कौतूहल में भरे मिस्टर दवे को मुखिया ने बताया, “साहब, बच्चे की माता ने इस पौधे के कान में अपने बच्चे का नाम बोलकर उससे…
“शशिकांत, इतना तामझाम करके हम इतनी दूर से आए, पर यहां तो गिने-चुने गांववाले है.”
मिस्टर दवे नाराज़गी से टीम लीडर शशिकांत से पूछ रहे थे और वह सफ़ाई में कह रहा था, “सर, ये गांव बहुत दूर था, तो सोचा कि थोड़ा पहले जाकर मुखिया से बात करके सारा बंदोबस्त करा लेंगे. किसने सोचा था कि एक बच्चे के नामकरण की रस्म में शामिल होने के लिए ये लोग गांव से बाहर चले जाएंगे.”
“उनके इंतज़ार में हमारा समय ख़राब होगा. किसी भी गांव में टीम को ले जाने से पहले ख़ुद जाकर अपना प्रयोजन मुखिया को बताना चाहिए, ताकि वो अपनी सहूलियत के हिसाब से हमें वहां बुलाए.”
पर्यावरण संरक्षण मंडल के वरिष्ठ प्रवक्ता और पर्यावरणविद मिस्टर दवे अपने टीम मैनेजर शशिकांत पर झुंझलाए.
पर्यावरण संरक्षण अभियान के चलते अनेक सेमिनार-गोष्ठियां आयोजित करनेवाले मिस्टर दवे के सद्प्रयासों की सराहना देश-विदेशों में होती रही है.
इन दिनों पर्यावरण संरक्षण के लिए उन्होंने सौ गांवों को ‘पर्यावरण के प्रति साक्षर’ करने के लिए चिह्नित किया था. निन्यानबे गांवों को साक्षर कर चुके थे और यह सौंवा गांव था.
पहाड़ी की तलहटी में मधुरा नदी के किनारे बसे मधुपुर गांव में बिना पूर्व सूचना के पहुंचने की गफलत का पता दवे साहब को तब चला, जब गांव उन्हें लगभग खाली मिला.
गांव के मुखिया भी नामकरण संस्कार के लिए निकल ही रहे थे. शशिकांत ने मुखिया को अपने आने का प्रयोजन बताया, तब उन्होंने कहा, “आज गांव में एक शिशु का नामकरण संस्कार है, सो कुछ देर पहले ही सभी नामकरण की रस्म निभाने के लिए पास के जंगल में निवास करनेवाले अपने कुल देवता की पूजा-अर्चना करने निकल चुके हैं.”
मिस्टर दवे को परेशान देख गांव के मुखिया ने उनसे कहा, “श्रीमान, आप हमारे गांव में मेहमान बनकर आए हैं. आपका यहां आना बेजा नहीं जाएगा. हमारे गांव में नामकरण की अनूठी प्रथा सदियों पुरानी है. आप लोग भी साक्षी बनिए और बच्चे को आशीर्वाद दीजिए. मैं वहीं पर आप लोगों को गांव-वालों से बातचीत करने की व्यवस्था करवा दूंगा.”
मुखिया का सहयोग मिस्टर दवे को प्रभावित कर गया. उन पर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में सौ गांवों को पर्यावरण साक्षर बनाने की रिपोर्ट भेजने का दबाव भी था, सो मान गए.
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मुखियाजी को साथ में लेकर पर्यावरण टीम जीप में बैठकर निकली. क़रीब एक कोस कच्चे और पथरीले रास्ते की दूरी तय करने के पश्चात हरे-भरे जंगलों की ओर मंगल गीत गाते हुजूम को देख सब ख़ुशी से चहक उठे. आज उनका प्रोजेक्ट पूरा हो जाएगा यह सोचकर सब उत्साहित थे.
मुखिया के साथ आए शहरी मेहमानों को देख कुछ सकुचाहट और कौतूहल से सब भर उठे. मुखियाजी ने उन्हें बताया कि कुछ शहरी बुद्धिजीवी मेहमान नामकरण की रस्म देखेंगे, फिर गांववालों के साथ ज़रूरी बातचीत करेंगे.
यह सुनकर गांववाले उत्साहित हो गए और थोड़ी ही दूर पर वे सब एक बड़ी-सी शिला के पास रुक गए.
