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कहानी- कच्ची मिट्टी (Short Story- Kachhi Mitti)

 

“अरे, इसने मेरी सहेली प्रज्ञा को बड़ा परेशान किया था. उसके पापा ने पूरी छानबीन कर इसके बारे में पता किया, तो पता चला. लेकिन इस बात को सालों हो गए हैं, अब तो यह शादीशुदा है और ऐसे ही छोटे-मोटे कॉन्ट्रैक्ट लेकर अपनी जीविका चला रहा है. आप भी भाभी, किस बात को लेकर बैठ गईं.”

 

रेवा बालकनी के तीन चक्कर लगा आई थी. आकाश में उमड़ते-घुमड़ते बादल कब बरस जाएं, पता नहीं. बस, समीर घर आ जाए, फिर चाहे कितनी भी बरसात हो. तभी गाड़ी के हॉर्न की आवाज़ पर रेवा भागती हुई गई. इससे पहले कि समीर कॉलबेल बजाए, रेवा ने दौड़कर दरवाज़ा खोल दिया. थोड़ी ही देर में समीर शरारती मुस्कान बिखेरता हुआ अंदर आया, “क्या बात है मेमसाब? ये गुलाबी साड़ी… ये मौसम… इरादे क्या हैं?”
ज्यों ही समीर ने उसे छेड़ा, रेवा ने बनावटी नाराज़गी दर्शाते हुए उसके हाथ से ब्रीफकेस ले लिया और बोली, “आप भी बस, कभी भी शुरू हो जाते हैं. जल्दी से फ्रेश हो जाइए. मैं कब से आपके साथ चाय पीने का इंतज़ार कर रही हूं.”
रेवा रसोई की तरफ़ चल दी. समीर भी थोड़ी ही देर में फ्रेश होकर आ गया. फिर शुरू हुआ उनकी बातों का सिलसिला. बातों ही बातों में समीर ने रेवा को बताया कि मुंबई से मां का फ़ोन आया था, माया चाची की बेटी नेहा की सगाई तय हो गई है. मां की इच्छा है कि सगाई पर हम दोनों इलाहाबाद जाएं. नेहा की शादी तो दिल्ली से होगी, जहां लड़केवाले रहते हैं, पर सगाई इलाहाबाद से ही होगी. रेवा यह सुनकर उत्साह से भर गई.
रेवा व समीर की शादी को छह महीने हो गए थे. मधुमास की ख़ुशबू अभी भी चारों तरफ़ बिखरी हुई थी. समय की ऱफ़्तार से मानो दोनों अनजान थे. छह महीने तो जैसे पंख लगाकर बीत गए हों. समीर एक प्रतिष्ठित कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत था. रेवा मंत्रमुग्ध थी ऐसे सौम्य व्यक्तित्व के धनी, शिष्ट, ऊंचे ओहदे व बेहद प्यार करनेवाले पति को पाकर. इधर समीर भी रेवा जैसी सुंदर, सुलझी व प्यारी-सी पत्नी को पाकर सातवें आसमान पर था. दोनों पूना में एक छोटे-से फ़्लैट में ख़ुशहाल जीवन बिता रहे थे. प्यार व विश्‍वास की मीठी बयार ने उनके जीवन को महका रखा था. दोनों ने ही यह नहीं सोचा था कि दिल्ली की रेवा व मुंबई का समीर कभी यूं मिल पाएंगे.
कल की बात लगती है, जब रेवा की बड़ी बहन रिया ने ये रिश्ता बताया था. रेवा को बड़ी मुश्किल से मनाकर जब समीर से मिलवाया गया तो रेवा उसके मोहक व्यक्तित्व व अति शिष्ट व्यवहार से प्रभावित हुए बिना न रह सकी. अरेंज मैरिज के नाम पर नाक-भौंह सिकोड़नेवाली रेवा के दिल में कब समीर प्रवेश कर गया, उसे पता ही न चला. चंद औपचारिक मुलाक़ातें व फ़ोन पर बातचीत, बस इतना ही संपर्क रहा. दो महीने बीतते-बीतते शादी भी हो गई.
