साथ उनसे जुड़ी ज़िम्मेदारियों को भी अपनाएं. हर रिश्ते में एडजेस्टमेंट होते हैं. आप अकेले नहीं हैं, इसलिए ये सोचना कि अरे मेरी पड़ोसन को देखो कितनी लकी है, रोज़ नईसाड़ी पहनती है, बड़ी गाड़ी है… और घर में सास-ससुर भी नहीं. वो तो ऐश करती है. काश मेरी भी लाइफ़ ऐसी ही होती… वहीं आपकी पड़ोसन ये सोचती है कि कितनी लकी हैं ये. घर में बड़े-बुज़ुर्ग हैं… भरा-पूरा परिवार है. अपनों का साथ है… येअकेलापन तो नहीं जो मेरी ज़िंदगी में है… काश मेरी भी ऐसी ही फ़ैमिली होती… एक बात याद रखिए ख़ुशियां सिर्फ़ सुख-सुविधा या पैसों में ही नहीं होती… प्यार और अपनेपन से उपजती है ख़ुशियां. आपके सिर पर कई जिम्मेदारियां हैं लेकिन ये न सोचें कि अकेले रहने या ज़्यादा पैसा होने पर जिम्मेदारियां या मुश्किलें नहींआतीं. आपकी पड़ोसन अकेले रहती है लेकिन आपने ये भी तो नोटिस किया होगा कि सारे काम भी वो अकेले करती है- बैंक, पोस्टऑफ़िस, ऑफ़िस वर्क से लेकर बाकी सब उसको अकेले करने पड़ते हैं क्योंकि उसके पति तो अक्सर टूर पर रहते हैं. एक बात मानकर चलें कि काम और जिम्मेदारियों से आप बच नहीं सकते, इसलिए रो-रोकर दुखी मन से कुढ़कर करने से बेहतरहै उनको ख़ुशी-ख़ुशी निभाएं. सिर्फ़ महिलाएं ही नहीं, पुरुषों पर भी यही बात और नियम लागू होते हैं कि अगर परिवार है तो काम व जिम्मेदारियां भी होंगी तोबेहतर होगा अपने पार्टनर ब अन्य घरवालों के साथ कदम से कदम मिलाकर काम करें जिससे बोझ का एहसास कम होगा औरआपका मूड भी लाइट रहेगा.रिश्तों की खूबसूरती अपनेपन में ही है. रिश्तों को खूबसूरत बनाए रखने के लिए अपना अहं, क्रोध और ईर्ष्या जैसी भावनाओं सेऊपर उठना ज़रूरी है. गलती हो जाने पर सॉरी कह देने से आप छोटे नहीं होंगे. घर के काम में पत्नी का हाथ बंटाने से आप जोरू के ग़ुलाम नहीं बन जाएंगे. पत्नी की सलाह लेने से आपका पुरुषत्व कम नहीं हो जाएगा. ऑफ़िस से आने के बाद अपना सामान अपनी जगह पर रखने से, अपने कपड़े खुद निकालकर पहनने से और अपने जूतों को खुदपॉलिश करने से आप किसी पर एहसान नहीं करेंगे, बल्कि अपना ही काम करके ज़िम्मेदार बनेंगे और अपना काम अपनी पत्नी याघर की अन्य स्त्री के भरोसे न छोड़ने पर आप उनकी मदद ही करेंगे, क्योंकि इससे उनकी ड्यूटी थोड़ी कम हो जाएगी और वो ख़ुशहोंगी आपको यूं ज़िम्मेदार बनता देख. अक्सर घरों में देखा गया है कि जब भी कोई पुरुष बाहर से आता है तो घर की लड़कियां व महिलाएं उसकी सेवा-पानी में जुटजाती हैं. इसमें कोई बुराई भी नहीं, क्योंकि कोई बाहर से थका-हारा आता है तो उसे चाय-पानी पिलाकर रिलैक्स करना अच्छीबात है, लेकिन जब