कहानी- शतरंज का खेल (Short Story- Shatranj Ka Khel)

मधु ने अपने अधिकतर मोहरों को एक तरफ़ केंद्रित करके रखा हुआ है, सभी उसकी ओर ही आकर्षित होते हैं, तो तान्या का चिढ़ना स्वाभाविक ही है. और इस वजह से वह बोर्ड के मध्य भाग पर अपना नियंत्रण कायम करने के लिए आक्रामक चालें चलती है, लड़ती है, ग़ुस्सा करती है और बहस करती है. वह अपनी जगह तभी बना पाएगी, जब मधु उसके लिए जगह छोड़ेगी.

‘‘आज फिर बहुत क्लेश हुए घर में. पहले तो तान्या मुझसे बहस करती रही. कहती है- आप आराम करोगी, तो मैं भी आराम करूंगी. जब सारा दिन आपको घूमने को चाहिए, तो मेरे घूमने पर क्यों बुरा लगता है. वैसे भी मेरी तो उम्र है घूमने की. और अगर मैं घर पर नहीं हूं, तो आप काम क्यों नहीं कर सकतीं… मैंने कहा कि इस तरह मुझसे बात करते हुए तुझे शर्म नहीं आती, कम से कम रिश्ते का तो लिहाज कर लिया कर… मेरा इतना बोलते ही मानो तूफ़ान आ गया. उसका ग़ुस्सा तो तुझे पता ही है, एकदम बेकाबू हो जाती है सारे रिश्तों और मर्यादाओं को ताक पर रखकर. फिर तो ग़ुस्से में तान्या दीवार पर ही सिर मारने लगी. चिल्लाने लगी कि ‘मैं ही बुरी हूं, मुझे ही घर छोड़कर चले जाना चाहिए…’ बड़ी मुश्किल से उसे संभाला पराग ने. दोनों बेटियां थर-थर कांप रही थीं और मां के इस रौद्र रूप को देखकर मुझसे चिपट गई थीं. यह देख तो वह और भड़क गई. बोलने लगी, ‘मेरी बेटियां भी छीन लो मुझसे… आप दादी हो, इनकी मां बनने की कोशिश क्यों करती हो. सास की तरह क्यों नहीं रहतीं. दादी की तरह क्यों नहीं व्यवहार करतीं.’ वह तो पराग उसे कमरे में ले गया, नहीं तो न जाने और क्या सुनना पड़ता.’’
दोपहर में जब मधु का फोन आया, तो मैं उसे न तो यह कह सकी कि परेशान मत हो, सब ठीक हो जाएगा, न ही यह कह पाई कि तुम समस्या को समझो न कि आख़िर तान्या क्यों ऐसा व्यवहार करती है.
‘‘जानती हो कामना, बहुएं सास से ऐसा व्यवहार नहीं करतीं, जैसा तान्या करती है. पलटकर जवाब देती है, बहस करती है, कुछ बोलो तो चिल्लाएगी, क्लेश करेगी… मेरी तो अपनी सास के सामने मुंह खोलने की हिम्मत तक नहीं थी. तुमने तो सब देखा है कामना…तुमसे क्या छिपा है. बताओ क्या मैंने कभी मम्मीजी को जवाब दिया था उलट कर, कभी उनसे बहस की थी?’’
‘‘नहीं भाभी, कभी नहीं.’’ कामना ने कहा.
हां, मधु मेरी भाभी हैं. मेरे बड़े भाई की पत्नी, पर हमारा रिश्ता तो न कभी हमारे परिवार को समझ आया, न समाज को. ननद-भाभी से ज़्यादा हम शुरू से ही, जब से मधु भाभी बन कर घर आई थी, एक दोस्त बन गई थीं. हर बात को शेयर करनेवाली बेहिचक, निस्संकोच… कभी हमारा ननद-भाभी का रिश्ता इस दोस्ती के बीच नहीं आया, बल्कि समय के साथ और गहरा होता गया और याद भी नहीं रहा कि हम ननद-भाभी हैं. जब तक मेरी शादी नहीं हुई थी, तब भी हम दोनों के बीच कभी किसी बात को लेकर टकराहट नहीं हुई, बल्कि मैं मां और भाभी के बीच कभी-कभार होनेवाले मतभेदों को सुलझानेवाली सेतु बनती थी.


