रंग-तरंग- दिल तो पागल है… (Rang Tarang- Dil To Pagal Hai…)

“गोया तुम्हें अभी भी मुझसे मोहब्बत है.”
“मुहब्बत और लेखक से. मैं इतना भी मूर्ख नहीं!”
“आख़िर तुम्हें एक लेखक से इतनी नफ़रत क्यों है?”
“तुम्हे पता है कि जिस्म का हर अंग रेस्ट करता है, सिर्फ़ दिल को ऐसी सज़ा दी गई है कि उसे दिन-रात जागते रहना है. मेरी ट्रेजेडी ये है कि मैं लेखक के जिस्म में हूं और लेखक जल्दी मरते ही नहीं.”
“क्या बकवास है.”

अब इसमें मेरा क्या कसूर. शाम को अच्छा भला था, सुबह बारिश होते ही बौरा गया. मैने अपने दिल से बातचीत शुरू की, “हाय! कैसे हो?”
“तुम से मतलब?”
“काहे भैंसे की तरह भड़क रहे हो. मैंने तो सिर्फ़ हालचाल पूछा है. शाम को तुम नॉर्मल थे, सुबह का मॉनसून देखकर भड़के हुए हो, दिले नादान तुझे हुआ क्या है.”
“जहां बेदर्द मालिक हो, वहां फरियाद क्या करना. काश मैं किसी आशिक के जिस्म में होता. मजनू, फरहाद, रोमियो में से किसी के बॉडी में फिट कर देते, पर क़िस्मत की सितमज़री देखो, लेखक के पहलू में डाल दिया. दुनिया बनानेवाले क्या तेरे मन में समाई…”
मुझे हंसी आ गई, “अब बगावत करने से क्या हासिल होगा. आख़री वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमा होंगे. तुम्हें तीस साल पहले सोचना चाहिए था.”
“बस यही तो रोना है. मुझे सोचने की सलाहियत नहीं दी गई. तुम्हारे सिर के अंदर जो सलाद भरा है, वो तय करता है कि मुझे कब रोना है और कब आत्मनिर्भर होना है. तुम्हारे पल्ले बंध कर रोना रूटीन हो गया और आत्मनिर्भरता ख़्वाब.”
“दिल को संतोषी होना चाहिए.”
“दिल पर दही की जगह नींबू मत टपका. अभी जाने कब तक सज़ा काटनी होगी. ज़िंदगी में कोई चार्म नहीं रहा. लेखक का दिल होना किसी अभिशाप से कम नहीं है. हमें काश तुमसे मोहब्बत न होती.”
“गोया तुम्हें अभी भी मुझसे मोहब्बत है.”
“मुहब्बत और लेखक से. मैं इतना भी मूर्ख नहीं!”
“आख़िर तुम्हें एक लेखक से इतनी नफ़रत क्यों है?”
“तुम्हे पता है कि जिस्म का हर अंग रेस्ट करता है, सिर्फ़ दिल को ऐसी सज़ा दी गई है कि उसे दिन-रात जागते रहना है. मेरी ट्रेजेडी ये है कि मैं लेखक के जिस्म में हूं और लेखक जल्दी मरते ही नहीं.”
“क्या बकवास है.”
“बकवास नहीं सच है. तुमने कभी किसी लेखक को सत्तर-अस्सी साल से पहले मरते हुए देखा?”
“मेरे पास इसका कोई रिकॉर्ड नहीं, पर तुम्हें किसी लेखक के बारे में ऐसा नहीं कहना चाहिए.”
“क्यों नहीं कहना चाहिए, जिस आदमी का किसी बैंक में सेविंग अकाउंट तक न हो, वो विजय माल्या और नीरव मोदी के खातों के जांच करवाने के लिए परेशान हो, तो बुरा तो लगेगा ही.”
“लेखक खुदा की बनाई हुई वो रचना है, जो समाज और सत्ता का प्रदूषण दूर करने में उम्र ख़र्च कर देता है. वो अतीत से ऑक्सीजन लेता है और वर्तमान से नाख़ुश रहता है. दुनिया के लिए भविष्य की अपार संभावनाओं की तलाश करनेवाला लेखक अक्सर अपने बच्चों को ख़ूबसूरत भविष्य नहीं दे पाता. हक़ीक़त में वो वर्तमान समाज का पंखहीन फ़रिश्ता है.”
“अपनी तारीफ़ कर रहे हो. बाई द वे, तुम्हें लेखक होने की सलाह किसने दी थी?”


