कहानी- लाइक्स (Short Story- Likes)

रोटी के भूख की तो फिर भी सीमा है, कोई दो, तो कोई चार खा लेगा… बहुत हुआ तो आठ-दस, पर पॉप्युलैरिटी… यह भूख जो असीमित भूख है… लाइक्स, लाइक्स… शायद आदमी इसी तरह की भूख का मारा है… पांच साल तो बीत गए इस दस हज़ार लाइक्स को पाने में… उसे अपने भीतर कमज़ोरी-सी महसूस हुई तो एहसास हुआ, मानसिक भूख के मिटने से पेट की भूख नहीं थमती.

वेब पेज खोलते ही ख़ुशी से उसकी आंख छलछला उठी. उसने एक बार फिर से देखा जैसे उसे अपने आप पर ही भरोसा न हो रहा हो, दस हज़ार तीन लाइक्स. उसे समझ में नहीं आया कि वह अपनी ख़ुशी को किस तरह अभिव्यक्त करे. न जाने कब से वह इस दिन का इंतज़ार कर रहा था. वह उठा और कमरे में ही नाचने लगा.
सबसे पहले किसे बताए, किसके साथ शेयर करे अपनी ख़ुशी. सचमुच उसे भीतर से एहसास हुआ आज वह कुछ बन गया है. इंटरनेट पर दस हज़ार लाइक्स का अर्थ था कम से कम उसके पेज को एक लाख से अधिक लोग तो देख ही चुके हैं और न जाने कितने फॉलोअर्स…
पूरे पांच साल से लगा था वह अपनी मेहनत से ख़ुद की पहचान बनाने में. अब लोग उसे सम्मान के साथ देखेंगे. कोई उसका मज़ाक नहीं उड़ाएगा. उसमें हुनर है, यह उसने साबित कर दिया था. उसे भरोसा था अब उसका ख़ूब नाम होगा. उसके पास अपना मनचाहा काम होगा. हो न हो, उसे बड़े-बड़े ऑफर्स मिलेंगे और देखते ही देखते एक दिन वह बड़ा आदमी बन जाएगा. वह ज़िंदगी में उस मुकाम को छूएगा, जिसे आज तक उसके आस-पास कोई न छू सका.
एक ज़बर्दस्त शोर, एक बहुत बड़ा तूफ़ान उठ रहा हो जैसे उसके कमरे में. उसने हेड फोन का स्पीकर थोड़ा और तेज़ किया. नीचे ऑटोमेटेड वॉर्निंग आ गई कि इससे ज़्यादा वॉल्यूम बढ़ाना हानिकारक हो सकता है. सुनने की शक्ति जा सकती है. इस समय उसे किसी चेतावनी की सुध कहां थी. उसने ख़ुद से कहा, वॉर्निंग, हुंह! ज़िंदगी में जिसे देखो, वह बचपन से बस वॉर्निंग ही तो देता है.
‘पढ़ो, नहीं तो फेल हो जाओगे.‘ ‘टॉप करो, नहीं तो कहीं एडमिशन नहीं मिलेगा’, ‘साइंस पढ़ो, नहीं तो कोई फ्यूचर नहीं है’, ‘नौकरी चाहिए तो इंजीनियरिंग कर लो, वरना पूरी ज़िंदगी ऐसे ही भटकते रहोगे.’ ये वॉर्निंग्स ही तो थीं कि वह अपनी ज़िंदगी छोड़कर उधार की ज़िंदगी जी रहा था. पिछले बीस वर्षों से कभी यह कोर्स, तो कभी वह ट्रेनिंग, कभी इस प्रमोशन के पीछे भागो, तो कभी उस टारगेट को पूरा करो. कभी बीस हज़ार का रिवॉर्ड, तो कभी विदेश यात्रा. कभी माता-पिता की चिंता, तो कभी परिवार की. कभी बच्चों के एडमिशन का मामला, तो कभी अपनी दवा-दारू का. ज़िंदगी न हुई, कोल्हू का बैल हो गई, सुबह उठकर जुते, तो शाम तक जैसे सिर उठाने की फुर्सत ही नहीं.
‘राइज़िंग सुपरस्टार’ अपने लिए शायद उसे यही तमगा मिला उस समय.
हा-हा ‘राइज़िंग सुपरस्टार.’ उस फिल्म के कैरेक्टर की तरह ही अब उसकी ज़िंदगी भी कुछ और होगी.

