कविताएं- कोरोना काल.. यह भी ज़रूरी था…(Poetries- Corona Kaal.. Yah Bhi Zaroori Tha…)

इतनी क्यूं है हलचल
मन घबराए हर पल
बस जहां देखो वहीं है
इस मुए कोरोना वायरस की दहशत

वायरस है, आया है चला जाएगा
दुनिया को हाथ धोना सीखा जाएगा
खौफ़ और आतंक ना बनने दें इसे
यह तो सफ़ाई का सबक सीखा जाएगा

मनुष्य जब ख़ुद को भगवान समझने लगे
हर चीज़ पर अपना हक़ जताने लगे
तब कुदरत की ख़ामोशी से एक लाठी चलती है
कहती है, आज भी अब भी हमारी चलती है

कल को यह चिंता शायद बेतुकी लगे
कल को यह खौफ़ शायद मज़ाक लगे
इस वक़्त की बस यही है गुहार
धोते रहो अपने हाथ बार-बार…

यह भी ज़रूरी था…

बेलगाम हुई जा रही थी ज़िंदगी
सरपट अंधाधुंध दौड़ रही थी ज़िंदगी
थक-हारकर कहीं सांसें टूट ना जाएं
रफ़्तार को लगाम लगाना थोड़ा ज़रूरी था

धरती मां को जो हमने ज़ख़्म दिए
घायल किया ना जाने कितने दर्द दिए
इससे पहले कुदरत और रूद्र हो जाए
इसके ज़ख़्मों पर मलहम लगाना थोड़ा ज़रूरी था

मनुष्य ही मनुष्य का दुश्मन बन गया था
अपने ही अहम में चूर हो गया था
उसे इंसानियत से प्यार हो
अपने किए पर पश्चाताप हो
इसका एहसास दिलाना थोड़ा ज़रूरी था…

प्रिया मल्होत्रा

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Usha Gupta

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