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लेडी लक के बहाने महिलाओं को निशाना बनाना कितना सही? (Targeting Women In Name Of Lady Luck… )

मैं ख़्वाब नहीं, हक़ीक़त हूं… मैं ख़्वाहिश नहीं, एक मुकम्मल जहां हूं… किसी की बेटी, बहन या अर्द्धांगिनी बनने से पहले मैं अपने आप में संपूर्ण आसमान हूं, क्योंकि मैं एक व्यक्ति हूं, व्यक्तित्व हूं और मेरा भी अस्तित्व है… मुझमें संवेदनाएं हैं, भावनाएं हैं, जो यह साबित करती हैं कि मैं भी इंसान हूं… 

जी हां, एक स्त्री को हम पहले स्त्री और बाद में इंसान के रूप में देखते हैं या फिर यह भी हो सकता है कि हम उसे स़िर्फ और स़िर्फ एक स्त्री ही समझते हैं… उसके अलग अस्तित्व को, उसके अलग व्यक्तित्व को शायद ही हम देख-समझ पाते हैं. यही वजह है कि उसे हम एक शगुन समझने लगते हैं. कभी उसे अपना लकी चार्म बना लेते हैं, तो कभी उसे शापित घोषित करके अपनी असफलताओं को उस पर थोपने का प्रयास करते हैं…

…बहू के क़दम कितने शुभ हैं, घर में आते ही बेटे की तऱक्क़ी हो गई… बेटी नहीं, लक्ष्मी हुई है, इसके पैदा होते ही बिज़नेस कितना तेज़ी से बढ़ने लगा है… अक्सर इस तरह के जुमले हम अपने समाज में सुनते भी हैं और ख़ुद कहते भी हैं… ठीक इसके विपरीत जब कभी कोई दुखद घटना या दुर्घटना हो जाती है, तो भी हम कुछ इस तरह की बातें कहते-सुनते हैं… इस लड़की के क़दम ही शुभ नहीं हैं, पैदा होते ही यह सब हो गया या फिर ससुराल में नई बहू के आने पर यदि कोई दुर्घटना हो जाती है, तब भी इसी तरह की बातें कहने-सुनने को मिलती हैं. कुल मिलाकर बात यही है कि हर घटना को किसी स्त्री के शुभ-अशुभ क़दमों से जोड़कर देखा जाता है और आज हम इसी की चर्चा करेंगे कि यह कहां तक जायज़ है?

– अगर किसी सेलिब्रिटी की लाइफ में कोई लड़की आती है, तो उसकी हर कामयाबी या नाकामयाबी को उस लड़की से जोड़कर देखा जाने लगता है. ऐसे कई उदाहरण हमने देखे हैं, फिर चाहे वो क्रिकेटर हो या कोई एक्टर, उनकी परफॉर्मेंस को हम उस लड़की को पैमाना बनाकर जज करने लगते हैं.

– यहां तक कि हम ख़ुद भी बहुत ही सूक्ष्म स्तर पर यह सब करते हैं, चाहे जान-बूझकर न करें,  लेकिन यह हमारी मानसिकता बन चुकी है.  श्र हम ख़ुद भी बहुत गर्व महसूस करते हैं, जब हमारा कोई अपना हमारे लिए यह कहे कि तुम मेरे लिए बहुत लकी हो…

– लेडी लक की अक्सर बहुत बातें की जाती हैं और इसे हम सकारात्मक तरी़के से ही लेते हैं, लेकिन ग़ौर करनेवाली बात यह है कि हर सुखद व दुखद घटना को किसी स्त्री के लकी या अनलकी होने से जोड़ना सही है?

– कर्म और भाग्य सबके अपने ही होते हैं, किसी दूसरे को अपने कर्मों या अपने भाग्य के लिए ज़िम्मेदार बताना कितना सही है?

– 42 वर्षीया सुनीता शर्मा (बदला हुआ नाम) ने इस संदर्भ में अपने अनुभव शेयर किए, “मेरी जब शादी हुई थी, तो मेरे पति और ससुरजी का बिज़नेस काफ़ी आगे बढ़ने लगा था. मुझे याद है कि हर बात पर मेरे पति और यहां तक कि मेरी सास भी कहती थीं कि सुनीता इस घर के लिए बहुत लकी है. मेरे पति की जब भी कोई बड़ी बिज़नेस डील फाइनल होती थी, तो घर आकर मुझे ही उसका श्रेय देते थे कि तुम जब से ज़िंदगी में आई हो, सब कुछ अच्छा हो रहा है. कितनी लकी हो तुम मेरे लिए… उस व़क्त मैं ख़ुद को बहुत ही ख़ुशनसीब समझती थी कि इतना प्यार करनेवाला पति और ससुराल मिला है. फिर कुछ सालों बाद मुझे बेटा हुआ, सब कुछ पहले जैसा ही था, बिज़नेस के उतार-चढ़ाव भी वैसे ही थे, कभी अच्छा, तो कभी कम अच्छा होता रहता था. फिर बेटे के जन्म के 3 साल बाद मुझे बेटी हुई. हम सब बहुत ख़ुश थे कि फैमिली कंप्लीट हो गई.