कुछ दिन ससुराल में रहने के बाद रेवा समीर के साथ पूना आ गई. उसने इतिहास में पीएच.डी. की थी. समीर के कहने पर रेवा ने एक कॉलेज में आवेदन-पत्र भर दिया, जिसमें वो लेक्चरर के रूप में चुन ली गई. दो-तीन घंटे की क्लास के लिए जाती थी, बाकी समय अपने घर की साज-सज्जा और देखभाल में बिताती. समीर खुले विचार व परिपक्व मानसिकतावाला व्यक्ति था. उसका मानना था कि यदि प्रतिभा हो, तो उसे दबाना नहीं चाहिए.
रेवा पहली बार अपने ससुराल के किसी फंक्शन में जा रही थी. अत: घबराहट होना स्वाभाविक था, परंतु समीर उसकी घबराहट को अपनी बातों से कम करने की कोशिश कर रहा था. इलाहाबाद पहुंचते ही नई बहू का स्वागत हुआ. नेहा बहुत प्रसन्न थी. उसने अपनी सभी सहेलियों से रेवा का परिचय कराया. सभी को बस एक शिकायत थी कि वे स़िर्फ दो दिन के लिए ही क्यों आए हैं. रेवा ने भी माया चाची का काफ़ी काम संभाल लिया था. उन्होंने उसे बस नेहा का ख़याल रखने को कहा था. रेवा को नेहा के रूप में सहेली मिल गई थी.
आख़िरकार सगाई का दिन आ गया. घर में मेहमानों की आवाजाही थी. माया चाची ने रेवा व समीर को फ्लावर डेकोरेशन देखने के लिए कहा. वे दोनों डेकोरेशन की तैयारियों का निरीक्षण कर रहे थे, तभी पीछे से एक नाम सुनकर रेवा चौंक पड़ी, “चंदर…” एक अभद्र-सी आवाज़ पर उसका ध्यान चला गया. वह पलटी तो जड़-सी खड़ी रह गई. पान खाते उस व्यक्ति को देख मानो वह पहचानने की कोशिश कर रही हो. चेहरा जाना-पहचाना-सा लगा, पर इस अशिष्ट व्यक्तित्व में ऐसा क्या है, जो रेवा का ध्यान खींच रहा है. तभी उस चंदर नाम के व्यक्ति ने फूलवाले को असभ्य गालियां बकते हुए कुछ निर्देश दिए.
समीर उसकी असभ्यता पर असहज हो गया. उसने शालीन शब्दों में उस व्यक्ति को अपनी वाणी पर नियंत्रण रखने का आदेश दिया. रेवा वहां ज़्यादा देर खड़ी न रह सकी और ऊपर अपने कमरे में चली आई. कमरे की खिड़की से वह उस व्यक्ति को देखती रही, तभी नेहा उसके कमरे में आई और प्यार से बोली, “क्या हुआ भाभी? सिरदर्द है क्या? मैं दबा दूं.”
रेवा ने पूछा, “नेहा, ये नीचे खड़ा आदमी कौन है? बड़ी बदतमीज़ी से अपने मातहतों से बात कर रहा था.”
नेहा बोली, “भाभी, ये चंदर है, यहीं छोटे-मोटे कॉन्ट्रैक्ट लेता है. इसका परिवार लखनऊ में रहता है. पिता बहुत बड़े कॉन्ट्रैक्टर हैं. पर इसकी ग़लत आदतों से परेशान होकर इसे घर से निकाल दिया है.”
रेवा मानो आसमान से गिर पड़ी हो. अतीत के पन्ने उसके सामने फड़फड़ाने लगे थे. “पर नेहा, तुझे इतना कुछ कैसे पता चला?”
“अरे, इसने मेरी सहेली प्रज्ञा को बड़ा परेशान किया था. उसके पापा ने पूरी छानबीन कर इसके बारे में पता किया, तो पता चला. लेकिन इस बात को सालों हो गए हैं, अब तो यह शादीशुदा है और ऐसे ही छोटे-मोटे कॉन्ट्रैक्ट लेकर अपनी जीविका चला रहा है. आप भी भाभी, किस बात को लेकर बैठ गईं.”
