कभी-कभी ज़िंदगी में कुछ ऐसे लोग मिल जाते हैं, जिन्हें ताउम्र हम भूल नहीं पाते हैं. कहने को तो वे अजनबी होते हैं, फिर भी हमारी ज़िंदगी का अहम् हिस्सा बन जाते हैं.
बात काफ़ी पुरानी है, जब हमारी गर्मी की छुट्टियां चल रही थीं कि एक दिन पापा ने बताया कि हम सबको चेन्नई जाना है किसी रिश्तेदार की शादी में. हम सब काफ़ी उत्साहित थे कि दिल्ली से बाहर कहीं घूमने जा रहे हैं.
रेल के लंबे सफ़र के बाद चेन्नई पहुंच गए. स्टेशन पर वो लोग हमें लेने आए थे. मिलने-मिलाने के बाद जब घर पहुंचे, तो देखा घर बेहद ख़ूबसूरत था. घर के बाहर बड़ी ही सुंदर-सी रंगोली बनी हुई थी. चूंकि हम पहली बार चेन्नई आए थे, तो हमारे घूमने का इंतज़ाम भी उन्होंने कर दिया था. उनका बेटा व उसका दोस्त दिनभर हमें शहर घुमाते. काफ़ी सुंदर शहर था और हम इस ट्रिप को एंजॉय कर रहे थे.
अगले दिन उनके यहां उनके मित्र का परिवार भी आ गया था, जो चेन्नई में ही रहता था. काफ़ी अच्छे व मिलनसार लोग थे वो भी. उनकी बेटी से मेरी काफ़ी अच्छी दोस्ती हो गई थी और मुझे एक सहेली मिल गई थी. उसी ने बताया कि उसका एक भाई दिल्ली में ही जॉब करता है, शादी के दिन तक वो भी आ जाएगा.
आख़िर शादी का दिन आ गया और हम सब तैयार होने में बिज़ी थी. तभी एक साउथ इंडियन हीरो जैसा लड़का सभी की तस्वीरें खींचने लगा. इससे पहले कि कोई कुछ बोलता, मेरी सहेली ने कहा कि यही मेरा भाई है, जो दिल्ली से आया है.
वो लड़का काफ़ी आकर्षक था, सभी उससे प्रभावित थे. मेरा स्वभाव शुरू से ही काफ़ी रिज़र्व रहा था, सो मैंने उसमें ख़ास दिलचस्पी नहीं दिखाई. हालांकि वो बार-बार तस्वीर खींचने के बहाने मेरे आसपास ही मंडरा रहा था.
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ख़ैर, शादी ख़त्म हुई और हम सब दिल्ली आ गए. कुछ दिनों के बाद चेन्नई से आंटीजी का ख़त आया. उसमें उसी लड़के की तस्वीर थी. दरसअल, उन्होंने मेरे रिश्ते की बात के लिए उसकी तस्वीर और पत्र भेजा था. लड़केवालों ने शादी में मुझे देखा था और मेरा हाथ उस लड़के के लिए मांग रहे थे.
अब तक मेरा जो मन शांत था, उसमें हलचल होने लगी थी. आंखों में सपने तैरने लगे थे और दिल में कुछ होने लगा था.
मेरे घरवालों ने मिलकर विचार-विमर्श किया और फिर एकमत से यह ़फैसला लिया कि चेन्नई बहुत दूर है, लड़की का रिश्ता वहां नहीं कर सकते, इसलिए ना कह देंगे. कुछ समय तक तो मेरा मन बेचैन रहा, लेकिन फिर सामान्य हो गया.
आज मेरी शादी को पच्चीस साल हो गए हैं और सब कुछ बहुत ही अच्छा चल रहा है, बेहद प्यार करनेवाला जीवनसाथी और प्यारे बच्चे हैं. लेकिन फिर भी कभी-कभी उस लड़के की तस्वीर मन में तैरने लगती है. मन अकेले में अक्सर उसकी तस्वीर के आसपास चला जाता है और धड़कनें तेज़ हो जाती हैं.
हालांकि उससे मैंने कभी बात नहीं की और न ही मन में मुहब्बत जैसी कोई बात ही आई. मेरा कुछ खो गया है ऐसा कोई ख़्याल तक मेरे मन में नहीं आया, क्योंकि मैंने कभी उससे प्यार नहीं किया था. फिर भी न जाने क्यों इतने सालों बाद भी मैं उसकी उस तस्वीर को फेंक या फाड़ नहीं पाई… आख़िर क्यों?
भले ही दिमाग़ से मैं सोच लूं कि मैंने उससे प्यार नहीं किया, लेकिन क्या अपने ही दिल को मैं ठग सकती हूं…? दिल में जो पहली हलचल
हुई थी, वो उसी की तस्वीर को देखने के बाद हुई थी. जो आंखों में सपने पलने लगे थे, वो उससे रिश्ते की बात के बाद ही तो पनपे थे… ज़ुबां से लाख कहूं कि उससे मैंने प्यार नहीं किया था, पर दिल इतनी हिम्मत क्यों न कर सका कि उसकी उस तस्वीर को फेंक दूं… क्यों उसे इस तरह से संजोकर रखा है मैंने, क्यों बरबस उसका ख़्याल आज भी गुदगुदा जाता है मुझे… क्यों? यही सवाल शायद जवाब भी है मेरा… मेरे पहले प्यार का…!
– सुखविंदर
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