कोई महिला बाहर से आती है तो उसे कोई पानी की भी नहीं पूछता… ये घर में मौजूद सदस्यों की ड्यूटी वज़िम्मेदारी है, फिर चाहे वो पुरुष हो या महिला कि वो उनको चाय-पानी पिलाकर थोड़ा रेस्ट करने का मौक़ा दें. अगर घर में कोई मेहमान आ जाए तो सभी को मिल-जुलकर काम करना चाहिए और घर के बड़ों को मेहमानों के साथ वक्तगुजरना चाहिए. अगर ननद की सहेली आई है तो देवर और भाभी को काम का मोर्चा सम्भालकर ननद को सहेली संग वक्त चिल करने देना चाहिएऔर अगर भाभी की सहेली आई है तो ननद और देवर को भाभी की ज़िम्मेदारी बांट लेनी चाहिए.अगर सभी लोग पोज़िटिविटी के साथ अपनी ड्यूटी व ज़िम्मेदारियों के प्रति थोड़े फ़्लेक्सिबल होकर ख़ुशी-ख़ुशी काम करें तोरिश्तों की खूबसूरती और बढ़ जाती है. ये न सोचें कि शाम की चाय तो भाभी ही बनाएगी, अगर भाभी को सर्दी-ज़ुकाम हुआ है और वो रेस्ट कर रही है तो आप उनकोअदरक वाली चाय बनाकर पिला दें. इससे वो भी दो कदम आगे बढ़कर आपका साथ देगी. संडे को सबको आराम और छुट्टी का हक़ होता है लेकिन मां का क्या? वो तो लगातार काम करती है और संडे तो और काम बढ़जाता है क्योंकि सबको कुछ न कुछ स्पेशल खाना होता है… क्यों न हर संडे को स्पेशल बनाने के लिए एक ग्रुप बना दिया जाएऔर मां को उस दिन आराम दिया जाए? घर के पुरुष एक संडे कुछ ख़ास बनाकर खिलाएं, इसी तरह घर के युवा किसी एक संडे को कुछ मॉडर्न स्टाइल फ़ूड बनाकरखिलाएं और मां व भाभी को आराम से एंजॉय करने दिया जाए.इस तरह हर संडे को आप अपनी ड्यूटी व ज़िम्मेदारी टर्न बाय टर्न पूरी कर सकते हैं. इससे चेंज भी मिलेगा और ख़ुशियां भी. किसी एक संडे को सभी बाहर डिनर या लंच या मूवी का प्लान रखें.इसी तरह महिलाओं को भी चाहिए कि वो पेपर वर्क, बैंक या पोस्ट ऑफ़िस के काम के लिए सिर्फ़ पुरूषों पर निर्भर न रहें और नये सोच बना लें कि अरे ये काम तो मर्दों का होता है. सबको सब काम आने चाहिएं और अगर आप ये अपेक्षा रखती हैं कि पुरुषघर के काम में मदद करें तो कभी-कभार इमर्जेन्सी में आपको भी बाहर के कामों में उनकी मदद करनी चाहिए.आपसी सहयोग से ही काम होते हैं. वैसे भी आजकल डिजिटल वर्ल्ड में ये सब काम भी बेहद आसान हो गए हैं. टेक्नॉलोजी कोनज़र अंदाज़ न करें, अपडेटेड रहें.आप अपनी ड्यूटी से भाग नहीं सकते इसलिए रोज़ उनका रोना रोने की बजाए ड्यूटी में भी ब्यूटी देखें. उनको इस तरह रोल करकेएक्साइटिंग बनाएं.