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विचारों की लहरें समंदर में उठ रहे ज्वार-भाटा को मात दे रही थीं. लाइक्स एक छोटी-सी घटना किस तरह किसी की ज़िंदगी बदल सकती है. वह मृदुल उ़र्फ बांके बिहारी उ़र्फ किसी छोटे से शहर से निकला रघुवीर सोच रहा था यह इंटरनेट भी कमाल की चीज़ है, किसी को कहां से कहां पहुंचा देती है. उसने फिर ध्यान से देखा तो उसे अपने अपलोड किए हुए वीडियो सॉन्ग पर बहुत से नामी सिंगर्स के कमेंट भी मिले थे. आह! अगर उसने कॉलेज के समय से ही सिंगिंग को अपना करियर बनाया होता, तो निश्‍चय ही आज वह बड़ा सिंगर होता. कोई ऐसा न था, जो उसके गाने का कायल न हो. क्लास में सर लोग तो फ्री पीरियड में उसका गाना सुनते थे और पूरी क्लास ताली बजाती थी.
तभी उसे लगा साउंड कुछ ज़्यादा ही लाउड है, कमरे में शोर भी बहुत है. उसने इधर-उधर देखा, कहीं कुछ नहीं था.
आस-पास घोर सन्नाटा, वह अकेला ही तो था अपने पूरे घर में. अब यह एक छोटा-सा कमरा ही तो पूरा घर है उसके लिए. ज़िंदगी भी अजीब होती है. कभी भी किसी को सब कुछ नहीं देती. तभी तो कहते हैं, कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, कहीं ज़मीं, तो कहीं आसमां नहीं मिलता. वह अपने विचारों की शृंखला को तर्क के महीन धागे में पिरोता जा रहा था. ये बड़े-बड़े अस्पताल जिसमें एक मरीज़ को देखनेभर की फीस ही हज़ार रुपए से कम नहीं है, फिर भी पूरे के पूरे भरे रहते हैं हमेशा. ये काले कोटवाले नामी वकील, जो एक-एक सुनवाई की पांच से दस लाख फीस लेते हैं, इनके पास समय नहीं होता.
ये कौन लोग हैं जिनके पास इतना पैसा है? और जिनके पास इतना पैसा है, जिनके पास इतनी अमीरी है, उन्हें तो कोई तकलीफ़ ही नहीं होनी चाहिए. अगर काले और स़फेद कोटवाले बड़े और अमीर लोगों के घर में आते-जाते हैं, तो भला यह भी कोई अमीरी हुई. अगर पैसे की बात छोड़ दें, तो शांति और सुकून के मामलों में इनसे बड़ा ग़रीब कोई नहीं है. मगर नहीं, अभी यह सब सोचने की ज़रूरत क्या है. अगर आस-पास उसे शोर अधिक महसूस हो रहा है, तो उसका कारण उसके अपने स्पीकर का वॉल्यूम है, क्योंकि खाली कमरे में उसके अलावा और है ही कौन.
उसने स्पीकर का साउंड कम किया. एक बार फिर अपने पेज पर नज़र मारने लगा. ढेर सारी इमोजी बनी हुई थी उसकी पोस्ट पर. न जाने कितने नाम दिखे उसे अपने पेज पर. उसे लगा उसको जाननेवाले सभी दोस्त, सभी दोस्तों के दोस्त और फिर उन दोस्तों के दोस्त… वह हंसा. न जाने कितनी लंबी सीरीज़ बन जाए चिंतन की और इस तरह उनके दोस्त के दोस्त भी उसे जानते हैं. पर इस जाननेवालों की सीरीज़ का कोई अंत है क्या? ऐसे ही सिलसिला चलता रहा, तो एक दिन पूरे इंडिया के लोग, फिर एशिया के और फिर पूरी दुनिया के लोग उसे जान जाएंगे.
