Kavya

कविता- शक्ति स्त्री की (Poetry- Shakti Stri Ki)

स्त्री शक्ति का अवतार है वो प्रेम, ममता, वात्सलय और स्नेह से मालामाल है जगत को जीवन देने वाली वो…

विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष पद्य- बिगड़ता पर्यावरण (Poetry- Bigadta Paryavaran)

सर्व प्रदूषण दूर हो, खुल कर लेवें सांस। स्वच्छ जगत फिर से बने, रहे न मन में फांस।। जहां कहीं…

काव्य: सिर्फ़ तुम… (Poetry: Sirf Tum…)

सर्द मौसम में सुबह की गुनगुनी धूप जैसी तुम…  तपते रेगिस्तान में पानी की बूंद जैसी तुम… सुबह-सुबह नर्म गुलाब पर बिखरी ओस जैसी तुम… हर शाम आंगन में महकती रातरानी सी तुम… मैं अगर गुल हूं तो गुलमोहर जैसी तुम…  मैं मुसाफ़िर, मेरी मंज़िल सी तुम… ज़माने की दुशवारियों के बीच मेरे दर्द को पनाह देती तुम… मेरी नींदों में हसीन ख़्वाबों सी तुम…  मेरी जागती आंखों में ज़िंदगी की उम्मीदों सी तुम…  मैं ज़र्रा, मुझे तराशती सी तुम…  मैं भटकता राही, मुझे तलाशती सी तुम…  मैं इश्क़, मुझमें सिमटती सी तुम…  मैं टूटा-बिखरा अधूरा सा, मुझे मुकम्मल करती सी तुम…  मैं अब मैं कहां, मुझमें भी हो तुम… बस तुम… सिर्फ़ तुम! गीता शर्मा

काव्य: मुहब्बत के ज़माने… (Poetry: Mohabbat Ke Zamane)

खामोशी के साये में खोए हुए लफ़्ज़ हैं… रूमानियत की आग़ोश में जैसे एक रात है सोई सी…  सांसों की हरारत है, पिघलती सी धड़कनें… जागती आंखों ने ही कुछरूमानी से सपने बुने…  मेरे लिहाफ़ पर एक बोसा रख दिया था जब तुमने, उसके एहसास आज भी महक रहे हैं… मेरी पलकों पर जब तुमने पलकें झुकाई थीं, उसे याद कर आज भी कदम बहक रहे हैं… लबों ने लबों से कुछ कहा तो नहीं था, पर आंखों ने आंखों की बात पढ़ ली थी, वीरान से दिल के शहर में हमने अपनी इश्क़ की एक कहानी गढ़ ली थी…  आज भी वोमोड़ वहीं पड़े हैं, जहां तुमने मुझसे पहली बार नज़रें मिलाई थीं, वो गुलमोहर के पेड़ अब भी वहीं खड़े हैं जहां तुमने अपनेहोंठों से वो मीठी बात सुनाई थी…  आज फिर तुम्हारी आवाज़ सुनाई दी है, आज फिर प्यार के मौसम ने अंगड़ाई ली है, तुम्हारे सजदे में में सिर झुकाए आज भी बैठा हुआ हूं, तुम्हारी संदली ख़ुशबू से मैं आज भी महका हुआ हूं…  आ जाओ किमौसम अब सुहाने आ गए, हवा में रूमानियत और मेरी ज़िंदगी में मुहब्बत के ज़माने आ गए! गीता शर्मा डाउनलोड करें हमारा मोबाइल एप्लीकेशन https://merisaheli1.page.link/pb5Z…

कविता: …फिर याद आए फुर्सत के वो लम्हे और चंद दोस्त! (Poetry: Phir Yaad Aaye Fursat Ke Wo Lamhe Aur Chand Dost)

आज फिर याद आने लगे हैं फ़ुर्सत के वो लम्हे, जिन्हें बड़ी मसरूफ़ियत से जिया था हमने…  चंद दोस्त थे और बीच में एक टेबल, एक ही ग्लास से जाम पिया था हमने…  न पीनेवालों ने कटिंग चाय और बन से काम चलाया था, यारों की महफ़िल ने खूब रंग जमाया था…  हंसते-खिलखिलाते चेहरों ने कई ज़ख्मों को प्यार से सहलाया था…  जेब ख़ाली हुआ करती थी तब, पर दिल बड़े थे… शरारतें और मस्तियां तब ज़्यादा हुआ करती थीं, जब नियम कड़े थे…  आज पत्थर हो चले हैं दिल सबके, झूठी है लबों पर मुस्कान भी…  चंद पैसों के लिए अपनी नियत बेचते देखा है हमने उनको भी, जिनकी अंगूठियों में हीरे जड़े थे…  माना कि लौटकर नहीं आते हैं वो पुराने दिन, पर सच कहें तो ये ज़िंदगी कोई ज़िंदगी नहीं दोस्तों तुम्हारे बिन…  जेब में पैसा है पर ज़िंदगी में प्यार नहीं है… कहने को हमसफ़र तो है पर तुम्हारे जैसा यार नहीं… वक़्त आगे बढ़ गया पर ज़िंदगी पीछे छूट गई, लगता है मानो सारी ख़ुशियां जैसे रूठ गई… कामयाबी की झूठी शान और नक़ली मुस्कान होंठों पर लिए फिरते हैं अब हम… अपनी फटिचरी के उन अमीर दिनों को नम आंखों से खूब याद किया करते हैं हम…  गीता शर्मा

काव्य- ख़ामोशियां (Kavya- Khamoshiyan)

मेरी आवाज़ ख़ामोशियों में कही जा रही मेरी बात का पर्याय नहीं है बल्कि वह तो ख़ामोशियों में चल रही…

काव्य- विरही मन… (Kavya- Virahi Mann…)

दुख में भीगे मन के काग़ज़ सूख गयी कलम की स्याही बीच विरह की लंबी रात है कैसे मिलन के…

काव्या ने इस मामले में कोमोलिका को भी छोड़ा पीछे, जीत लिया ये खिताब (Kavya Also Left Komolika Behind In This Matter, Won This Title)

टीवी सीरियल 'अनुपमा' हमेशा टीआरपी की लिस्ट में टॉप पर बना रहता है. सीरियल में लीड रोल प्ले करने वाली…

नज़्म- एहसास (Nazam- Ehsaas)

किसी रिश्ते में वादे और स्वीकारोक्ति ज़रूरी तो नहीं कई बार बिना आई लव यू  कहे भी तो प्यार होता…

काव्य- बहुत ख़ूबसूरत मेरा इंतज़ार हो गया… (Poetry- Bahut Khoobsurat Mera Intezaar Ho Gaya…)

कशमकश में थी कि कहूं कैसे मैं मन के जज़्बात को पढ़ा तुमको जब, कि मन मेरा भी बेनकाब हो…

काव्य- सफ़र है ये, कुछ तो छूटना ही था… (Kavya- Safar Hai Yeh, Kuch Toh Chhutna Hi Tha…)

अलग फ़लसफ़े हैं हमेशा ही तेरे, सुन ऐ ज़िंदगी बटोरकर डिग्रियां भी यूं लगे कि कुछ पढ़ा ही नहीं ये…

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