रिश्ते फ़िल्मी दुनिया की तरह नहीं होते लेकिन उनको किसी पारिवारिक फ़िल्म की तरह रोचक व रंगीन ज़रूर बनाया जा सकताहै, बशर्ते आप हक़ीक़त में जीएं और सच को अपनाएं. खूबसूरती से निभाए गई जिम्मेदारियां आपके रिश्ते को भी ब्यूटीफुल बनाएगी. शिकवे-शिकायत अपनी जगह हैं लेकिन हमेशा कम्प्लेन बॉक्स बनकर न घूमें, सबके ईमानदारी से किए प्रयासों को सराहें औरउनमें खूबियां भी देखें, अगर किसी से कोई गलती भी हो जाए तो उसे अपराधी न महसूस कराएं बल्कि यही समझाएं कि ये किसीसे भी हो सकता है… यही अपनापन है जो आपके रिश्तों को भी सुंदर बनाएगा. पिंकी शर्मा
ख़ुशहाल शादीशुदा ज़िंदगी का लुत्फ़ उठाने के लिए ज़रूरी है पति-पत्नी का एक-दूसरे को समझना, एक-दूसरी का ख़्याल रखना आदि,…
पत्थर की मुंडेर पर बैठी मैं तालाब की ओर देख रही थी. दूर तक फैली जलराशि पर अलसाई-सी अंगड़ाइयां लेती हुई एक के बाद एकलहरें चली आ रही थीं. हवा में अजीब-सी खनक थी. शहर के कोलाहल को चुप कराता यह तालाब और इसके किनारे बना यहसांस्कृतिक भवन जहां संगीत, साहित्य और कला की त्रिवेणी का संगम होता रहता था, इसकी खुली छत पर बैठ मैं घंटों ढलती शाम केरंगों को अपने सीने में समेटते बड़े तालाब को देखती रहती. आज भी मैं लहरों संग डूब-उतरा रही थी कि अचानक एक रूमानी गीत कामुखड़ा हौले से आकर कानों में गुनगुनाने लगा. जाने उस आवाज़ में ऐसी क्या कशिश थी कि मैं उसमें भीगती गई. शाम अचानक सेसुरमई हो उठी. तालाब के उस पार बनी सड़क की स्ट्रीट लाइटों की रौशनी तालाब के पानी में झिलमिलाने लगी. ऐसा लग रहा था जैसेमन के स्याह कैनवास पर किसी ने जुगनुओं को उतार दिया हो. मैं धीमे-धीमे उस आवाज़ के जादू में बंधती जा रही थी. एक-एक शब्द प्रेम जैसे तालाब की लहरों पर तैरता हुआ मुझ तक आ रहा था. सुरों में भीगी उन लहरों पर मैं जैसे बहती चली जा रही थी. बहिरंग में शायद संगीत का कोई कार्यक्रम था. जब भी दिल ने कोई दुआ मांगी, ख्यालों में तुम ही रहे छाए… जब भी दिल ने इश्क को सोचा, ख्वाबों में बस तुम ही आए... जाने कब उस आवाज़ की कशिश मुझे बहिरंग की ओर खींच कर ले गई. पैर अपने आप ही चल पड़े. मुक्ताकाश के मंच पर गायक और उसके सहायक वादक बैठे थे. सामने सीढ़ियों पर श्रोताओं की भीड़ बैठी गाना सुन रही थी. मैं भी उनके बीच जगह बनाती एक कोने मेंसीढ़ियों पर बैठ गई. सिर्फ़ आवाज़ में ही नहीं, उसके चेहरे में भी ग़ज़ब की कशिश थी. कला की साधना में तपा एक परिपक्व गौरव सेदीप्त चेहरा. गर्दन तक लहराते घुंघराले बाल. गाते हुए घुंघराली लटें लापरवाह-सी माथे और गालों पर झूल रही थीं. आंखें बंद कर जब वह आलाप-ताने लेता तो ऐसा लगता मानों साक्षात कोई गन्धर्व संगीत साधना कर रहा हो. मद्धिम पीले उजास में डूबे लैम्प की छाया मेंढलती सांझ के रंग भी घुल कर उसके चेहरे पर फैल रहे थे. मेरे दिल की कश्ती