हम सभी एक-दूसरे को समय न होने की दुहाई देते हैं, पर क्या कभी आपने एक पल के लिए भी यह सोचा है कि आपने जिस समय की सुई से ख़ुद को बांध लिया है, वही सुई आपके रिश्तों को किस कदर भेद रही है? यदि यूं ही चलता रहा, तो वह दिन दूर नहीं, जब इससे मिले ज़ख़्मों का दर्द न केवल हमारे रिश्तों में नज़र आएगा, बल्कि समाज में नासूर बनकर उभरेगा. ऐसा न हो, इसलिए रिश्तों को समय देना बेहद ज़रूरी है.
– सुबह की का़ॅफी के बाद नाश्ता, नाश्ते के बाद ऑफ़िस, ऑफ़िस के बाद रात का खाना और फिर इतने लंबे थके-हारे दिन के बाद गहरी नींद तो बहुत ही ज़रूरी है… क्यों आपका टाइम टेबल भी कुछ इसी तरह है ना? स़िर्फ आपकी ही नहीं, बल्कि आजकल अमूमन सभी की सुबह से शाम इसी तरह होती है. आज के टाइम टेबल में अगर सबसे ज़्यादा किसी चीज़ की कमी है, तो वह है समय की.
– आज हम में से किसी के पास वक़्त नहीं है. हम केवल अपने लिए जी रहे हैं. अगर किसी और का काम करना हो या फिर किसी से मिलने जाना हो, तो हम तुरंत कह देते हैं कि भई अभी टाइम नहीं है. बाकी रिेश्तेदारों की छोड़िए, आजकल तो पति-पत्नी को भी एक-दूसरे से मिलने की फुर्सत नहीं मिलती. कई पति-पत्नी तो वीक एंड पर ही मिल पाते हैं.
– इन सबके बावजूद क्या यह सच नहीं कि आज भी आप अपने घर के मिट्टी का वह आंगन नहीं भूली होंगी, जिसके बीचोंबीच तुलसी का एक पौधा हुआ करता था, जिसकी देखभाल बड़े जतन व प्यार से मां किया करती थी. मां रोज़ उस आंगन को साफ़ कर उस पर सुंदर-सी रंगोली बनाती थी. बस, समझ लीजिए कि हमारे रिश्ते भी उसी आंगन व तुलसी के पौधे के समान हैं, जिन्हें हमारे समय और जतन की ज़रूरत है. जितना अच्छा समय हम अपने प्रियजनों के साथ बिताएंगे, उतने ही हमारे रिश्ते मज़बूत होते जाएंगे. लेकिन आज शायद हम रिश्तों के बीच आती इन दूरियों को न तो समझ पा रहे हैं और न ही रिश्तों को उतनी गंभीरता से ले रहे हैं. जिस तरह हर चीज़ को अच्छा रहने के लिए रख-रखाव की ज़रूरत होती है, उसी प्रकार हमारे रिश्तों को सहेजने के लिए प्यार के कुछ लम्हों की ज़रूरत होती है. अगर रिश्तों को समय न दिया जाए, तो उनमें दूरियां बढ़ती ही जाएंगी. ये दूरियां भावनात्मक, वैचारिक और पति-पत्नी के मामले में शारीरिक भी हो सकती हैं.
हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि रिश्ते कोई डेली सोप सीरियल नहीं हैं, जिसमें बीच-बीच में कमर्शियल बे‘क आए. मनोवैज्ञानिक भी यह मानते हैं कि अगर किसी व्यक्ति के जीवन में उसके सभी रिश्ते स्वस्थ हैं, तो उसका जीवन काफ़ी ख़ुशहाल होगा, क्योंकि इससे उसका मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक स्तर अच्छा होता है.
आज की दौड़ती-भागती दिनचर्या में रिश्तों को समय देने जैसे मुद्दे को दक़ियानूसी करार दिया जाता है. सभी रिश्तों को बोझ समझते हैं, पर ज़रा सोचिए क्या आप अपने परिजनों व परिवार के साथ बिताया अच्छा समय हमेशा याद करना चाहते हैं या नहीं? आप उसे हमेशा याद करते हैं, क्योंकि उस अच्छे समय की यादें आपको सुकून देती हैं. क्या आपको अपने ऑफ़िस की किसी मीटिंग या कोई ऑफ़िशियल टूर याद करके ऐसा सुकून मिला है? आप बताएं या न बताएं आपका जवाब ज़रूर ना ही होगा. उसका कारण है कि वहां आप चाहे जितना समय बिताएं, पर वहां कोई रिश्ता नहीं है. तो याद रखें, दिल का चैन और सुकून हमेशा रिश्ते ही देते हैं.