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यह सच है कि मधु ने कभी मम्मी का अपमान नहीं किया, उन्होंने जैसा कहा, सारे नियमों व रीति-रिवाजों का पालन किया. हालांकि इसके बावजूद मम्मी को उनमें बहुत कमियां नज़र आती थीं, पर बड़े भैया कभी उनके बीच में नहीं बोले या कभी किसी एक का पक्ष नहीं लिया. इसलिए कभी चिंगारी भड़की भी तो बिना लपट उठे ही बुझ गई.
पराग, मां और पत्नी के बीच न तो तालमेल बिठा पा रहा है, न ही एक बैलेंस एप्रोच रख पा रहा है. तान्या उस पर हावी रहती है, क्योंकि वह जानती है कि वह उसके बिना नहीं रह सकता. उसकी उंगली में जरा-सी चोट तक लग जाए, तो ऐसे बिलबिला उठता है जैसे उसकी शरीर का कोई अंग क्षतिग्रस्त हो गया है. कितनी बार तो मैंने उसे ख़ुद कहते सुना है कि मैं तान्या के बगैर नहीं रह सकता. वह भी उसकी कमज़ोरी या कहें प्यार का फ़ायदा उठाकर, इसीलिए बार-बार मायके जाने की धमकी देती है.
हालांकि शुरुआत में मधु ने भी उसे कम सिर नहीं चढ़ाया था, क्योंकि वह उनकी तुलना में कहीं अधिक संपन्न परिवार की है और उसके पिता का राजनीति में भी दख़ल है. इकलौती लड़की होने के कारण अपने घर में भी तान्या की ही चलती थी और जैसे चाहती थी वैसे रहती थी. किसी से दबने की प्रवृत्ति नहीं है, लेकिन प्यार से उसे बस में किया जा सकता है. पहले तो मधु उसकी हर बात मानती रही, कोई बात बुरी भी लगती, तो नज़रअंदाज़ कर जाती. आख़िर जब भी तान्या मायके से लौटती, कार में सामान इतना लदा होता था कि उतारने में ही काफ़ी समय लग जाता था. मधु तो सामान को संभालते-संभालते थक जाती थी. मायके की ठसक और हमेशा से अपने तरह से जीने की आदी तान्या की धीरे-धीरे मधु के सामने ज़ुबान खुलती गई.
मायके और ससुराल में फ़र्क होता है, यह बात उसे समझ नहीं आती थी या वह समझना नहीं चाहती थी. कहते हैं न एक बार इंसान शर्म घोल कर पी जाए, तो फिर उसको बेपरवाह होने से रोका नहीं जा सकता है. मधु को उसका शरीर दिखाते कपड़े पहनना नागवार गुजरता, दबे स्वर में कभी टोका तो या तो पलटकर करारा जवाब मिल जाता या मुंह बनाकर तान्या अपने कमरे में जो घुसती, तो घंटों बाहर ही नहीं निकलती. पराग को ही उसे खाना खाने के लिए मनाना पड़ता. यहां तक कि बड़े भैया का डर या लिहाज़ भी नहीं रहा था.
मधु को जब लगा कि तान्या उसकी हर बात का विरोध करती है, तो वह झुंझलाने लगी. बड़े भैया तो शुरू से ही चुप रहा करते थे और किसी मामले में बोलते ही नहीं थे. मधु जब उनसे तान्या की शिकायत करती और वह चुपचाप बस सुनते रहते, तो वह और चिढ़ जाती है. कभी रो लेती है, कभी अंदर ही अंदर कुढ़ती रहती है, इसीलिए मैं ही हूं, जिससे वह सारी बातें शेयर कर सकती है. बुआ होने के नाते मेरे लिए भी तान्या और पराग के साथ एक बैलेंस बनाए रखना ज़रूरी है.