वह क्षेत्र हरियाली से आच्छादित था. वहां की हरीतिमा देखते ही बनती थी. मुखियाजी ने टीम के सभी लोगों को एक ऊंचे टीले पर बैठा दिया. वहां से सबने देखा कि शिशु को उसके माता-पिता ने बांस की एक टोकरी में लिटाकर शिला के सामने रख दिया. उस टोकरी को मंगल गीत गाती स्त्रियों ने घेर लिया. फिर पिता ने एक नन्हे पौधे की शिला के सामने रखकर पूजा की. फिर पौधे को शिला से छुआकर वह कुछ लोगों के साथ एक खाली स्थान पर गया.
शिशु की मां एक कलश सिर पर रखे वहां आई. पिता ने भूमि पर कुदाली-खुरपी से थोड़ी गुड़ाई की… फिर वहां पर उन्होंने बड़ी सावधानी से वह पौधा रोपित किया… बच्चे की मां ने कलश का जल पौधे की जड़ में डाला फिर मिट्टी से उसके चारों ओर थाला-सा बना दिया. लोक गीत गातीं औरतें उस शिशु को गोद में लिए वहां आ गई. माता ने पहले उस नन्हें पौधे और फिर शिशु के कान में नाम बोला. सबके चेहरे पर उत्सुकता देख उस शिशु के पिता ने हंसते हुए उसके नाम का तेज स्वर में उच्चारण किया.
कौतूहल में भरे मिस्टर दवे को मुखिया ने बताया, “साहब, बच्चे की माता ने इस पौधे के कान में अपने बच्चे का नाम बोलकर उससे आशीष मांगा है. अब यह पौधा इस बच्चे के नाम से पुकारा जाएगा.”
“इसका मतलब आज पौधे और इस शिशु दोनों का नामकरण हुआ है.”
मिस्टर दवे ने आश्चर्य से पूछा और देखा गांव के कुछ जोड़े शिशु के माता-पिता को पौधों की भेंट देने लगे.
पिता गांववालों की मदद से उन पौधों को आसपास रोपता जाता और शिशु की मां कलश से उन पौधों पर जल छिड़ककर उनके कान में कुछ कहती जाती. ये सारी प्रक्रिया थकानेवाली पर रोचक थी. इस बीच माता-पिता के चेहरे पर छाया संतोष अभूतपूर्व था.
मुखियाजी ने बताया, “साहब, बच्चे की माता इन पौधों से अपने बच्चे के लिए आशीष मांग रही है…” यह सुनकर शशिकांत बोला, “समझा… इस अनूठी प्रथा के कारण यहां इतनी हरियाली है…”
मुखियाजी बोले, “साहबजी, ये हरियाली तो हमारे गांव की पीढ़ियां हैं. वृक्षों के आकार-प्रकार और इनके तने के छल्लों से गांव की नई-पुरानी पीढ़ियां जानी जाती है.
माता-पिता को गांववालों से भेंट में मिले पौधे रोपना सौभाग्य सूचक होता है. जिसका जितना व्यवहार, उसे उतने ही पौधे मिलते हैं और साथ ही मिलता है उन पौधो से आशीष मांगने का सौभाग्य…”
दवे साहब मंत्रमुग्ध से गांव की इस अनूठी प्रथा को देख-सुन रहे थे.
नामकरण हो चुका, तो गांववाले हंसी-ठिठोली में जुट गए कि तभी मुखिया जी ने उन्हें संबोधित किया.
“अरे भाइयों, अब आप लोग ज़रा शांत होकर यहां बैठ जाइए. ये बाबू लोग आपसे बातचीत करने आए है. कहते हैं, पर्यावरण पर संकट आया है. इस संकट को टालने के लिए ये कुछ ज़रूरी बातें हमें समझाएंगे.”
मुखिया की बात पर दवे साहब जैसे नींद से जागे और मुखिया के दोनों हाथ थामकर भावुकता से बोले, “आज तक रस्मों के नाम पर प्रकृति को लहूलुहान होते देखा है, पर जो आज यहां देखा वह अद्भुत था.
जहां बच्चों के जन्म की ख़ुशियां पौधे लगाकर मनाई जा रही हों, वहां भला कोई संकट कैसे आ सकता है… आप लोग तो समझाने-समझने से कही आगे निकल गए हैं.”
मुखियाजी को दुविधा में फंसा देखकर मिस्टर दवे हाथ जोड़ते हुए बोले, “आपके गांव की नामकरण की प्रथा अनूठी है. जिस शिशु को प्रकृति का आशीर्वाद मिला हो, उस पर भला कोई संकट कैसे आ सकता है. ये सच है कि हम यहां आपके गांववालों को कुछ सिखाने आए थे, पर आपके गांव ने बड़ी मासूमियत से हमें ही पाठ पढ़ा दिया.”
