“आप मेरी सीट पर बैठे हैं मिस्टर… “
“जी शशिकांत… यही नाम है मेरा और हां, सॉरी आपकी विंडो सीट है आप यहां बैठ जाइए , मैं अपनी साइड सीट पर बैठजाता हूं!”
“शुक्रिया”
“वेल्कम मिस…?”
“जी नेहा नाम है मेरा…” पता नहीं क्यों उस मनचले टाइप के लड़के से मैं भी फ़्रेंडली हो गई थी. मैं बस के रास्ते से मसूरी जारही थी और उसकी सीट भी मेरी बग़ल में ही थी, रास्तेभर उसकी कमेंट्री चल रही थी…
“प्रकृति भी कितनी ख़ूबसूरत होती है, सब कुछ कितना नपा-तुला होता है… और एक हम इंसान हैं जो इस नाप-तोल को, प्रकृति के संतुलन को बस बिगाड़ने में लगे रहते हैं… है ना नेहा… जी”
मैं बस मुस्कुराकर उसकी बातों का जवाब दे देती… मन ही मन सोच रही थी कब ये सफ़र ख़त्म होगा और इससे पीछाछूटेगा… इतने में ही बस अचानक रुक गई, पता चला कुछ तकनीकी ख़राबी आ गई और अब ये आगे नहीं जा सकेगी… शाम ढल रही थी और मैं अकेली घबरा रही थी…
“नेहा, आप घबराओ मत, मैं हूं न आपके साथ…” शशि मेरी मनोदशा समझ रहा था लेकिन था तो वो भी अनजान ही, आख़िर इस पर कैसे इतना भरोसा कर सकती हूं… ऊपर से फ़ोन चार्ज नहीं था…
“नेहा आप मेरे फ़ोन से अपने घरवालों को कॉल कर सकती हैं, वर्ना वो भी घबरा जाएंगे…” शशि ने एक बार फिर मेरे मनको भांप लिया था…
मैंने घर पर बात की और शशि ने भी उनको तसल्ली दी, शशि फ़ौज में था… तभी शायद इतना ज़िंदादिल था. किसी तरहशशि ने पास के छोटे से लॉज में हमारे ठहरने का इंतज़ाम किया.
मैं शांति से सोई और सुबह होते ही शशि ने कार हायर करके मुझे मेरी मंज़िल तक पहुंचाया…
“शुक्रिया दोस्त, आपने मेरी बहुत मदद की, अब आप अंदर चलिए, चाय पीकर ही जाना…” मैंने आग्रह किया तो शशि नेकहा कि उनको भी अपने घर जल्द पहुंचना है क्योंकि शाम को ही उनको एक लड़की को देखने जाना है रिश्ते के लिए…
“कमाल है, आपने पहले नहीं बताया, मुबारक हो और हां जल्दी घर पहुंचिए…” मैंने ख़ुशी-ख़ुशी शशि को विदा किया.
“नेहा, बेटा जल्दी-जल्दी फ्रेश होकर अब आराम कर ले, शाम को तुझे लड़केवाले देखने आनेवाले हैं…” मम्मी की आवाज़सुनते ही मैं भी जल्दी से फ्रेश होकर आराम करने चली गई.
शाम को जब उठी तो देखा घर में एक अजीब सा सन्नाटा पसरा था…
“मम्मी-पापा क्या हुआ? आप लोग ऐसे उदास क्यों बैठे हो?”
“नेहा, पता नहीं बेटा वो लड़केवाले अब तक नहीं आए और उनके घर पर कोई फ़ोन भी नहीं उठा रहा…” पापा ने कहा तोमैंने उनको समझाया, “इतनी सी बात के लिए परेशान क्यों हो रहे हो, नेटवर्क प्रॉब्लम होगा और हो सकता है किसी वजहसे वो न आ पाए हों… कल या परसों का तय कर लेंगे…” ये कहकर मैं अपने रूम में आ गई तो देखा फ़ोन चार्ज हो चुकाथा. ढेर सारे मैसेज के बीच कुछ तस्वीरें भी थीं जो पापा ने मुझे भेजी थीं… ओपन किया तो मैं हैरान थी… ये तो शशि कीपिक्स हैं… तो इसका मतलब शशि ही मुझे देखने आनेवाले थे… मैं मन ही मन बड़ी खुश हुई लेकिन थोड़ी देर बाद ही येख़ुशी मातम में बदल गई जब शशि के घर से फ़ोन आया कि रास्ते में शशि की कैब पर आतंकी हमला हुआ था जिसमें वोशहीद हो गए थे…
मेरी ख़ुशियां मुझे मिलने से पहले ही बिछड़ गई थीं… मैंने शशि के घर जाने का फ़ैसला किया, पता
चला कि उन्होंने मेरी तस्वीरें देख कर मुझे पसंद भी कर लिया था और हमारी उस छोटी सी मुलाक़ात के बाद अपनेघरवालों को हां भी कह दिया था, मुझे सरप्राइज़ करने के लिए मुझे इसकी भनक नहीं लगने दी थी.
आज मैं भी एक आर्मी ऑफ़िसर हूं और शशि व अपनी फ़ैमिली का पूरा ख़याल रख रही हूं, शशि के हर सपने को साकारकरने की कोशिश में हूं और हां, मैं दुखी नहीं हूं क्योंकि मैं जानती हूं शशि मेरे साथ हैं… उस छोटी सी मुलाक़ात ने मेरीज़िंदगी, मेरे जीने का मक़सद ही बदल दिया था… उस छोटी सी मुलाक़ात ने मुझे प्यार करना और प्यार निभाना एक पल मेंसिखा दिया था…
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