मेरे पति भी अक्सर कहते कि तुम्हारी ही तरह देखना, हमारी बेटी भी हमारे लिए बहुत लकी होगी. मैं ख़ुश हो जाती थी उनकी बातें सुनकर, लेकिन बिटिया के जन्म के कुछ समय बाद ही उनको बिज़नेस में नुक़सान हुआ, तो मेरी सास ने कहना शुरू कर दिया कि जब से गुड़िया का जन्म हुआ है, बिज़नेस आगे बढ़ ही नहीं रहा… मेरे पति भी बीच-बीच में कुछ ऐसी ही बातें करते, तब जाकर मुझे यह महसूस हुआ कि हम कितनी आसानी से किसी लड़की को अपने लिए शुभ-अशुभ घोषित कर देते हैं और यहां तक कि मैं ख़ुद को भी इसके लिए ज़िम्मेदार मानती हूं. जब पहली बार मुझे अपने लिए यह सुनने को मिला था, उसी व़क्त मुझे टोकना चाहिए था, ताकि इस तरह की सोच को पनपने से रोका जा सके.

मैंने अपने घरवालों को प्यार से समझाया, उनसे बात की, उन्हें महसूस करवाया कि इस तरह किसी भी लड़की को लकी या अनलकी कहना ग़लत है. वो लोग समझदार थे, सो समझ गए. कुछ समय बाद हमारा बिज़नेस फिर चल पड़ा, तो यह तो ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव लगे रहते हैं, इसके लिए किसी की बेटी-बहू को ज़िम्मेदार ठहराना बहुत ही ग़लत है. समाज को अपनी धारणा बदलनी चाहिए.”

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– भले ही हमें यह बात छोटी-सी या ग़ैरज़रूरी लगे, लेकिन अब यह ज़रूरी हो गया है कि हम इस तरह की मानसिकता से बाहर निकलें कि जब कोई क्रिकेटर यदि आउट ऑफ फॉर्म हो, तो उसके लिए पूरा समाज उसकी सेलिब्रिटी गर्लफ्रेंड को दोषी ठहराने लगे. उस पर तरह-तरह के ताने-तंज कसे जाने लगें या उस पर हल्की बातें, अपशब्द, सस्ते जोक्स बनाकर सोशल मीडिया पर फैलाने लगें.

– हम ख़ुद भी इस कुचक्र का हिस्सा बन जाते हैं और इस तरह की बातें सर्कुलेट करते हैं. न्यूज़ में अपनी स्टोरी की टीआरपी बढ़ाने के लिए चटखारे ले-लेकर लोगों के रिएक्शन्स दिखाते हैं, लेकिन इन सबके बीच हम भूल जाते हैं कि जिसके लिए यह सब कहा जा रहा है, उसके मनोबल पर इसका क्या असर होता होगा…?

– किसी को भी किसी के लिए शुभ-अशुभ कहनेवाले भला हम कौन होते हैं? और क्यों किसी लेडी लक के बहाने हर बार एक स्त्री को निशाना बनाया जाता है?

– दरअसल, इन सबके पीछे भी हमारी वही मानसिकता है, जिसमें पुरुषों के अहं को तुष्ट करने की परंपरा चली आ रही है.

– हम भले ही ऊपरी तौर पर इसे अंधविश्‍वास कहें, लेकिन कहीं न कहीं यह हमारी छोटी मानसिकता को ही दर्शाता है.

– इस तरह के अंधविश्‍वास किस तरह से रिश्तों व समाज के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं यह समझना ज़रूरी है.

– किसी स्त्री के अस्तित्व पर ही आप प्रश्‍नचिह्न लगा देते हैं और फिर आप इसी सोच के साथ जीने भी लगते हैं. हर घटना को उसके साथ जोड़कर देखने लगते हैं… क्या यह जायज़ है?

– क्या कभी ऐसा देखा या सुना गया है कि किसी पुरुष को इस तरह से लकी-अनलकी के पैमाने पर तोला गया हो?

– चाहे आम ज़िंदगी हो या फिर सेलिब्रिटीज़, किसी भी पुरुष को इन सबसे नहीं गुज़रना पड़ता, आख़िर क्यों?

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– घूम-फिरकर हम फिर वहीं आ रहे हैं कि लेडी लक के बहाने क्यों महिलाओं को ही निशाना बनाया जाता है? और यह कब तक चलता रहेगा?

– सवाल कई हैं, जवाब एक ही- जब तक हमारे समाज की सोच नहीं बदलेगी और इस सोच को बदलने में अब भी सदियां लगेंगी. एक पैमाना ऐसी भी न जाने कितनी घटनाएं आज भी समय-समय पर प्रकाश में आती हैं, जहां किसी महिला को डायन या अपशगुनि घोषित करके प्रताड़ित या समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है. कभी किसी पेड़ से बांधकर, कभी मुंह काला करके, तो कभी निर्वस्त्र करके गांवभर में घुमाया जाता है… हालांकि पहले के मुकाबले अब ऐसी घटनाएं कम ज़रूर हो गई हैं, लेकिन पूरी तरह से बंद नहीं हुई हैं. ये और इस तरह की तमाम घटनाएं महिलाओं के प्रति हमारी उसी सोच को उजागर करती हैं, जहां उन्हें शुभ-अशुभ के तराज़ू में तोला जाता है.

– गीता शर्मा

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Aneeta Singh

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