हा-हा कितनी बड़ी भीड़ है इस एक छोटे-से मोबाइल की स्क्रीन पर, जैसे पूरा समंदर ही उतर आया हो इंटरनेट पर. परफॉर्म करने के लिए न स्टेडियम चाहिए, न कोई स्टेज, न ही कोई हॉल, जिसमें देखनेवालों की भीड़ हो. कोई छोटा-मोटा कमरा भी तो नहीं चाहिए आज परफॉर्म करने के लिए. चाहे पार्क में हों, सड़क पर हों या समंदर के किनारे, बस कुछ भी करो और नेट पर लोड कर दो. और इतना सब कुछ करने के लिए बस एक मोबाइल बहुत है. आज हमारे सपनों की दुनिया को सच करने के लिए तीन-चार हज़ार का एक खिलौना चाहिए बस. अपने कमरे में घोर अकेला होते हुए भी उसे अपनी स्क्रीन पर आए लाइक्स देखकर लगा वह बहुत बड़ी भीड़ से घिरा हुआ है. अजीब-सी बात है, आस-पास स़िर्फ और स़िर्फ सन्नाटा पसरा है व दिल में एहसास भीड़ से घिरे होने का पैदा हो रहा है. यही तो आज की ज़िंदगी है, एक शोर है जो कहता है भीड़ है कयामत की और हम अकले हैं. शायद यही आज के जीवन की सच्चाई बन गई है.
यह पॉप्युलैरिटी की दीवानगी, दुनिया में छा जाने का ख़्वाब भी एक अजीब-सी चीज़ है. उसके छोटे-से मोबाइल स्क्रीन पर दो-ढाई घंटे से बस एक पेज खुला था लाइक्स का. वह क़रीब सौ बार रिपीट कर-करके अपनी ही परफॉर्मेंस देख चुका था. उसे न भूख लग रही थी, न प्यास. तभी अचानक उसे अपना गला सूखता हुआ-सा प्रतीत हुआ. उसने फ्रिज से ठंडी बॉटल निकाली और गट-गटकर आधी खाली कर गया.
सच पूछिए तो आज के आदमी की सबसे बड़ी भूख नाम और शोहरत की है. अपनी पहचान बनाने की है. रोटी, कपड़ा और मकान की भूख तो छोटी भूख है, यह तो आज हर आम आदमी किसी न किसी तरह पूरी कर ही रहा है.
यह जो अनलिमिटेड डाटा का मार्केट है, आदमी के दिमाग़ में पैदा हुई इस नाम और शोहरत की भूख को मिटाने के लिए है. ‘नाम और शोहरत’ इसे नापने का कोई पैमाना है क्या?
और फिर शोहरत से बड़ी शोहरत की भूख. हर व़क्त यह ख़्याल कि आह! मुझे कितने लोग जानते हैं, कहीं भी जाऊं, तो बस मुझे पहचाननेवाले लोग मिलें, भीड़ में रहूं तो हाथों हाथ लिया जाऊं, लोग मुझे घेरकर, मेरे बारे में बातें करें, मुझसे मेरी सफलता की कहानी पूछें, मैं किसी दिन स्टेज पर बुलाया जाऊं, मुझे भी सम्मानित किया जाए, मेरे लिए गाड़ियां इंतज़ार करें, लोग फूल-माला लेकर स्वागत-सत्कार करें…
हा-हा… कितने बड़े सपने, कितने बड़े ख़्वाब होते हैं इस छोटी-सी ज़िंदगी के… दस हज़ार, दस लाख, दस करोड़ कोई सीमा ही नहीं है कि हमारी पॉप्युलैरिटी कितनी बढ़ सकती है.
रोटी के भूख की तो फिर भी सीमा है, कोई दो, तो कोई चार खा लेगा… बहुत हुआ तो आठ-दस, पर पॉप्युलैरिटी… यह भूख जो असीमित भूख है… लाइक्स, लाइक्स… शायद आदमी इसी तरह की भूख का मारा है… पांच साल तो बीत गए इस दस हज़ार लाइक्स को पाने में…
उसे अपने भीतर कमज़ोरी-सी महसूस हुई तो एहसास हुआ, मानसिक भूख के मिटने से पेट की भूख नहीं थमती. पर यह क्या, वह तो अपने सपनों में इस कदर खोया था कि उसे व़क्त का पता ही नहीं चला. यहां इस अकेले कमरे में कौन था जो उसे कहता, खाना खा लो, पानी पी लो, सो जाओ.
रात के एक बजे हैं… कोई बात नहीं,  पर यह महानगर तो नहीं है कि पिज़्ज़ा ऑर्डर कर देंगे और डिलीवरी बॉय दे जाएगा. इस छोटी-सी जगह में तो बस इलेक्ट्रिक कैटल से चाय बन सकती है, नूडल्स और कुछ बिस्किट हैं. चाय भी ख़ुद उठकर बनानी पड़ेगी.
