… कुछ ही देर में वह नहा-धोकर उपस्थित थी. सुमित्रा के अभ्यस्त हाथों ने घर की कमान क्या संभाली घर के साथ-साथ सबके चेहरे भी चमक उठे. उसे लेकर जैसे-जैसे हमारा डर खुलता गया, हम उसे एक के बाद एक काम सौंपते चले गए. वह भी सहर्ष आगे बढ़कर ज़िम्मेदारी लेती. सब्ज़ियां काटते, आटा गूंथते धीरे-धीरे पूरा खाना भी वही बनाने लगी. मैं अब घरवालों के साथ कभी कोई वेब सीरीज़ देखने बैठ जाती, तो कभी यूट्यूब पर देख कोई नई रेसिपी ट्राई करती. सूखे मेवे भूनकर मैंने शिप्रा के बेड के पास रख दिए थे. उसे समय पर दूध, फल, जूस आदि उपलब्ध करवाना भी मेरी दिनचर्या में शुमार हो गया.
सुमित्रा वैसे तो हर वक़्त मेरी मदद को उत्साहित रहती, लेकिन यदा-कदा उसके चेहरे पर मंडराते उदासी के बादल मुझे विचलित कर देते. कैसी विडंबना है. एक ओर मेरे जैसे समृद्ध परिवार लॉकडाउन को भी उत्सव की तरह एंजॉय कर रहे हैं, तो दूसरी ओर ये निर्धन परिवार रोजी-रोटी की जुगाड़ में बिछड़ रहे हैं. अपना अपराधबोध कम करने के लिए मैं बोल उठती, “रोज़ मोबाइल पर बात तो कर रही है न सबसे?” बहुत पहले जब अंकुर ने मुझे स्मार्टफोन गिफ्ट किया था, तो मैंने अपना पुराना मोबाइल सुमित्रा को दे दिया था अपनी सहूलियत के लिए.
“ज… जी मैडम, वे ठीक हैं.”
“चिंता मत कर! ये दिन भी गुज़र जाएगें और तुम सब फिर साथ होगे.” उसे आश्वस्त करते मैं ख़ुद मन ही मन आशंकित हो जाती, पर तब हम फिर बिखर जाएगें.
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जब से मुझे पता लगा था कि शिप्रा को आम और उससे बने व्यंजन बेहद पसंद हैं. मैंने आम की पूरी पेटी मंगा ली थी. यूट्यूब पर देख-देखकर सुमित्रा की मदद से मैं रोज़ आम की एक नई डिश बना रही थी. आज बहुत मेहनत से मैंने आम की बर्फी बनाई थी. सबको बहुत पसंद आई. शिप्रा को चाव से बर्फी खाते देख मुझे असीम तृप्ति हो रही थी. सुमित्रा को खाना परोसते वक़्त मैंने उसकी थाली में ख़ुशी-ख़ुशी 4 बर्फी रख दी.
“असल मेहनत तो तूने ही की है. ले खा.” मन में एक डर भी रहता था कि इसे न दो, तो आनेवाले बच्चे को नज़र लग जाएगी.
“अभी भूख नहीं है. रात में खा लूंगी.” उसने बर्फी एक ओर निकालकर रख दी थी.
डिनर के बाद बच्चों ने एक मूवी चला दी. सुमित्रा बर्तन धोकर सोने चली गई थी. देर रात मूवी समाप्त होने पर हम लेटे, तो राजन को याद आया, “कल तो मां का दिन है. प्रसाद स्वरूप खीर बना देना.”
“फिर तो सवेरे दूध ज़्यादा लेना होगा. मैं सुमित्रा को बोलकर आती हूं.”
“अरे सवेरे बोल देना या फोन कर दो.”
अनिल माथुर
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