दवे साहब भावुक हो अपनी टीम समेत जीप में बैठ गए.
वापसी में सब निशब्द हो आत्ममंथन कर रहे थे कि उनके सतही प्रयास प्रेजेंटेशन, काॅन्फ्रेंस हाल और तथ्य इकट्ठे करने तक ही सीमित रहा, जबकि असल प्रयास तो जाने-अनजाने इन भोले-भाले लोगो द्वारा किया जा रहा है. तभी शायद हम बचे हैं और यह दुनिया भी…
टीम मैनेजर शशिकांत मिस्टर दवे से बोले, “सर, पर्यावरण साक्षर अभियान के तहत इस गांव की गिनती सौंवे गांव के रूप में होगी या सौंवा कोई दूसरा गांव लें ले…”
कुछ पल के मौन के बाद मिस्टर दवे बोले, “रिपोर्ट में लिख दीजिए कि निन्यानवे गांव हमने बड़े परिश्रम से पर्यावरण की दृष्टि से साक्षर कर दिए गए है, पर सौंवा गांव हमें साक्षर कर गया, वो भी अपनी सादगी से…”
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खूबसूरत तो हम सभी दिखना चाहते हैं और जब भी कोई त्योहार या बड़ा मौक़ा आता है तो हम कोशिश करते हैं कि अपनी ब्यूटी काख़ास ख़याल रखें. शादी के मौक़े पर भी हम अलग ही तैयारी करते हैं, लेकिन सवाल ये है कि सिर्फ़ विशेष मौक़ों पर ही क्यों, हर दिनखूबसूरत क्यों न लगें? है न ग्रेट आइडिया? यहां हम आपको बताएंगे डेली ब्यूटी डोज़ के बारे में जो आपको बनाएंगे हर दिन ब्यूटीफुल… स्किन को और खुद को करें पैम्पर फेशियल, स्किन केयर और हेयर केयर रूटीन डेवलप करें, जिसमें सीटीएम आता है- क्लेंज़िंग, टोनिंग और मॉइश्चराइज़िंग.स्किन को नियमित रूप से क्लींज़ करें. नेचुरल क्लेंज़र यूज़ करें. बेहतर होगा कि कच्चे दूध में थोड़ा-सा नमक डालकर कॉटनबॉल से फेस और नेक क्लीन करें.नहाने के पानी में थोड़ा दूध या गुलाब जल मिला सकती हैं या आधा नींबू कट करके डालें. ध्यान रहे नहाने का पानी बहुत ज़्यादा गर्म न हो, वरना स्किन ड्राई लगेगी. नहाने के लिए साबुन की बजाय बेसन, दही और हल्दी का पेस्ट यूज़ कर सकती हैं. नहाने के फ़ौरन बाद जब स्किन हल्की गीली हो तो मॉइश्चराइज़र अप्लाई करें.इससे नमी लॉक हो जाएगी. हफ़्ते में एक बार नियमित रूप से स्किन को एक्सफोलिएट करें, ताकि डेड स्किन निकल जाए. इसी तरह महीने में एक बार स्पा या फेशियल कराएं.सन स्क्रीन ज़रूर अप्लाई करें चाहे मौसम जो भी हो. इन सबके बीच आपको अपनी स्किन टाइप भी पता होनी चाहिए. अगर आपकी स्किन बेहद ड्राई है तो आप ऑयल या हेवी क्रीमबेस्ड लोशन या क्रीम्स यूज़ करें.अगर आपको एक्ने या पिम्पल की समस्या है तो आप हायलूरोनिक एसिड युक्त सिरम्स यूज़ करें. इसी तरह बॉडी स्किन की भी केयर करें. फटी एड़ियां, कोहनी और घुटनों की रफ़, ड्राई व ब्लैक स्किन और फटे होंठों को ट्रीट करें. पेट्रोलियम जेली अप्लाई करें. नींबू को रगड़ें, लिप्स को भी स्क्रब करें और मलाई, देसी घी या लिप बाम लगाएं. खाने के सोड़ा में थोड़ा पानी मिक्स करके घुटनों व कोहनियों को स्क्रब करें. आप घुटने व कोहनियों पर सोने से पहले नारियल तेल से नियमित मसाज करें. ये नेचुरल मॉइश्चराइज़र है और इससे कालापनभी दूर होता है. फटी एड़िययां आपको हंसी का पात्र बना सकती हैं. पता चला आपका चेहरा तो खूब चमक रहा है लेकिन बात जब पैरों की आईतो शर्मिंदगी उठानी पड़ी. फटी एड़ियों के लिए- गुनगुने पानी में कुछ समय तक पैरों को डुबोकर रखें फिर स्क्रबर या पमिस स्टोन से हल्के-हल्के रगड़ें.