मैं काफ़ी हद तक तान्या के दिल में चलनेवाली उथल-पुथल को समझ चुकी थी. बहुत ही प्यारी बच्ची है, मिलनसार है, सबकी इज्ज़त करती है. घर चले जाओ, तो दौड़ती-फिरती है. सब काम में आगे रहती है. फिर मधु की इज्ज़त क्यों नहीं करेगी. लेकिन मधु कहती है कि दूसरों के सामने कितनी भली और मासूम बनी रहती है, कोई सोच भी नहीं सकता कि वह इतनी मुंहजोरी करती होगी.
‘’सारी ज़िंदगी हर किसी की मैंने इज्ज़त की, सेवा की, कभी किसी को देने में कटौती की नहीं. अपने मायकेवालों को भुलाकर पूरी तरह से इस घर को अपना लिया. हर रिश्ते का मान रखा और इसलिए सबने मुझे भी इतना प्यार और सम्मान दिया. आज भी दूर-दूर के रिश्तेदार यह कहते नहीं थकते कि मधु जैसी बहू मिलना भाग्य की बात है. आज भी सब पलकों पर बैठाते हैं और मम्मीजी के जाने के बाद भी पहले ही की तरह मिलने आते हैं, मुझे बुलाते हैं. इसीलिए न क्योंकि मैंने कभी किसी को इज्ज़त देने में कोई कमी नहीं रखी. सारी ज़िंदगी पूरे घर-परिवार में मैं सबकी लाड़ली बनी रही, पर इस फ्रंट पर मैं मात खा गई कामना. न जाने कैसे मैं तान्या की नज़रों में अच्छी सास नहीं हूं. जब मैं सारे रिश्ते बख़ूबी निभा सकती हूं, तो इस सबसे ज़रूरी रिश्ते को क्यों नहीं… जो मेरे पराग के लिए सबसे अहम है…’’
क्या कहूं मैं, न मधु की बात काट सकती हूं, न तान्या के पक्ष में बोल सकती हूं. मेरी नज़रों में तो दोनों ही सही हैं, अपने-अपने नजरिए से, क्योंकि वे जो सोचती हैं, वे देखा जाए, तो ग़लत भी नहीं है. बस एक बैलेंस नहीं बन पा रहा है दोनों के बीच, वह भी इसलिए कि एक-दूसरे के बीच जैसे श्रेष्ठता साबित करने की होड़ सी लगी है.
सच है कि मधु भाभी बहुत सुंदर हैं और उनकी सुंदरता पर रीझकर ही मम्मी उन्हें बहू बनाकर लाई थीं, उनके साधारण परिवार से होने के बावजूद. आज भी वह उतनी ही आकर्षक लगती हैं और हमेशा एकदम सज-संवर कर रहती हैं. यह आदत हो सकती है, क्योंकि हर कोई सुरुचिपूर्ण ढंग से रहना जानता हो, यह ज़रूरी नहीं, पर उन्हें घर में भी अस्त-व्यस्त कपड़ों में नहीं देखेंगे.
महंगी साड़ियां, ज्वेलरी, कॉस्मैटिक का सामान हो या जूते-चप्पल उनकी आलमारियां हमेशा भरी रहीं. मैचिंग बैग, क्लिप, चूड़ियां, बिंदी… कौन-सी ऐसी चीज़ नहीं है, जो उनके पास नहीं है. पैंसठ की उम्र लांघने के बावजूद उनके शौकों में न कोई कमी आई है और न ही बड़े भैया ने उन्हें कभी कोई कमी होने दी है. अपने चुप रहने, बहुत ज़्यादा घूमने-फिरने या मधु भाभी की तरह चुलबुले न होने की वजह से शायद वह इसी तरह उनके जज़्बातों की पूर्ति करते रहे हों, वरना यह तो मैं भी समझती हूं कि मेरे चुप्पा और धीर-गंभीर भाई के साथ इतनी हंसमुख, चुलबुली और जीवन से लबालब भाभी के लिए ज़िंदगी गुजारना कोई आसान बात नहीं थी. लेकिन उन्होंने कभी शिकायत नहीं की, कभी भैया से लड़ाई नहीं की… ख़ुश रहने के बहाने ढूंढ़ती रहीं और पूरी तरह से गृहस्थी संवारने-संभालने में इतना लंबा वक़्त गुजार दिया.
