दुख में भीगे मन के काग़ज़
सूख गयी कलम की स्याही
बीच विरह की लंबी रात है
कैसे मिलन के गीत लिखूँ
एक छोर पर तुम बह रहे
एक छोर पर मेरी धारा
दो दिशाओं में दोनों के मन
कैसे किनारों का गठबंधन लिखूँ
विकल उधर तुम्हारे प्राण है
व्याकुल इधर मेरा अंतर्मन
अश्रुओं से धुँधलाए नयन हैं
कैसे प्रेम के ढाई आखर लिखूँ
कितनी पीड़ा भरी हृदय में
साँसें रुक सी जाती हैं
रोम-रोम विरह में तपता
कहो कैसे श्रृंगार लिखूँ
इन नयनों को दरस दे जाओ
तप्त हृदय को छाँह मिले
आलिंगन से पावन कर दो
जीवन तुम्हारे नाम लिखूँ
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