वह हंसा… नाम, शोहरत के लिए अपने ख़्वाबों की ज़िंदगी पाने के लिए इतना सेक्रिफाइस तो बनता है. उसके मुंह से गालियां निकलते-निकलते बचीं, इंटरनेट का पेज, पेज पर लाइक्स, लाइक्स पर फ्रेंड रिक्वेस्ट और फिर ढेर सारी फॉलोइंग्स…  कमाल है, भीड़ है कयामत की और हम अकेले हैं.
ये हज़ारों लाइक्स किसी को एक कप चाय भी नहीं दे सकती. हा-हा-हा… लाखों लोगों के जानने के बाद भी मृदुल उ़र्फ बांके बिहारी उ़र्फ रघुवीर जिसका वीडियो एक  लाख लोग देख चुके हैं रात में भूखा है.
उसकी फ्रेंड लिस्ट दस हज़ार से पार है, जिसके पेज पर लाइक्स की बहार है, जिसके फॉलोअर्स चार हज़ार से ज़्यादा हैं… भूखा है, एक छोटे-से कमरे में मैगी खा रहा है. अगर अभी वह पेज पर एक फोटो लगाकर लिख भर दे कि ‘फीलिंग हंग्री’ तो ढेर सारे पिज़्ज़ा और न जाने कितने मील्स के फोटो देखते-देखते उसके पेज पर आ जाएंगे, न जाने कितने दोस्त और फैंस उसे बहुत कुछ ऑफर कर देंगे, बस होगा स़िर्फ इतना कि वह उसे देख तो पाएगा, पर मोबाइल से बाहर निकालकर खा नहीं पाएगा. फोटो को गहराई से सोचें, तो स़िर्फ एक परछाईं भर तो है, दिखती रहेगी, पर पकड़ में कभी नहीं आएगी.
वह सोचने लगा टु मिनट्स नूडल्स, यह लाइफ, नो… नो… यह लाइक्स भी क्या है… स़िर्फ पानी के बुलबुले या कहें टु मिनट्स नूडल्स की तरह नहीं है क्या? अभी आसमान में थे और अभी नीचे. यह नाम, शोहरत और पहचाने जाने की भूख भी कोई भूख है क्या और इससे भी हमें कुछ हासिल भी हो रहा है. यह शोहरत भी तो किसी आदमी की परछाईं की तरह है, जिसे बस देख सकते हैं, छू नहीं सकते. यह किसी के काम नहीं आ सकती.
आज फुर्सत किसे है किसी के पास कुछ भी देखने-सुनने और पढ़ने की, जिसे देखो, वह बस बोले जा रहा है. दिनभर बस नॉन स्टॉप चपर-चपर फेसबुक पर, ट्विटर पर, व्हाट्सऐप पर, हर व़क्त एक झूठा भ्रम… लाइक्स…
ज़िंदगी जैसे लाइक्स की ग़ुलाम होकर रह गई है. हर दस मिनट में, हर बीप पर हाथ का ख़ुद-ब-ख़ुद मोबाइल पर पहुंच जाना और अपनी पोस्ट को कितने लोगों ने लाइक किया देखना जैसे चौबीस घंटे का शग़ल बन गया है. किसने क्या कमेंट किया उस पर ध्यान टिकाए रखना. कमेंट्स पर हाथ जोड़ना या थैंक्स कहना. अपने थैंक्स को भी दूसरे के देखने के प्रति फॉलो करना. अपने नाम-शोहरत को पॉप्युलैरिटी के पैमाने पर नापना. दोस्तों में इस पॉप्युलैरिटी के सहारे ख़ुद को साबित करने की कोशिश करना. अपने आसपास जो हैं, उन्हें ही अपना न समझना और इंटरनेट पर इकट्ठा नकली इमोजी को असली ज़िंदगी का हिस्सा मान लेना.
यह जो उसके आसपास भीड़ है वह कौन-सी भीड़ है, जो भूख लगने पर उसे एक व़क्त की रोटी नहीं दे सकती, बीमार पड़ने पर डॉक्टर तक नहीं ले जा सकती और कहीं ख़ुदा न खास्ता अपने बाथरूम में गिर पड़े, तो उठा तक नहीं सकती. हां, उसका नाम बहुत है, शोहरत बहुत है, बड़ा आदमी है नेट पर. उसे सब जानते हैं. ज़रा-सा कुछ हो जाए, तो उससे हमदर्दी दिखानेवालों के मैसेज ही इंटरनेट पर रिकॉर्ड तोड़ दें. बीमारी लिखते ही परहेज़ और ठीक होने के लिए क्या करें कि सलाह से पेज भर जाए. और ख़ुदा न खास्ता कुछ हो जाए, तो ओ माई गॉड आरआईपी से पूरा व्हाट्सऐप ग्रुप भर जाए. वह भी कब कितने दिन? बस, एक दिन और जिसके लिए आरआईपी लिखा है, वह देखने के लिए है कहां कि आज कितने उसके चाहनेवाले हैं.  हां, कंधा देने के लिए सड़कपर उतरना हो, तो लोग नहीं मिलेंगे.