शादी के तीन साल तक भी संतान नहीं हुई, तो मम्मी के सुझाए सारे पूजा-पाठ किए, व्रत-उपवास किए, इलाज कराए, पर उफ्फ़ नहीं की कि एक बार अपने बेटे का भी चेकअप करा लो. कभी विरोध या विद्रोह नहीं किया. कितनी बार मैंने उन्हें छत पर जाकर रोते देखा, कितनी बार उन्हें सांत्वना दी, पर जब वह नीचे आतीं, तो चेहरे पर मुस्कुराहट ही होती. बड़े भैया की कमियों को उजागर करने की बजाय ख़ुद को हज़ारों बार कठघरे में खड़े होने दिया. बस, चुपचाप एक दिन आग्रह कर भैया को साथ ले गई थीं अपना चेकअप कराने के बहाने. डॉक्टर से पहले बात कर चुकी थीं, तो डॉक्टर ने ही घुमा-फिराकर बात कर बिना यह पता लगने दिए कि पहले से ही सब सुनोयोजित है, उन्हें अपनी जांच कराने की सलाह दी और सोचने का समय दिए बिना टेस्ट कर भी लिए और उसके बाद ही पराग का जन्म हुआ.
घर में हर चीज़ तय तो मम्मी ही करती थीं, क्योंकि पापा भी चुप रहते थे. बस बिज़नेस संभालना और घर ख़र्च के लिए मम्मी को पैसे देना… यही बात बड़े भैया के अंदर भी आ गई थी, मानो परंपरा का निर्वाह कर रहे हों. पराग ऐसा नहीं है… इस बात की ख़ुशी है मुझे और मधु को भी, पर तान्या का व्यवहार कचोटता है, तो पराग की यही अच्छी बात उसे चुभने लगती है. वह भी चुप्पा होता, तो सास-बहू ख़ुद ही कई मसले सुलझा लेतीं.
‘‘पर बुआ, मसला क्या है, यही तो मुझे समझ नहीं आता. किसी चीज़ की कोई कमी नहीं होने देता दोनों को. तान्या को कभी यह न लगे कि मायके में जो सुख-सुविधाएं हैं, वह यहां नहीं मिल रहीं, इसलिए उसकी हर मांग पूरी करता हूं. दिन-रात बिज़नेस को एक्सपेंड करने में जुटा रहता हूं. लेकिन दिन-रात के ये क्लेश… न जाने किस सुख की तलाश है? तान्या जब देखो घर छोड़कर जाने के लिए बैग बांधे तैयार रहती है और मम्मी अंदर ही अंदर कुढ़ती रहती हैं. बचपन से उन्हें कभी झुंझलाते या किसी बात के लिए शिकायत करते नहीं देखा, पर अब तान्या के साथ बहस ही होती रहती है. तान्या ख़ूब इज्ज़त करती है उनकी, पर उन्हें लगता है कि वह बहस करती है, जवाब देती है. न जाने कैसे समझाऊं इन्हें.’’
पराग को मैं क्या बताती कि मसला क्या है. मधु ही कहां इस बात को समझना चाहती है. वह सुंदर है, उसे इस बात का सदा ग़ुरूर रहा है. बेशक किसी को अपने से कमतर समझने के लिहाज से नहीं, पर आज तान्या से वह न जाने क्यों होड़ करने की ठान बैठी है. माना तान्या का रंग दबा हुआ है, शरीर भी भरा-भरा है, लेकिन मेकअप करने के बाद उसका रूप खिल उठता है. फिर वह जैसी भी है, पराग को पसंद है. हर कोई मधु की तारीफ़ करता है, उसके खाना बनाने, उसके ड्रेस सेंस, उसके डायटीशियन से लगातार परामर्श लेते रहने की कि कितना खाना और कैसा आहार लेना चाहिए, उसके हेल्थ कांशस रहने की, उसके सबसे प्यार और हंसकर मिलने की, इसलिए वह चाहती है कि तान्या में भी उसकी जैसी कुशलता हो.