नहाने के बाद पैरों और एड़ियों को भी मॉइश्चराइज़र करें. चाहें तो पेट्रोलियम जेली लगाएं. अगर पैरों की स्किन टैन से ब्लैक हो है तो एलोवीरा जेल अप्लाई करें.नेल्स को नज़रअंदाज़ न करें. उनको क्लीन रखें. नियमित रूप से ट्रिम करें. बहुत ज़्यादा व सस्ता नेल पेंट लगाने से बचें, इससे नेल्स पीले पड़ जाते हैं.उनमें अगर नेचुरल चमक लानी है तो नींबू को काटकर हल्के हाथों से नाखूनों पर रगड़ें. नाखूनों को नियमित रूप से मॉइश्चराइज़ करें. रोज़ रात को जब सारे काम ख़त्म हो जाएं तो सोने से पहले नाखूनों व उंगलियों परभी मॉइश्चराइज़र लगाकर हल्के हाथों से मसाज करें. इससे ब्लड सर्कूलेशन बढ़ेगा. नेल्स सॉफ़्ट होंगे और आसपास की स्किनभी हेल्दी बनेगी.क्यूटिकल क्रीम लगाएं. आप क्यूटिकल ऑयल भी यूज़ कर सकती हैं. विटामिन ई युक्त क्यूटिकल ऑयल या क्रीम से मसाज करें.नाखूनों को हेल्दी व स्ट्रॉन्ग बनाने के लिए नारियल या अरंडी के तेल से मालिश करें. इसी तरह बालों की हेल्थ पर भी ध्यान दें. नियमित रूप से हेयर ऑयल लगाएं. नारियल या बादाम तेल से मसाज करें. हफ़्ते में एक बार गुनगुने तेल से बालों की जड़ों में मालिश करें और माइल्ड शैम्पू से धो लें. कंडिशनर यूज़ करें. बालों को नियमित ट्रिम करवाएं. अगर डैंड्रफ या बालों का टूटना-झड़ना जैसी प्रॉब्लम है तो उनको नज़रअंदाज़ न करें. सेल्फ ग्रूमिंग भी है ज़रूरी, ग्रूमिंग पर ध्यान दें… रोज़ ब्यूटीफुल दिखना है तो बिखरा-बिखरा रहने से बचें. ग्रूम्ड रहें. नियमित रूप से वैक्सिंग, आईब्रोज़ करवाएं. ओरल व डेंटल हाईजीन पर ध्यान दें. अगर सांस से दुर्गंध आती हो तो पेट साफ़ रखें. दांतों को साफ़ रखें. दिन में दो बार ब्रश करें. कोई डेंटल प्रॉब्लम हो तो उसका इलाज करवाएं.अपने चेहरे पर एक प्यारी सी स्माइल हमेशा बनाकर रखें. अच्छी तरह ड्रेस अप रहें. कपड़ों को अगर प्रेस की ज़रूरत है तो आलस न करें. वेल ड्रेस्ड रहेंगी तो आपमें एक अलग ही कॉन्फ़िडेन्स आएगा, जो आपको खूबसूरत बनाएगा और खूबसूरत होने का एहसास भीजगाए रखेगा. अपनी पर्सनैलिटी और स्किन टोन को ध्यान में रखते हुए आउटफ़िट सिलेक्ट करें. एक्सेसरीज़ आपकी खूबसूरती में चार चांद लगा देती हैं. उनको अवॉइड न करें. मेकअप अच्छे ब्रांड का यूज़ करें, लेकिन बहुत ज़्यादा मेकअप करने से बचें. कोशिश करें कि दिन के वक्त या ऑफ़िस में नेचुरल लुक में ही आप ब्यूटीफुल लगें. फ़ुटवेयर भी अच्छा हो, लेकिन आउटफ़िट व शू सिलेक्शन में हमेशा कम्फ़र्ट का ध्यान भी ज़रूर रखें. आपके लुक में ये बहुतमहत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
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