सुरों के समंदर में डोल रही थी और उस रूमानी आवाज़का जादू डोर बनकर उस कश्ती को और गहराई तक खींच कर ले जा रहा था. मंत्रमुग्ध श्रोताओं पर से बेपरवाही से फिसलती उसकी दृष्टि अनायास ही मेरे चेहरे पर ठिठक गई. हमारी आंखें मिली, मेरा दिल धड़कगया. फिर तो जैसे मेरा चेहरा उसकी आंखों का स्थायी मुकाम हो गया. आते-जाते उसकी दृष्टि मुझपर ठहर जाती, जिस तरह तेज़ धूपसे त्रस्त कोई मुसाफिर किसी घने पेड़ की छांव में ठहर जाता है और मुखड़े की पंक्तियां ‘जब भी दिल ने इश्क को सोचा, ख्वाबों में बसतुम ही आए’ गाते हुए उसकी गहरी नज़र जैसे आंखों के रास्ते मेरे दिल का हाल जानने को बेताब होती रही. ढाई घंटे बाद जबऔपचारिक रूप से कार्यक्रम खत्म हो गया, तो लोगों की भीड़ उसके चारों ओर उमड़ पड़ी, लेकिन वह न जाने किसे तलाश रहा था औरवो जिसे तलाश रहा था वो तो खुद ही उसके सुरों में पूरी तरह भीग चुकी थी. आते हुए देख आई थी 'अनुराग' यही नाम था उसका. तभीउसके सुरों में इतना प्रेम भरा था. अगले दो दिन भी उसका कार्यक्रम था. मैं पहले ही पीछे वाली सीढ़ियों पर भीड़ में छुपकर बैठ गई. आजफिर उसकी आंखें अपना ठिकाना तलाश रही थीं, मगर हर बार मायूस हो जातीं. कल वाली खुशगवार खुमारी आज आंखों में नहीं थी. मैंथोड़ा खुले में बैठ गई. जैसे ही उसकी नज़रें मुझपर पड़ीं, वह खिल उठा. उसके चेहरे की रंगत ने उसके दिल का हाल खुल कर कह दियाथा. दिल कर रहा था कि वो यूं ही गाता रहे और मैं रात भर उसके सुरों की कश्ती में सवार हो प्रेम के दरिया में तैरती रहूं. तीसरे दिन मन बहुत उदास था. आज उसके गाने का आखरी दिन था. कार्यक्रम के बाद मैं भीड़ में सबसे पीछे खड़ी थी. उसे घेरकर लोगबधाइयां दे रहे थे, लेकिन वह भीड़ को चीरते हुए धीरे-धीरे मेरी तरफ आया, एक भरपूर नज़र से मुझे देखा और चुपचाप अपना फोन नम्बर लिखा हुआ कागज़ मुझे थमा दिया. आज सत्रह बरस हो गए हम प्रेम की कश्ती में सवार हो इकट्ठे सुरों के दरिया में तैर रहे हैं. मेरा चेहरा उसकी आंखों का स्थाई ठिकानाबन चुका है और मुझे देखकर उसकी बेतरतीब घुंघराली लटें शरारत से गुनगुना उठती हैं- ‘जब भी दिल ने इश्क को सोचा…ख्वाबों में बस तुम ही आये’ वो ख्वाब जो हकीकत में बदल चुका है. विनीता राहुरीकर
