– इलाज करने में ग़लती, लापरवाही या अनजाने में इलाज में देरी.
– अस्पताल में मरीज़ के एडमिट होने के दौरान होनेवाली ग़लतियां, जैसे- स्वास्थ्य सेवा देने में कमी जिसकी वजह से मरीज़ किसी इंफेक्शन की चपेट में आ जाए.
– दवाइयां देने में ग़लती या मरीज़ को सही दवा दी हो पर उसका डोज़ ग़लत हो.
– रीएडमिशन यानी मरीज़ को अगर डिसचार्ज के बाद 30 दिनों के भीतर दोबारा अस्पताल लौटना पड़े
– ग़लत सर्जरी साइट यानी शरीर के ग़लत हिस्से पर या ग़लत व्यक्ति पर किया गया ऑपरेशन.
– रोग को लेकर डॉक्टर और मरीज़ या अस्पताल के स्टाफ के साथ हुई बातचीत में कमी.
– मरीज़ की पहचान सुनिश्चित करें. मरीज़ की कोडिंग और लेबलिंग सही करें, ताकि इलाज किसी ग़लत मरीज़ को न मिल जाए.
– प्रिसक्रिप्शन लिखते हुए संक्षिप्त रूप यानी स्मॉल लेटर्स का प्रयोग न करें. कैपिटल लेटर्स में साफ़-साफ़ लिखें, ताकि मरीज़ पढ़ सके.
– अस्पताल में एक ख़ास ट्रेनिंग प्रोग्राम की व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि ऐसी ग़लतियां न हों.
– अस्पताल का इन्फ्रास्ट्रक्चर ऐसा हो कि मरीज़ को परेशान न होना पड़े. निर्देश या चेतावनी संकेतवाले बोर्ड, जैसे- बिलिंग काउंटर, कैश काउंटर, रिसेप्शन, फार्मसी, रेडियोलॉजी, लैब आदि हर जगह ठीक से लगे हों, ताकि मरीज़ का समय बर्बाद न हो.
– मरीज़ को एडमिट या शिफ्ट करते व़क्त ख़ास ध्यान रखें.
– मरीज़ के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए उच्च दर्ज़े की सुविधाएं प्रदान करें.
– बेवजह की दवाओं को प्रिसक्राइब करने की बजाय दवाओं का विवेकपूर्ण उपयोग करने के लिए डॉक्टर्स को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए.
– अपनी व्यक्तिगत जानकारियां, जैसे- एलर्जी, खाने-पीने की आदतें, भूतकाल में कोई ऑपरेशन, मेडिकल हिस्ट्री आदि देने के बाद आप अस्पताल के कर्मचारियों से एक बार ये सुनिश्चित कर लें कि उन्होंने आपकी जानकारियां सही से लिखी हैं या नहीं.
– डॉक्टर द्वारा बताए गए इलाज से जुड़ी कोई जानकारी अगर आपको समझ न आ रही हो, तो खुलकर सवाल पूछें. अगर डॉक्टर से बात करने में आप कंफर्टेबल न हों, तो अपने साथ किसी दोस्त या रिश्तेदार को ले जाएं.
– इलाज को लेकर किसी तरह का अगर कोई संदेह हो या सवालों के जवाब से अगर आप संतुष्ट न हों, तो सेकंड ओपिनियन (दूसरे डॉक्टर से बात) ज़रूर लें.
– डॉक्टर ने आपके लिए जो भी इलाज या चिकित्सा प्रक्रिया निर्धारित की है, उसके नुक़सान और फ़ायदों के बारे में पूरी जानकारी लें. इलाज से जुड़े साइड इफेक्ट को लेकर स्पष्ट रहें.
– मरीज़ की जांच करते व़क्त दस्ताने पहनें.
– हाथों की हाइजीन का ख़्याल रखें. मरीज़ के चेकअप के बाद हाथों को अच्छी तरह से धोकर सैनिटाइज़ करें.
– ज़ब ज़रूरत हो, तब सर्जिकल मास्क अवश्य पहनें.
– उपयोग के बाद दूषित सुई को नष्ट कर दें.
– रोगी की देखभाल के लिए इस्तेमाल होनेवाले उपकरण, किसी दूसरे रोगी पर इस्तेमाल करने से पहले किटाणुरहित कर लें.
– अस्पताल से निकलनेवाले कचरे को ठीक से डिस्पोज़ करवाना भी ज़रूरी है.
– शिष्टाचार से पेश आएं. खांसते व छींकते समय अपने मुंह और नाक पर रूमाल ज़रूर रखें, ताकि आपकी बीमारी दूसरों में न फैले.
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