कहानी- आंधी 1 (Story Series- Aandhi 1)

“हां, सरसरी तौर पर ही देखे थे. डिटेल पढ़कर देखता हूं. वैसे तुमने उसे अपनी ओर से तो सावधान रहने की बात समझा दी है न? नई जगह है, पता नहीं कैसे लोग हैं?”

“हां. वैसे वह ख़ुद काफ़ी समझदार है. अरे, वो उधर पीला-सा बादल कैसा है?” मैं अचरज में तेज़ी से इधर ही बढ़ते आ रहे बादल को ग़ौर से देखने लगी.

“ओह नो! यह तो पीली आंधी है. जल्दी से अंदर भागो और फटाफट सब खिड़की-दरवाज़े बंद कर परदे खींच दो, वरना सारा घर धूल से भर जाएगा. ये रेगिस्तानी आंधियां बड़ी ख़तरनाक होती हैं.

आज काफ़ी दिनों बाद थोड़ा फ्री हुए, तो मैं और अतुल अपने-अपने चाय के कप लेकर बाहर लॉन में आकर बैठ गए.

“चलो, सब कुछ अच्छे-से व्यवस्थित हो गया. घर भी अच्छे से सेट हो गया है और बच्चे भी अपनी-अपनी पढ़ाई वगैरह में लग गए हैं. सवेरे मिसेज़ वर्मा आई थीं. कह रही थीं, यहीं कॉलोनी में ही क्लब बिल्डिंग में अपने बीएसएफ की सभी लेडीज़ ने मिलकर एक लेडीज़ क्लब चला रखा है. मुझे भी उसकी सदस्या बनने के लिए कह रही थीं.”

“हां, तो बन जाओ.” अतुल ने चाय के घूंट के साथ अपनी सहमति व्यक्त की.

“हम लोग तो वैसे ही इतनी पार्टीज़ वगैरह करते रहते हैं, तुम कहते हो तो एक और सही. वर्माजी की बेटी हमारी पलक के बराबर की ही है. मिसेज़ वर्मा कह रही थीं कि ज़माने के बिगड़ते रंग-ढंग को देखकर उन्होंने तो अपनी बेटी को आत्मरक्षा के लिए कराटे क्लासेस में भेजना आरंभ कर दिया है. मैं सोचती हूं हमें भी पलक को ये क्लासेस जॉइन करवा देनी चाहिए. दोनों साथ आ-जा सकेंगी.”

“पलक इतना वक़्त निकाल पाएगी? कोचिंग, कॉलेज, कंप्यूटर क्लास सब कुछ तो हम उसे पहले ही जॉइन करवा चुके हैं.” चाय समाप्त कर अतुल ने अब सिगरेट सुलगा ली थी.

“हां, वो तो है, पर यह भी बहुत ज़रूरी है. मैं उससे बात करके मनाने का प्रयास करती हूं. आपने उसके लिए दिल्ली से वो पेपर स्प्रे तो ऑर्डर कर दिया है ना? सुरक्षा के जितने उपाय हों, हमें अपनी ओर से तो अपना ही लेने चाहिए. आपने आज का अख़बार देखा? उसमें लड़कियों की सुरक्षा के लिए कुछ मोबाइल एप्स सुझाए गए थे. मैं समझती हूं हमारी पलक के मोबाइल में भी वे सब एप्स होने चाहिए.”

“हां, सरसरी तौर पर ही देखे थे. डिटेल पढ़कर देखता हूं. वैसे तुमने उसे अपनी ओर से तो सावधान रहने की बात समझा दी है न? नई जगह है, पता नहीं कैसे लोग हैं?”

“हां. वैसे वह ख़ुद काफ़ी समझदार है. अरे, वो उधर पीला-सा बादल कैसा है?” मैं अचरज में तेज़ी से इधर ही बढ़ते आ रहे बादल को ग़ौर से देखने लगी.

“ओह नो! यह तो पीली आंधी है. जल्दी से अंदर भागो और फटाफट सब खिड़की-दरवाज़े बंद कर परदे खींच दो, वरना सारा घर धूल से भर जाएगा. ये रेगिस्तानी आंधियां बड़ी ख़तरनाक होती हैं.” अतुल सामान समेटते हुए अंदर भागने लगे, तो मैं भी उनके पीछे हो ली.

“शुक्र है, दोनों बच्चे घर पर ही हैं. इन्हें भी बताना होगा कि ऐसी विपत्ति के समय ये घर से बाहर हों, तो जहां हों, वहीं किसी बंद जगह में छुप जाएं.”

समय रहते हमने सब खिड़की-दरवाज़े बंद कर लिए थे. इसके बावजूद जब आंधी थमी, तो पूरा घर बारीक़ पीली मिट्टी से भर गया था. दो नौकरों की मदद लेने पर भी पूरा घर साफ़ करने में हमें तीन-चार घंटे लग गए थे.

मेरे समझाने पर पलक ने कराटे क्लासेस जाना शुरू कर दिया. ज़िंदगी की गाड़ी सुव्यवस्थित ढर्रे पर चलना आरंभ ही हुई थी कि अतुल को एक प्रशिक्षण के सिलसिले में कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर जाना पड़ा.

मेरी ज़िम्मेदारियां विशेषतः बच्चों को लेकर और भी बढ़ गईं. उस दिन पलक कॉलेज से आकर सोई, तो कराटे क्लासेस का टाइम हो जाने तक भी नहीं उठी. मैंने उसे झिंझोड़कर उठाया और जल्दी तैयार होने के लिए कहा.

“आज रहने देते हैं ममा, बहुत थकान हो रही है. अभी और सोने का मूड है.”

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“नहीं पलक, क्लासेस को लेकर कोई लापरवाही नहीं होनी चाहिए. चलो, जल्दी से उठ जाओ. मैं तुम्हारा प्रोटीन शेक लेकर आ रही हूं.” मैं शेक बनाकर ले भी आई, पर पलक अभी तक सो रही थी. मेरा पारा चढ़ गया. वैसे मैं ज़्यादा ग़ुस्सा नहीं होती, पर इधर दिन-प्रतिदिन अख़बार में बढ़ती रेप, हिंसा जैसी ख़बरों ने पलक को लेकर मेरी चिंताएं कुछ ज़्यादा ही बढ़ा दी थीं. वही चिंता और डर अचानक ज़ुबां से फूट पड़ा.

“तुम्हें ख़बर भी है मैं और तुम्हारे पापा तुम्हें लेकर कितने फ़िक़्रमंद रहते हैं? पलक को यह सिखाना चाहिए, पलक को वह आना चाहिए. तुम्हारे लिए पेपर स्प्रे मंगवाया है, जिसे अचानक हुए हमले के समय छिड़ककर भागा जा सके. तुम्हारे लिए मोबाइल एप्स डिस्कस कर रहे हैं और तुम? तुम्हें कोई परवाह ही नहीं है. हमारी नींद उड़ाकर इन्हें सोने की पड़ी है. अरे, नींद ज़्यादा ज़रूरी है या कराटे क्लास?”

      संगीता माथुर

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