समय के साथ रिश्ते (relationship) मज़बूत होने चाहिए लेकिन अक्सर होता उल्टा है, वक्त बीतने के साथ-साथ हमारे रिश्ते कमज़ोर पड़ने लगते हैं और जब तक हमें एहसास होता है तब तक देर हो चुकी होती है. बेहतर होगा समय रहते अपने रिश्तों को समय (quality time) दें ताकि वो मज़बूत बने रहें. वक्त देने का मतलब ये नहीं कि बस आप हाथों में हाथ डाले दिन-रात चिपके रहें, बल्कि जब भी ज़रूरत हो तो सामनेवाले को येभरोसा रहे कि आप उनके साथ हो. रिश्ते में अकेलापन महसूस न हो. अक्सर ऐसा होता है कि किसी के साथ रहते हुए भी हम अकेलापन महसूस करते हैं, क्योंकिरिश्तों से हम जिस सहारे की उम्मीद करते हैं वो नहीं मिलता. ऐसे में मन में यही ख़याल आता है कि ऐसे रिश्ते से तो हम अकेले हीअच्छे थे. इसलिए बेहतर होगा अपने रिश्तों में ऐसा अकेलापन और ठंडापन न आने दें.साथ-साथ होकर भी दूर-दूर न हों. हो सकता है आप शारीरिक रूप से साथ हों लेकिन अगर मन कहीं और है, ख़याल कहीं और हैतो ऐसे साथ का कोई मतलब नहीं. इसलिए जब भी साथ हों पूरी तरह से साथ हों,पास-पास बैठे होने पर भी एक-दूसरे के बीच खामोशी न पसरी हो. क्या आपका रिश्ता उस हालत में आ चुका है जहां आपकेबीच कहने-सुनने को कुछ बचा ही नहीं? ये ख़ामोशी दस्तक है कि आप अपने रिश्तों को अब समय दें और इस ख़ामोशी को तोड़ें.अपनी-अपनी अलग ही दुनिया में मशगूल न हों. आप अपने-अपने कामों और दोस्तों में व्यस्त हैं लेकिन अपनों के लिए ही अपनेसमय का एक छोटा सा हिस्सा भी न हो आपके पास तो दूरियां आनी लाज़मी है. इससे बचें. अपनी दुनिया में अपनों को भीशामिल रखें और उनके लिए हमेशा आपकी दुनिया में एक ख़ास जगह होनी ही चाहिए.अपने कामों में इतना मसरूफ न हों कि रिश्तों के लिए वक्त ही न हो.माना आज की लाइफ़ स्टाइल आपको बिज़ी रखती हैलेकिन क्या आप इतने बिज़ी हैं कि अपने रिश्तों तक के लिए समय नहीं बचता आपके पास? जी नहीं, ऐसा नहीं होता बस हमारीप्राथमिकताएं बदल गई होती हैं. लेकिन ध्यान रखें कि अपने रिश्तों को अपनी प्राथमिकता की सूची में सबसे ऊपर की जगह दें वरना हर तरफ़ से अकेले हो जाएंगे.अपनी डिजिटल दुनिया में अलग सी अपनी दुनिया न बसा लें. सोशल मीडिया पर आपके दोस्त होंगे, उनसे चैटिंग भी होती होगीलेकिन ध्यान रखें कि ये दुनिया एक छलावा है और हक़ीक़त से कोसों दूर. यहां धोखा खाने की गुंजाइश सबसे ज़्यादा होती है. आपको जब ज़रूरत होगी या जब आप मुसीबत में होंगे तो आपके अपने रियल लाइफ़ के रिश्ते ही आपके साथ होंगे न किडिजिटल दुनिया के रिश्ते. इसलिए एक सीमित तक ही डिजिटल दुनिया से जुड़ें.रिश्तों को क्वांटिटी की बजाय क्वालिटी टाइम दें. दिन-रात साथ रहने को साथ होना नहीं कहा जा सकता बल्कि जब भी साथ होंतो पूरी तरह से साथ हों. एक-दूसरे को स्पेशल फ़ील कराएं. कुछ स्पेशल करें. यूं ही बैठकर कभी पुरानी बातें याद करें, कभीएक-दूसरे को रोमांटिक गाना गाकर सुनाएं या कभी कोई अपनी सीक्रेट फैंटसीज़ के बारे में बताएं. साथी की फ़िक्र हो, ज़िम्मेदारीका एहसास हो, दूर रहने पर भी कनेक्शन फ़ील हो, हाल-चाल जानों- यही मतलब है क्वालिटी का.