सुबह नींद खुली, तो देखा काफ़ी तेज़ हवा चल रही थी. थोड़ी देर में पानी बरसने लगा… दिसंबर महीने में इस बारिश से ठंड काफ़ी बढ़ गई थी. कॉलेज जाने का भी मन नहीं था… वैसे भी शोधकार्य में रोज़ जाना ज़रूरी भी नहीं होता. आज खाना बनाने में मां की मदद करूंगी और बारिश रुकी, तो शॉपिंग करने जाएंगे.
ड्रॉइंगरूम में आई, तो देखा मां किसी से फोन पर बात कर रही थीं. मां ने बताया कि शौर्य की शादी तय हो गई है. मोबाइल पर मंगनी की तस्वीरें भेजी थीं मधु आंटी ने. रेड गाउन में सुंदर लग रही थी शौर्य की मंगेतर और बगल में सिल्वर ग्रे कलर के सूट में राजकुमार-सा शौर्य, देखकर एक टीस उठी मन में…
फिर तो सारे प्लान धरे रह गए, शौर्य की छवि ही दिमाग़ में घूमती रही. जैसे-तैसे काम निपटाकर अपने रूम में आई, तो पुरानी बातें याद आने लगीं. मधु आंटी मां की बचपन की सहेली थीं. हम नाना के घर जयपुर जाते, तो ज़्यादा समय मधु आंटी के यहां ही बिताते. उनके दोनों बेटों और हम दोनों बहनों में अच्छी दोस्ती हो गई थी. हम दिल्ली रहते थे. हमारे घर के हर मौ़के पर मधु आंटी परिवार सहित उपस्थित रहती थीं. शौर्य जयपुर के प्राइवेट कॉलेज से बीटेक करने लगा और मैंने दिल्ली यूनिवर्सिटी में बीएससी में एडमिशन ले लिया. हम दोनों में फोन पर बहुत-सी बातें होतीं. धीरे-धीरे ये बातें प्यारभरी बातों में बदलने लगीं और फिर प्यार का इज़हार-इक़रार भी हो गया. देर रात तक हम फोन पर बातें करते रहते.
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शौर्य को जब भी मौका मिलता, वो दिल्ली आ जाता और हम दिनभर घूमते. ज़ाहिर है, घरवालों से अपने प्यार का छिपाना हमने मुनासिब नहीं समझा, लेकिन उनका यही कहना था कि अभी तो हम स्टूडेंट हैं, पहले पढ़-लिखकर कुछ बन जाएं. मुझे भी यह महसूस हुआ कि शौर्य के मेरे जीवन में आने के बाद पढ़ाई पर मेरा ध्यान कम ही लग रहा है. मैंने शौर्य को समझाया कि हमें थोड़ा समझदारी से काम लेना चाहिए. अपना भविष्य बनाना चाहिए. शौर्य को शायद मेरी बातें पसंद नहीं आईं.
इस बीच वो मुझे हर बात के लिए टोकने लगा था. लड़कों से बात मत करो, यहां मत जाओ… ये मत करो… और भी न जाने क्या-क्या… शायद उसे लग रहा था कि मैं उससे दूर हो रही हूं. मैं भी उसकी इस रोज़ की रोक-टोक से तंग आ गई थी और फिर मैंने अपना फैसला सुना दिया कि हमें अलग हो जाना चाहिए. बात इतनी बढ़ गई कि हमने एक-दूसरे से सच में बात करनी बंद कर दी.
…लेकिन आज इतने अरसे बाद जब शौर्य को किसी और के साथ जुड़ते देखा, तो मन में ये दर्द, ये टीस क्यों होने लगी? क्या यही पहले प्यार की कसक है… जिसें मैंने नादान उम्र का आकर्षण समझ लिया था… वो सच्चा प्यार ही था शायद… वरना दिल इतना भारी न होता आज…
– कविता सिंह
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