माई गॉड… बिहारी को एक शाम खाना नहीं मिला, तो उसके मन में कैसे-कैसे ख़्याल आ रहे हैं, उसके भीतर का राइज़िंग स्टार कहां गया. कहां गई वह बड़ी-बड़ी आदर्शवादी बातें. दरअसल, वह अच्छी तरह जानता था कि इस लाइक्स और इस तरह फेमस होने से कुछ नहीं होनेवाला है. यह सब बस अपने मन का भ्रम है. सब झूठी दुनिया की झूठी ख़ुशियां हैं. इस तरह अनजान लोगों द्वारा जानने या लाइक कर देने से कुछ नहीं होता.
न ही यह प्रसिद्धि कोई ठोस उपलब्धि है, इस इंटरनेट के समंदर में इस तरह के न जाने कितने खेल चल रहे हैं, जिसमें भटक-भटककर लोग अपना नकली सैटिस्फैक्शन ढूंढ़ रहे हैं.
रात के दो बज चुके थे, भूख अपना एहसास करा रही थी, थकान उस पर हावी थी. उसने कान से हेड फोन निकाल दिया, उसे लगा चक्कर आ जाएगा.
उसकी सांसें डूबती-सी लगीं, आदमी अपने जुनून और महत्वाकांक्षा में क्या से क्या हो जाता है और अपने नाम-शोहरत के पीछे अपना जीवन तक खो देता है. न जाने उसे क्यों लग रहा था कि उसका दिल सिकुड़ता जा रहा है, कहीं उसे कार्डियक अरेस्ट तो नहीं हो रहा? अरे, अरे, ये हो क्या रहा है? सच है, उसने अपना ध्यान ही नहीं रखा था.
इन एक लाख फॉलोअर्स और दस हज़ार लाइक्स का क्या होगा?
इससे पहले कि वह नेट बंद कर देता, उसने देखा बहुत देर से कोई कॉल उसका वेट कर रही है.
वह चौंका, अरे! यह तो उसकी वाइफ और बेटी की कॉल थी. पचास मिस कॉल्स… ओह माई गॉड! वह अपने पेज में, अपने गाने में, अपने स्पीकर में, अपने सपने में इस तरह उलझा था कि उसे अपने सबसे क़रीबी लोगों की कॉल ही नहीं सुनाई दे रही थी. उसने किसी तरह झट-से कॉल बैक की, पहली रिंग पूरी भी नहीं बजी थी कि फोन उठ गया. उधर से जैसे किसी के रोने की आवाज़ आ रही थी, फोन उठते ही आवाज़ जैसे मोबाइल से दूर हो गई. बस,  मोबाइल पर आसुंओं की बौछार हो जैसे… ढेर सारी शिकायतें, ढेर सारी डांट और ढेर सारी फ़रमाइशें. उसे लगा कोई कह रहा हो,  “पापा-पापा… आप ठीक तो हैं ना पापा… पूरी रात हो गई, आप कहां थे पापा. आप फोन क्यों नहीं उठा रहे थे? पापा, मम्मी का बुरा हाल है रो-रोकर, प्लीज़ पापा आप कुछ बोलते क्यों नहीं?”
यह उसके बेटी की आवाज़ थी. सुनते ही जैसे उसे सुकून मिल गया, जैसे जीवन में सबसे बड़ी दवा यही हो.
“अरे! हां बेटी, मैं… मैं ठीक हूं.” उसकी सांसें नियंत्रित हो रही थीं. उसने बगल में रखे पानी के बॉटल से घूंट-घूंटकर पानी पीया. “बेटी, मैं बिलकुल ठीक हूं. यह शायद नेटवर्क की प्रॉब्लम है, तुम कॉल कर रही होगी, मुझे कोई कॉल नहीं मिली. अभी देखा तो एक साथ इतनी सारी मिस कॉल दिखा रहा था.”
तब तक उधर से आवाज़ आने लगी. बेटी बोली, “लो पापा, मम्मी से बात कर लो.”