यह भी पढ़ें: रंग तरंग- कोरोना, बदनाम करो न… (Rang Tarang- Corona, Badnaam Karo Na…)

“यही तो रोना है कि ये सलाह किसी ने नहीं दी. इस दरिया ए आतिश में उतरने का फ़ैसला मेरा ही था.”
दिल बड़बड़ाया, “जैसा करम करोगे, वैसा फल देगा भगवान.”
हर इंसान के दिल की बनावट एक जैसी होती है, लेकिन कुंडली एक जैसी नहीं होती है. करनेवाला दिमाग़ होता है, लेकिन इल्ज़ाम दिल पर लगता है, “शादी शुदा थे, लेकिन अपने से आधी उम्र की लड़की पर दिल आ गया. दिल ही तो है. इसमें खां साहब का क्या कुसूर? दिल के हाथों मजबूर हो गए.” (पता लगा कि दिल के हाथ-पैर भी होते हैं!)
आदमी गुनाह करने के बाद भी बेक़सूर बताया जाता है. सारी ग़लती दिल की होती है. सुपारी काटने से लेकर सज़ा काटने तक सारा कुकर्म दिल करता है, तो फिर शरीर का क्या क़ुसूर! लेकिन इसके बावजूद दिल के बारे में दलील दी जाती है- दिल तो बच्चा है जी! अस्सी साल तक जिसका बचपना न जाए , वो क़ुसूरवार नहीं माना जाएगा. इसका फ़ायदा उठाकर दिल एक से एक खुराफ़ात करता रहता है, ‘टकरा गया तुमसे दिल ही तो है. दिल और दिमाग़ में ज़्यादा खुराफ़ाती कौन है, इसे लेकर साहित्यकारों और साइंसदानों में सदियों से बहस छिड़ी है. वैज्ञानिक कहते हैं, ‘जब पूरा शरीर दिमाग़ के आधीन है, तो दिल की क्या बिसात. ऐसे में दिल बेचारा बिन ‘सजना’ (दिमाग़) के माने न…
इंसान जान-बूझकर दिल को कटघरे में खड़ा करता है, ‘ये दिल ये पागल दिल मेरा… करता फिरे आवारगी…’ मैंने तो दिल के हाथों मजबूर होकर तीसरी शादी कर ली. अच्छा तो गोया दिल ने गला दबा दिया था. दिले नादान तुझे हुआ क्या है. इतनी गुंडागर्दी का सबब क्या है. लोग दिल की आड़ में कितनी पिचकारी चलाते हैं. हमारे एक परिचित के दिमाग में ‘हनुमान ग्रंथि’ उग आई है. वो हमेशा अपने मित्रों की इमेज़ के लंका दहन में ही लगे होते हैं. वो भी सारा किया धरा दिल पर मढ़ देते हैं- दिल है कि मानता नहीं…
बच के रहना रे बाबा- दिल तो छुट्टा (सांड) है जी…

सुलतान भारती


यह भी पढ़ें: व्यंग्य- हम को हिंडी मांगटा, यू नो… (Satire Story- Hum Ko Hindi Mangta, You Know…)

Photo Courtesy: Freepik

Usha Gupta

Share
Published by
Usha Gupta
Tags: Rang Tarang

Recent Posts

काय सांगता? जय हो गाणं ए आर रहमानचं नाहीच! लोकप्रिय दिग्दर्शकाचा खळबळजनक दावा ( Oscar Winning Song Jai Ho Was Not Composed By A R Rahman Said Ram Gopal Verma)

ए आर रहमानने ज्या गाण्यासाठी ऑस्कर जिंकला ते गाणे खरे तर त्यांनी संगीतबद्ध केलेले नव्हते.…

April 20, 2024

सकारात्मक मानसिकतेची गरज (The Need For A Positive Mindset)

-दादासाहेब येंधे टेन्शन, डिप्रेशन आणि त्यातून क्वचितप्रसंगी उचलले जाणारे आत्महत्येसारखे टोकाचे पाऊल… अशा अनेक घटना…

April 20, 2024

लिंबू आहे बहुगुणी (Lemon Is Versatile)

लिंबू फक्त सरबत बनवून पिण्यासाठी एवढ्याच उपयोगाचं नसून, त्याचे बरेच उपयोग आहेत. तरीही सकाळची सुरुवात…

April 20, 2024

 जोरावरशी घटस्फोट घेतल्यानंतर कुशा कपिला पुन्हा एकदा कॉमेडियनच्या प्रेमात (Kusha Kapila Dating Comedian Anubhav Singh Bassi After Divorce With Zorawar Romours Going On)

कुशा कपिलाने लग्नाच्या 6 वर्षानंतर पती जोरावर याला घटस्फोट देण्याचा निर्णय घेऊन सर्वांना आश्चर्यचकित केले.…

April 20, 2024
© Merisaheli