दोबारा इस लेख का शीर्षक पढ़ने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि आपने जो पढ़ा है, वह सच है. पर्स ही लिखा है, स्पर्श नहीं. बहुत सारे व्यापारियों को दिखाई नहीं देता, पर है ज़बर्दस्त व्यवसाय. पर्स उद्योग भी एक बड़ा उद्योग है. सोचिए देश में कितनी महिलाएं हैं. अगर एक महिला साल में एक भी पर्स ख़रीदती है, तो कितने करोड़ पर्स बिकते होंगे. सालाना कितने रुपए का टर्नओवर होगा. इसका हिसाब अगर आपको अर्थशास्त्र में रुचि है, तो कर लीजिएगा. हमें तो इस समय मात्र महिलाओं में, महिलाओं के पर्स में रुचि है, इसलिए यहां जो किसी को नहीं पता, वह जानकारी देने की कोशिश कर रहा हूं.
सबसे बड़ा सवाल तो यहां यह है कि महिलाएं पर्स में रखती क्या हैं? कोई डिटेक्टिव एक्टिव होकर इस बारे में पता करे, तो भी शायद पता न कर सके. महिलाओं की तरह ही उनका पर्स भी रहस्यमय होता है. अभी तक जब मनोवैज्ञानिक महिलाओं के बारे में ठीक से नहीं पता कर सके, तो महिलाओं के पर्स के बारे में पता कर लेना एक बड़ी चुनौती हमारे सामने आ खड़ी हुई है.
हमारे एक दोस्त का मानना है कि जिस दिन हम महिलाओं को पहचान लेंगे, उस दिन उनके पर्स के बारे में जानने की ज़रूरत नहीं रहेगी अथवा जिस दिन उनके पर्स के बारे में जान लेंगे, उस दिन महिलाओं के बारे में जानने की ज़रूरत नहीं रहेगी.
महिलाओं के पर्स के बारे में अब तक जो जानकारियां लीक हुई हैं, उसके अनुसार महिला का पर्स जितना बड़ा होगा, उसमें रखे रुपए के नोट उतने ही मुड़ेतुड़े होंगें. किसी महिला को नई नोट दीजिए, तब भी पर्स में रखने से पहले जितना हो सकेगा, वह उस नोट को मोड़ देगी.
महिलाओं के पर्स में जितना संभव हो सकता है, उतना बड़ा आईना होता है. अगर उसमें अटैच्ड आईना है, तो इस तरह का पर्स महिलाओं की पहली पसंद है. महिलाओं की अपेक्षा उनका पर्स अधिक रहस्यमय होता है, इसलिए ऐसे भी तमाम लोग हैं, जो महिलाओं की अपेक्षा उनका पर्स पाने की अधिक कोशिश करते हैं, जिन्हें हम चोर के रूप में जानते हैं.
मोबाइल रखने की व्यवस्था लगभग हर पर्स में होती है, पर उसकी ज़रूरत महिलाओं को मुश्किल से ही पड़ती है, क्योंकि मोबाइल तो वह हाथ में ही लिए रहती हैं. कुछ महिलाएं हैं, जो अपना मोबाइल पर्स में रखती हैं. यहां एक बात ध्यान देनेवाली होती है. महिलाओं का पर्स चाहे जितनी दूर रखा हो, चाहे जितना भी शोर हो रहा हो, मोबाइल की घंटी बजी नहीं कि उन्हें तुरंत पता चल जाता है कि उनका मोबाइल बज रहा है. जबकि पुरुषों की जेब में रखा मोबाइल बजता रहता है, पर उन्हें पता ही नहीं चलता. कान में आवाज़ पड़ते ही वे इधर-उधर ताकने लगते है कि घंटी कहां बज रही है.
मेरे एक दोस्त ने बताया कि महिलाएं बच्चे को सुला कर दूसरे कमरे में काम कर रही होती हैं, तो उनका ध्यान बच्चे पर ही लगा रहता है. बच्चा धीरे से भी रोता है, तो वे तुरंत सुन लेती हैं. उनका यही अनुभव मोबाइल की घंटी सुनने में काम आता है.
काफ़ी खोजबीन करने के बाद महिलाओं के पर्स की बस इतनी ही पर्सनल जानकारी मिल पाई है. इससे अधिक जानकारी प्राप्त करना संभव भी नहीं है, क्योंकि माना जाता है कि महिलाएं पुरुषों की सुरक्षा में होती हैं, जबकि पर्स तो ख़ुद महिलाओं की सुरक्षा में होता है.
– वीरेन्द्र बहादुर सिंह
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