ज़िंदगी का आईना देख कर
डर लगता है
ऐ ज़िंदगी
अब तुझे देख कर डर लगता है
डर लगता है मुझे
ज़माने की चाल देख कर
और डरता हूं वक़्त का हाल देख कर
ऐ मेरे दिल के भीतर सांस ले रहे दोस्त
अब तो तुमसे बात करने में भी
डर लगता है
मुझे डर लगता है
अपने ख़्वाबों और ख़्यालों से
मैं डर जाता हूं
अपने ही जज़्बातों से
अब तो किसी को
अपना कहने में डर लगता है
और डर लगता है
किसी अपने को
किसी हाल में पराया समझ लेने में
लोग बचे ही कितने हैं जो
दिल के क़रीब हों
सो किसी को पाने में
डर लगता है
किसी को खोने में डर लगता है
सच कहूं तो अब
जीने में डर लगता है
और फिर न जी पाने के हौसले से
डर लगता है
मुझे अब
आईने से डर लगता है
ख़ुद के होने से
डर लगता है
ऐ दोस्त हो सके तो हाथ पकड़ लो
दिल के भीतर
इतना अकेला हूं कि
अब तो मुझे
कुछ हो जाने के ख़्याल से
डर लगता है…
– मुरली मनोहर श्रीवास्तव
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