… मेरे मुंह से सवाल निकलने की देर थी बस! माला ने कब छोले-भठूरे मंगवाकर मेरे सामने रख भी दिए, पता भी नहीं चला… मेरी आंखें उस प्लेट पर जम-सी गई थीं. छोले के बड़े-बड़े दाने लिए गाढ़ा रसा, उस पर बारीक कटी हरी धनिया बेतरतीब ढंग से फैली हुई. मुझे बचपन की पता नहीं किन यादों में खींचे लिए जा रही थी! कटोरी के बगल में रखा फूला हुआ भठूरा और उससे सटकर रखा हुआ नारंगी रंग का मिक्स अचार.. अलग-अलग सारी ख़ुशबुओं ने मिलकर एक सम्मोहन कर दिया था जैसे, मैंने आंखें बंद करके लंबी सांस ली.
“अब खाओगी भी या प्लेट को घूरती रहोगी?”
माला ने मेरे बगल में बैठते हुए टोका, उसी पल मन अचानक जाने कितना कमज़ोर हो गया.. लगा आंखें भर आई हैं, “तुम ही खिला दो.”
माला के चेहरे पर नज़रें टिकाए मेरे दो बूंद आंसू टपक आए थे. उस वक़्त मुझे लगा मेरे पास मेरी बचपन की सहेली नहीं, मेरी मां आकर बैठ गई हों.. शायद मातृत्व हर मां की शक्ल एक-सी कर देता है..
“अच्छा.. चल, मुंह खोल.. कितने सालों बाद खा रही हो न! बता तो, स्वाद बदला या वही है?”
माला ने एक प्रेम से भीगा निवाला मेरी ओर बढ़ा दिया था.. छोले-भटूरे, अचार का स्वाद मेरी जिह्वा को नहीं, मेरी आत्मा को छूकर तृप्त करता चला गया था.. बचपन के सोते हुए पल, कितनी ही बातें जैसे अंगड़ाई लेकर मन में बैठ गई थीं और मुझे अपनी याद दिलाती जा रही थीं! मैं इन यादों में पूरी तरह डूब पाती, इससे पहले ही कुछ हुआ, जो मुझे चौंका गया, “माला.. ये.. ये देखो…”
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मैंने लगभग चीखकर अपने पेट की तरफ़ इशारा किया. इतनी देर से सुस्त पड़े मेरे बच्चे ने अपने होने का भरपूर आभास दिला ही दिया था, ज़ोरदार हरकत हुई.. माला हंस पड़ी, मैं अभी भी भौंचक्की थी..
“बेबी मूव कर रहा है माला.. देख तो उसको छोले-भटूरे पसंद आ गए.”
माला मेरी हालत पर खिलखिलाकर हंसने लगी थी.. मैं एक हाथ से अपने पेट को सहलाते हुए आनंदित थी. ये एक अजीब-सा सुख था, जो मेरी आंखें भरता जा रहा था. आंसू टपकते जा रहे थे, चेहरे पर मुस्कान फैलती जा रही थी, मन एक ही बात दुहराता जा रहा था, ‘मेरा बच्चा भी मिडिल क्लास चीज़ें पसंद करता है.. बिल्कुल मेरी तरह…”
लकी राजीव
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