उसने घर का काम किया ही नहीं था अपने मायके में…वह मां-बाप की इकलौती, थोड़ी बिगड़ी हुई बच्ची रही है… यह बात शादी से पहले पता भी थी. फिर भी मधु उसके हर काम में जब नुक्स निकालती है, तो तान्या चिढ़ जाती है और पलटकर जवाब दे बैठती है. बाद में आकर सॉरी भी बोल देती है… पर उससे क्या, तीर तो तब तक चुभ ही गया होता है.
‘‘जब आपको लगता है कि आप ही हर काम अच्छे ढंग से कर सकती हो, ख़ुद ही कर लो न.’’ तान्या को मैंने ख़ुद कई बार यह कहते सुना था.


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‘‘तुम्हें उस पर विश्वास कर ज़िम्मेदारियां देनी होंगी भाभी. यह उसका भी घर है, तुम्हारा दख़ल वह सह नहीं पाती.’’
‘‘वाह कामना, क्या ख़ूब कही. मेरा भी तो घर है. फिर मैंने कब कहा कि ज़िम्मेदारी न संभाले, लेकिन लियाकत तो हो. मुझे तो लगता है मेरे साथ कोई शतरंज का खेल खेल रही है और हर प्यादा वह अपने पास ही रखना चाहती है.’’ मधु नाराज़ हो गई थी, एक दिन समझाने पर.
मधु ने जैसे उस दिन सच कहा था कि उनके बीच शतरंज का खेल चल रहा है. ठीक भी तो है. यदि आप दुविधा में हैं कि किस तरफ़ किला बनाना, तो आपके विरोधी के मोहरे ही आपको संकेत देंगे. आमतौर पर खिलाड़ी, बोर्ड के मध्य भाग पर अपना नियन्त्रण रखना चाहते हैं, परंतु यदि आप किसी विशेष स्वभाव के खिलाड़ी के विरुद्ध खेल रहे हैं, तो सम्भव है कि उसने अपने अधिकतर मोहरों को किसी एक तरफ़ ही केंद्रित कर रखा हो, जिससे आप उस ओर से आक्रमण के ज़्यादा ख़तरे में रहेंगे और ऐसी स्थिति में आपका उस तरफ किला बनाना बेकार साबित होगा. मधु ने अपने अधिकतर मोहरों को एक तरफ़ केंद्रित करके रखा हुआ है, सभी उसकी ओर ही आकर्षित होते हैं, तो तान्या का चिढ़ना स्वाभाविक ही है. और इस वजह से वह बोर्ड के मध्य भाग पर अपना नियंत्रण कायम करने के लिए आक्रामक चालें चलती है, लड़ती है, ग़ुस्सा करती है और बहस करती है. वह अपनी जगह तभी बना पाएगी, जब मधु उसके लिए जगह छोड़ेगी.
‘‘तुम भी भाभी थोड़ा सास की तरह रहने लगो, थोड़ा इतराना भी कम कर दो.’’ मैंने मज़ाक किया था, पर मैं गंभीर थी. इतराती तो है मधु हर बात पर… सुपीरियरटी कांप्लेक्स है, यह बात मुझे पता है और तान्या भी जान गई है. किसी को इससे फ़र्क नहीं पड़ा था, क्योंकि होड़ लेनेवाला तान्या से पहले कोई था ही नहीं. वह जानती है कि मम्मी के सामने वह उन्नीस लगती है, इसलिए उनके साथ जाने में आनाकानी करती है. बेटियां भी दादी से चिपकी रहती हैं और कहती हैं कि मम्मी, तुम दादी से कुछ सीखो, वह कभी नहीं डांटतीं.
मुझे समझ नहीं आता कि मैं कैसे बताऊं के सास-बहू की यह ऐसी अनोखी जोड़ी है, जिसमें सास हर फ्रंट में बाज़ी मारने की चाह में बहू को पीछे धकेलती है और बहू उसके किले में सेंध लगा आगे निकल जाने के लिए उससे हमेशा वाक् युद्ध करने को तैयार रहती है. दिन-रात दोनों में एक कंपीटीशन-सा चलता है और बेचारा पराग उनके बीच पिस रहा है. पता नहीं कौन शह और मात कह आगे निकल जाए. उसकी हार तो दोनों ही सूरतों में है.

सुमन बाजपेयी

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