आपको लगेगा कि इसका रिश्तों को टाइम देने से क्या संबंध है? लेकिन संबंध है. यदि आपको पता हो, तो हमारे त्योहारों में किसी न किसी रिश्ते से जुड़ा कोई न कोई रिवाज़ है. अगर करवाचौथ है, तो पति-पत्नी और सास बहू का त्योहार, यदि रक्षाबंधन है, तो भाई-बहन का त्योहार. स़िर्फ इतना ही नहीं, हमारे यहां ऐसे अनगिनत तीज-त्योहार, समारोह व रिवाज़ हैं, जिसमें परिवारजनों और प्रियजनों का साथ और उपस्थिति अनिवार्य होती है. समाज में ऐसी व्यवस्था इसलिए भी की गई है, ताकि आप अपने परिवार, अपनों के साथ समय बिता सकें. इससे रिश्तों में हमारा विश्वास और आस्था बनी रहती है. आज हम इन सभी चीज़ों से कतराते हैं, अपना जी चुराते हैं. रिश्तों से होनेवाली अमृतवर्षा से डरिए मत. एक बार इसमें भीगकर देखिए, आपके सारे तनाव, आपकी सारी चिंताएं धुल जाएंगी.
रिश्तों को क्वालिटी टाइम देने के लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी है कि आपकी उस रिश्ते में मन से आस्था होनी चाहिए. कोई भी रिश्ता नकारात्मक नहीं होता और रिश्ता है, तो अपेक्षाएं भी होंगी और अगर अपेक्षाएं हैं, तो मनमुटाव भी होंगे ही. यदि आप इन सभी चीज़ों को स्वीकार कर लें, तो छोटे-मोटे मनमुटाव कभी भी आपके मन में लकीर या दरार नहीं बन पाएंगे. मन में हमेशा यह सकारात्मक सोच रहने दें कि रिश्ते आपकी ज़रूरत हैं और इन्हें निभाना आपकी प्राथमिकता है.
– हम सभी की यह प्रवृत्ति होती है कि जब तक किसी भयानक परिणाम की चिंता या भय हमारे मन में न हो, तब तक हम परिस्थितियों को सुधारने की कोई कोशिश नहीं करते, फिर चाहे समस्या ग्लोबल वॉर्मिंग की हो या फिर स्वाइन फ्लू जैसी कोई बड़ी बीमारी की. जब तक समस्या विकट रूप न ले ले, तब तक हम उस पर ध्यान ही नहीं देते. आज हमारे रिश्ते भी इसी जद्दोज़ेहद से गुज़र रहे हैं. यदि जल्द ही कुछ न किया गया, तो समस्या गंभीर हो जाएगी.
– आज हम भाग रहे हैं. हमें ज़रा रुकने की फुर्सत नहीं है, लेकिन कहीं ऐसा न हो जाए कि जीवन की सांझ में हमारे पास बहुत सारा समय तो हो, पर शायद रिश्ते हमारे साथ ना हों. क्या आप रह पाएंगे अकेले? नहीं, क्योंकि हम सामाजिक प्राणी हैं. अकेले रहना न तो हमारा स्वभाव है और न ही हमारे संस्कार. अकेलापन अपने आपमें एक बहुत बड़ी बीमारी है, जो उम‘ के किसी भी पड़ाव पर आपको अपने शिकंजे में ले सकती है. हम अपने दुख, अपनी ख़ुुशियां अकेले या ख़ुद से नहीं बांट सकते. इसी कमी को रिश्ते पूरा करते हैं.
– रिश्ते हमारे खालीपन को भरते हैं. हमें संबल देते हैं. ये अच्छे समय में जहां हमारी ख़ुुशियों को दुगुना करते हैं, वहीं मुश्किल घड़ी में हमारे दुखों को अपने कंधों पर उठा लेते हैं. यदि आज की नफा-नुक़सान की भाषा में समझाया जाए, तो आज रिश्तों में किया गया थोड़ा-सा टाइम इंवेस्टमेंट कम समय में आपको ज़्यादा रिटर्न देगा. यह एक ऐसा निवेश है, जो कभी आपको नुक़सान नहीं देगा. तो रिश्तों में अपना समय निवेश करें और जीवनभर के लिए फ़ायदे में रहें. यदि आज आप पैसे के साथ थोड़े-बहुत रिश्ते भी कमा लें, तो यह पूंजी आपको जीवनभर काम आएगी.
– विजया कठाले निबंधे
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