दूर होकर भी पास होने का एहसास जगाएं. ऑफ़िस में हों या टूर पर रोमांस और कम्यूनिकेशन कम न हो. आप कैसे और कितनाएक-दूसरे को मिस करते हो ये बताएं. आपकी दोनों एक-दूसरे की लाइफ़ में कितना महत्व रखते हैं ये फ़ील कराएं.फ़ोन पर बात करें या मैसेज करें. माना आप काम में बिज़ी हैं पर फ़ोन करके तो हाई-हेलो कर ही सकते हैं. लंच टाइम में तो कॉलकर ही सकते हैं. फ़ोन नहीं तो मैसेज ही करें पर कनेक्टेड रहें.रात को साथ बैठकर खाना खाएं. दिनभर तो वक्त नहीं मिलता लेकिन रात का खाना तो साथ खाया ही जा सकता है. और खानाखाते वक्त मूड हल्का रखें, पॉज़िटिव मूड के साथ पॉज़िटिव बातें करें. दिनभर की बातें बताएं, शेयर करें. सोने से पहले रोज़ दस-पंद्रह मिनट का वक्त दिनभर की बातें करने, बताने और शेयरिंग के लिए रखें.केयरिंग की भावना जगाएं. प्यार और रोमांस अपनी जगह है लेकिन केयर की अपनी अलग ही जगह होती है रिश्तों में. बीमारी मेंडॉक्टर के पास खुद ले जाना, घर का काम करना, अपने हाथों से खाना खिलाना- ये तमाम छोटी-छोटी चीजें रिश्तों को मज़बूतबनाती हैं.तबीयत का हाल पूछें, कोई परेशानी हो तो उसका सबब जानें. ज़रूरी नहीं कि बीमारी में ही हाल पूछा जाए, कभी यूं ही हल्कासिर दर्द होने पर भी पूछा जा सकता है कि आराम आया या नहीं… फ़िक्रमंद होना ठीक है पर इस फ़िक्र को दर्शाना भी ज़रूरी है.काम और ज़िम्मेदारियां बांटें. रिश्तों में एक-दूसरे का बोझ हल्का करना बेहद ज़रूरी है. वीकेंड को स्पेशल बनाएं. बाहर से खाना मंगावाएं या डिनर पर जाएं. मूवी प्लान करें या यूं ही वॉक पर जाएं. फैमिली हॉलिडेज़ प्लान करें. ये आपको ही नहीं आपके रिश्तों को भी रिफ़्रेश कर देती हैं. ज़रूरी नहीं किसी बड़ी या महंगी जगहपर ही जाया जाए. आसपास के किसी रिज़ॉर्ट या हॉलिडे होम में भी क्वालिटी वक्त बिताया जा सकता है.बात करें, परेशनियां बांटें, राय लें. सामनेवाला परेशान लग रहा है तो खुद अंदाज़ा लगाने से बेहतर है बात करें और उनकी परेशानीया मन में क्या चल रहा है ये जानें और उसे दूर करने में मदद करें.काम की ही तरह अपने रिश्तों को भी अहमियत दें और उनके लिए भी अलग से समय निकालें. धोखा न दें और रिश्तों में झूठ न बोलें. सम्मान दें और ईर्ष्या व ईगो से दूर रहें. सेक्स लाइफ़ को इग्नोर न करें. इसे स्पाइसी बनाए रखने के लिए कुछ नया ज़रूर ट्राई करते रहें. लेकिन सेक्स मशीनी क्रिया नहो, उसमें प्यार और भावनाओं का होना सबसे ज़रूरी है. भोलू शर्मा
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