रेवा ने अपनी आंखें मूंद लीं. नेहा हल्के हाथों से सिर दबाने लगी. जब उसे लगा कि रेवा सो गई है तो वह धीरे से दरवाज़ा बंद करके चली गई, परंतु रेवा की आंखों में नींद कहां थी. उसका अतीत पूरे वेग से उसके सामने आ खड़ा हुआ.
रेवा ग्यारह साल पीछे चली गई, जब वह आठवीं कक्षा में पढ़ती थी और चंदर उसके बगलवाली सीट के पीछे बैठता था. रेवा पढ़ाई में होशियार थी और चंदर कमज़ोर. उम्र के उस पड़ाव में रेवा कब फूहड़ से दिखनेवाले चंदर की ओर आकर्षित हो गई, उसे पता ही न चला. चंदर हमेशा अपने पिता की कार में स्कूल आता और सब पर अपनी अमीरी की धौंस जमाता. टीचर्स पर अटपटे व्यंग्य करना, पिता की दौलत का प्रदर्शन करना- यही सब उसकी दिनचर्या का हिस्सा था.
उम्र की जिस कच्ची व नाज़ुक दहलीज़ पर बच्चे मौज-मस्ती करते हैं, उस उम्र में रेवा का झुकाव चंदर की तरफ़ बढ़ने लगा. चंदर की भेदती निगाहों को वो महसूस करती. उसकी बेबा़क़ बातें रेवा को गुदगुदा जातीं.
चंदर व रेवा के कच्ची उम्र के तथाकथित प्यार का पता तब चला, जब छमाही परीक्षा का नतीज़ा आया. नब्बे प्रतिशत लाने वाली रेवा के केवल साठ प्रतिशत नंबर आए. रेवा के मम्मी-पापा तो घबरा गए थे. उन्होंने रेवा से कारण जानना चाहा. लेकिन डर के मारे वह कुछ न बोली. उसके बदले व्यवहार से उन्हें कुछ अंदेशा हो गया था, परंतु उन्होंने उस पर यह बात ज़ाहिर न होने दी.
रेवा व चंदर के इस आकर्षण का पता सबसे पहले बेला टीचर को लगा. वे इतिहास पढ़ाती थीं. दोनों के बीच कुछ चल रहा है, इसका अंदाज़ा उन्हें अपनी कक्षा में हो गया था. वे अक्सर चंदर को टोकतीं. पर उनकी टोका-टोकी से चंदर को कुछ फ़र्क़ न पड़ता. पर रेवा को बड़ा ग़ुस्सा आता. हद तो उस दिन हो गई जब बेला मैम को चंदर की कॉपी चेक करते समय रेवा द्वारा लिखा प्रेम-पत्र मिला. बेला मैम ने अपना सिर पकड़ लिया. उन्होंने पहले चंदर, फिर रेवा दोनों को अलग-अलग बुलाकर ख़ूब फटकार लगाई. पर चंदर पर कोई असर न पड़ा और रेवा तो बेला मैम से चिढ़ गई.
रेवा चंदर के और नज़दीक आ गई. अब तो दोनों ने एक ही बेंच पर बैठना शुरू कर दिया. बेला मैम ने भांप लिया था कि वय: संधि की इस उम्र में दोनों के क़दम ग़लत दिशा में जा रहे हैं.
एक दिन रेवा अपनी सहेली से मिलने के बहाने चंदर से मिलकर जब घर लौटी तो अपने घर पर बेला मैम को देखकर चौंक गई. उसकी नाराज़गी नफ़रत में बदल गई. पता नहीं मम्मी-पापा को क्या-क्या चुगली की होगी? परंतु मम्मी-पापा के व्यवहार से उसे कुछ पता नहीं चला कि उन्होंने रेवा व चंदर के बारे में क्या बातचीत की. स्कूल में भी बेला मैम सामान्य रहीं. उन्होंने रेवा व चंदर से कुछ नहीं कहा. पर उस दिन के बाद से रेवा के मम्मी-पापा अब रेवा के साथ अधिक से अधिक समय बिताने लगे. मम्मी-पापा की कोई प्रतिक्रिया न देख अब रेवा भी निश्‍चिंत हो गई थी.
