कहानी- आम की बर्फी 1 (Story Series- Aam Ki Barfi 1)

 

“भगवान का लाख-लाख शुक्र है, जो बच्चों को समय रहते हमारे पास सकुशल पहुंचा दिया.” मैं राजन से कहती.
“यह त्रासदी न आती, तो न वे अभी हमारे पास आते और न इतने दिन रुकते. कुदरत के खेल भी निराले हैं.” राजन सहमति जताते.

 

 

 

तड़के दरवाज़े की घंटी बजी, तो मैं और राजन चौंककर उठे. एक-दूसरे को देखते दोनों की आंखों में एक ही प्रश्नचिह्न उभरा, “सवेरे-सवेरे कौन आ टपका? वो भी लॉकडाउन के समय में?”
राजन मास्क चढ़ाते दरवाज़े की ओर लपके, तो मैं भी अपना मास्क संभालती पीछे हो ली. जाते-जाते एक सरसरी नज़र बेटे-बहू के कमरे पर डाली. दरवाज़ा बंद देख मैंने राहत की सांस ली. चलो, इनकी नींद तो नहीं टूटी! आम युवा जनरेशन की तरह दोनों देर रात तक वर्क फ्रॉम होम कर देरी से सोते हैं और सवेरे देर तक सोए रहते हैं. शुरू में थोड़ा अजीब लगा था. असुविधा भी हुई थी. किंतु फिर महीना व्यतीत होते-होते वे हमारे और हम उनके अभ्यस्त होते चले गए.
“भगवान का लाख-लाख शुक्र है, जो बच्चों को समय रहते हमारे पास सकुशल पहुंचा दिया.” मैं राजन से कहती.
“यह त्रासदी न आती, तो न वे अभी हमारे पास आते और न इतने दिन रुकते. कुदरत के खेल भी निराले हैं.” राजन सहमति जताते.

 

यह भी पढ़ें: सास-बहू के रिश्तों को मिल रही है नई परिभाषा… (Daughter-In-Law And Mother-In-Law: Then Vs Now…)

 

शिप्रा जब से गर्भवती हुई है मुझे उसकी चिंता लगी रहती है. कैसे ऑफिस और घर मैनेज करती होगी? अंकुर को बार-बार उसके खाने-पीने का ध्यान रखने की हिदायतें दे देने पर भी तसल्ली नहीं होती थी. वो ख़ुद भी तो बेचारा ऑफिस में उलझा रहता है. यहां सब सुख-सुविधाएं हैं. बच्चे यहां होते, तो वह बहू को अच्छा उसकी पसंद का बनाकर खिलाती-पिलाती. अब वहां, तो जो ऑफिस में मिल जाए या घर पर कुक बना दे खाना पड़ता होगा.
कोरोना त्रासदी के चलते अचानक वर्क फ्रॉम होम की घोषणा हुई, तो हम दोनों ने उनसे यहां आने की रट लगा दी थी.

 

यह भी पढ़ें: लॉकडाउन- संयुक्त परिवार में रहने के फ़ायदे… (Lockdown- Advantages Of Living In A Joint Family)

 

“कोशिश तो पूरी कर रहा हूं मां, पर अभी केवल मुझे हेडक्वार्टर छोड़ने की अनुमति मिली है. शिप्रा को रूकना होगा.”
“नहीं… नहीं, उसे अकेला छोड़कर मत आना. वो भी इस हालत और इन परिस्थितियों में? उसे साथ लाने का प्रयास कर…” बच्चों को समझाती, धीरज बंधाती मैं स्वयं एकांत में बिलख उठती. आख़िर भगवान ने हमारी सुन ली. दोनों के फ्लाइट में बैठने से घर पहुंचने तक मेरी हिदायतें जारी थीं. “मास्क लगाए रखना, बाहर का कुछ खाना-पीना मत! इधर-उधर छूना मत! बिस्किट, पानी, दवा साथ रखना.”

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…

अनिल माथुर

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