अब बस बात क्या होनी थी, पर इस समय वो सारी की सारी डिस्लाइक्स जैसे बहुत ही अच्छी लग रही थीं. उन एक लाख फ्रेंड्स और दस हज़ार लाइक्स से कहीं क़ीमती.
हां, अपने ही लोगों के लाइक्स और कमेंट्स नहीं होते अपने पेज पर, तो क्या वो हमें डिस्लाइक करते हैं?

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“अरे! सुन रहे हो या फिर सो गए. पिछले तीन घंटे मेरे कैसे कटे हैं मैं ही जानती हूं. तुम्हारा क्या है, लगे होगे कहीं इधर-उधर. कितनी बार तो कहा है टाइम से खा लिया करो और हां, एक सिम और ले लो, ये नेटवर्क की प्रॉब्लम तो छोटी जगह पर रहेगी ही ना. ये नौकरी भी न जाने तुम्हें कहां-कहां भटका रही है.”
उसकी आंखें भी भर आई थीं, “बस, अब सो जाओ. तुम भी तो जाग रही हो. कितनी रात हो गई है और हां, मैं आ तो रहा हूं इस संडे को.”
“हां प्लीज़, जल्दी आ जाओ. आज तो मैं सचमुच बहुत डर गई थी.” तभी बेटी ने फोन ले लिया, “पापा, आप भी सो जाइए और इतना काम मत किया कीजिए कि हम लोगों को ही भूल जाएं.”
उसे लगा बेटी बड़ी बात कर रही है. ओह! उसने सोचा ही नहीं कि बच्चे देखते ही  देखते बड़े हो जाते हैं और हमें समझाने की स्टेज पर पहुंच जाते हैं. वह बोला, “कैसी बातें कर रही है. कोई अपने बच्चों और परिवार को भी भूलता है क्या. आज नेटवर्क प्रॉब्लम थी बस और कोई बात नहीं है. अब तू भी सो जा और मम्मी का ध्यान रख.” इतना कहकर उसने मोबाइल काट दिया.
सचमुच जीवन में अपने सबसे क़रीबी लोगों के लाइक्स और कमेंट हमें कभी नहीं मिलते और हम सोचते हैं कि ये लोग हमें पसंद नहीं करते, जबकि सच तो यह है कि इन्हें इस बात का एहसास ही नहीं है कि जो हमारे हैं या यह कहें कि जो हमारी ज़िंदगी का हिस्सा हैं, उन्हें क्या लाइक और डिस्लाइक करना. लाइक्स या कमेंट्स तो दूसरे करते हैं, अपने तो बस अपने होते हैं. उनके लिए तो आप, आप हैं, नाम या शोहरत हो न हो, क्या फ़र्क़ पड़ता है.
ये लाइक्स-वाइक्स तो बस परछाईं है, जिसे पकड़ा नहीं जा सकता और रिश्ते परछाईं नहीं होते, वो अपनों के बिना सोते नहीं हैं, खाना-पीना नहीं खाते हैं, चैन से सांस नहीं लेते हैं. हां, किसी पेज पर जाकर इमोजी नहीं बनाते, न ही लाइक्स का थम्स अप दिखाते हैं. वह भीतर तक डर गया. आज अगर बेटी का फोन न आता तो…
ये जो बढ़ती हुई दिल की धड़कनें थीं, किसी अस्पताल तक भी न पहुंचने देतीं… किसी भी भारी आवेग में सबसे बड़ी दवा अपनों का सहारा ही तो है. उसे लगा अगर उसने यह लाइक्स का चक्कर नहीं छोड़ा, तो कहीं असली ज़िंदगी से डिस्लाइक न हो जाए.
अब वह शांत था, बिल्कुल शांत. उसे अब अपनी ज़िंदगी या अपने भीतर के राइज़िंग स्टार के राइज़ न कर पाने से शिकायतें कम हो रही थीं. वह अपने पारिवारिक रिश्तों की रोशनी में इस लाइक्स की दुनिया के ऊपर से उठ रहे पर्दे को देख पा रहा था. उसे लगा अगर उसने एमसीए करके कम्प्यूटर डाटा एनालिस्ट का जॉब न पकड़ा होता, तो आज न जाने कहां धक्के खा रहा होता. न घर-परिवार होता, न ही प्यारी-सी बेटी. हां, लाइफ में लाइक्स की भरमार होती, पर तब तक पता नहीं वह अपने ही पेज पर ये लाइक्स देख भी पाता या नहीं.

मुरली मनोहर श्रीवास्तव

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