उसके पापा का तबादला अचानक दिल्ली हो गया. वो समझ गई थी कि ये सब बेला मैम के उस दिन घर आने का नतीज़ा है. मम्मी-पापा तो सामान्य थे, बल्कि उस पर अब पहले से ज़्यादा ध्यान दे रहे थे. इसलिए उनके साथ झगड़ा करने का सवाल ही नहीं उठता था. नई जगह, नया स्कूल, नए दोस्त और परिवार का भरपूर साथ. ज़िंदगी ख़ुशगवार गुज़र रही थी.
समय का पहिया चलता गया. बीती यादें धुंधली पड़ने लगीं. रेवा पढ़ाई में होशियार थी. उसने पीएच.डी. भी कर ली. लखनऊ की यादें अब पूरी तरह धुंधली पड़ गई थीं. चंदर उसके दिलो-दिमाग़ से कब निकल गया, उसे पता ही नहीं चला. पुराने दोस्तों से रेवा का संपर्क अब नहीं रहा. रेवा की पढ़ाई, फिर शादी और आज अचानक यूं चंदर से मुलाक़ात…
तभी धीरे-से दरवाज़ा खुलने की आव़ाज़ ने रेवा के विचारों के वेग को बाधित किया. धड़कते दिल से रेवा ने महसूस किया कि ये मीठी बयार समीर के अंदर आने का संकेत है. समीर ने प्यार से रेवा के माथे पर अपना हाथ रखा और फिर कुछ देर तक उसका हाथ सहलाकर वह रेवा को सोती जान धीरे-से दरवाज़ा बंद कर चला गया. रेवा ने तुरंत आंखें खोलीं, वह धड़कते दिल से खिड़की तक आई. चंदर की नज़र उस पर नहीं पड़ी थी. उसने चैन की सांस ली. अगर चंदर ने उसे देखा भी होता तो वह हिकारत से उसे पहचानने से इंकार कर देती.
आज उसे अपनी बेला मैम बहुत याद आ रही थीं. जाने क्यूं उनके पैर छूने का मन कर रहा था. ज़िंदगीभर जितनी नफ़रत की, आज होंठों पर उनके लिए दुआ थी, जिन्होंने उस कच्ची उम्र में उसे बहकने से रोका. अपने मम्मी-पापा के लिए श्रद्धा उत्पन्न हुई, जिन्होंने बिना जताए उस कच्ची उम्र की मिट्टी को सहेजा व आकार दिया, जिसकी बदौलत आज ये सुनहरे दिन उसकी झोली में हैं. आज चंदर को देख रेवा का मन खट्टा हो गया, यह सोचकर कि वह चंदर जैसे युवक की ओर कैसे आकर्षित हुई थी? रेवा का सर्वांग कांप गया. वह सोचने लगी कि यदि उसे समझदार मम्मी-पापा का साथ न मिला होता, बेला मैम ने आनेवाले तूफ़ान के आगाज़ को पहचान कर उसे वहीं पर रोका न होता तथा उसके मम्मी-पापा को सचेत न किया होता तो आज उसका जीवन न जाने किस भंवर में फंसा होता? वह आज कहां होती? रेवा इसके आगे कुछ सोच न पाई.
शाम हो गई थी. रेवा अच्छे से तैयार होकर नेहा की सगाई के लिए नीचे आई. चारों तरफ़ रौशनी ही रौशनी थी. समीर मंत्रमुग्ध-सा रेवा को निहार रहा था. कई प्रशंसा भरी नज़रें रेवा पर उठने लगीं. लेकिन रेवा की बेचैन नज़रें समीर को ढूंढ़ रही थी. समीर के पास आते ही लगा मानो एक सुरक्षा कवच ने उसे घेर लिया हो. उसने समीर का हाथ मज़बूती से पकड़ लिया. चारों ओर फैली रौशनी में उसके अतीत का अंधियारा छू-मंतर हो गया था.

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             मीनू त्रिपाठी

 

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