कहानी- आंधी 2 (Story Series- Aandhi 2)

‘’बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक कभी पिता, कभी पति, तो कभी बेटे के अंकुश में रहते-रहते वह भूल ही जाती थी कि उसका अपना भी कोई वजूद है. और आज… आज क्या तीर मार लिया है हमने? या तो कोख़ में ही ख़त्म कर दी जाती हैं, नहीं तो पंख देकर ज़मीन पर ही फुदकने की हिदायत दी जाती है. आसमां में स्वच्छंद उन्मुक्त उड़ान भरना हम छोटी नाज़ुक चिड़ियाओं-मैनाओं के लिए हसरत मात्र है… कुछ नहीं बदला है ममा, कुछ नहीं. सारी वर्जनाएं, सारी हिदायतें, सारे बचाव के उपाय सब कुछ लड़कियों के लिए ही क्यों? कोई उन गिद्धों और कौओं को क्यों नहीं रोकता? उन्हें क्यों नहीं समझाता कि आसमां उनकी बपौती नहीं है.”

पलक की नींद उड़ चुकी थी. उसका मूड बुरी तरह उखड़ चुका था. “मुझे तो लगता है, मैंने लड़की के रूप में पैदा होकर ही सबसे बड़ा गुनाह कर दिया है. कहने को हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, पर क्या फ़र्क़ आया है पुराने ज़माने से अब तक की लड़कियों की स्थिति में?…”

पलक का आक्रोश चरम पर था, “तब सारी दुश्ंिचताओं व दुष्परिणामों से निबटने के लिए लड़की को पैदा होते ही ख़त्म कर दिया जाता था. यदि कोई जीवित भी रह जाती थी, तो उसे घूंघट या बुर्के में छुपा दिया जाता था. वह घर की ड्योढ़ी भी नहीं लांघ पाती थी. घरेलू कामों में पति को ख़ुश रखने और बच्चों को पालने में ही उनकी सारी ज़िंदगी निकल जाती थी. बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक कभी पिता, कभी पति, तो कभी बेटे के अंकुश में रहते-रहते वह भूल ही जाती थी कि उसका अपना भी कोई वजूद है. और आज… आज क्या तीर मार लिया है हमने? या तो कोख़ में ही ख़त्म कर दी जाती हैं, नहीं तो पंख देकर ज़मीन पर ही फुदकने की हिदायत दी जाती है. आसमां में स्वच्छंद उन्मुक्त उड़ान भरना हम छोटी नाज़ुक चिड़ियाओं-मैनाओं के लिए हसरत मात्र है… कुछ नहीं बदला है ममा, कुछ नहीं. सारी वर्जनाएं, सारी हिदायतें, सारे बचाव के उपाय सब कुछ लड़कियों के लिए ही क्यों? कोई उन गिद्धों और कौओं को क्यों नहीं रोकता? उन्हें क्यों नहीं

समझाता कि आसमां उनकी बपौती नहीं है.”

मैं एकदम सकते में आ गई थी. मैंने धैर्य से काम लेना उचित समझा.

“बेटी, जो हमारे बस में है, वही तो हम करेंगे. हम पूरे समाज को कैसे बदल सकते हैं? हां, इतना ज़रूर कर सकते हैं कि घर में तुम्हारे साथ कोई अन्याय न हो. हम तुम्हें उच्च शिक्षा दिलवा रहे हैं. तुम्हें कहीं भी जाने की आज़ादी है. बेटे पलाश की ही तरह तुम्हारा भी पालन-पोषण कर रहे हैं. बताओ, तुममें और पलाश में हमने कभी कोई भेदभाव किया है?”

“हां किया है. भैया कल रात 11 बजे घर लौटे थे. आपने एक बार भी उनसे पूछा कि वह इतनी रात गए कहां थे?”

“वह अपने दोस्त की बर्थडे पार्टी में गया था. मुझसे कहकर गया था.”

“बर्थडे पार्टी तो साढ़े नौ बजे ख़त्म हो गई थी. उसके बाद वे कहां थे?”

ज़ोर-ज़ोर की आवाज़ें सुनकर अब तक पलाश भी स्टडीरूम से कमरे में आ चुका था.

“क्या हुआ ममा? पलक इतनी ज़ोर-ज़ोर से क्यूं बोल रही है?”

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“कल रात आप कहां थे भैया? ज़रा ममा को बता दीजिए.”

“सोहम की बर्थडे पार्टी में यार. बताकर तो गया था.”

“वह पार्टी साढ़े नौ बजे ख़त्म हो गई थी. उसके बाद?” मेरी उत्सुक और आशंकित निगाहें पलाश पर जम गई थीं.

“वो.. हम लोग डिस्कोथेक चले गए थे. सोहम के यहां पार्टी में ज़्यादा मज़ा नहीं आया, तो दोस्तों ने कहा डिस्कोथेक में चलकर डांस करते हैं.”

“स़िर्फ डांस ही किया था या और कुछ?” पलक का स्वर तीखा था.

मुझे लगा मुझे हार्टअटैक आ जाएगा. “पलाश, सच-सच बताओ क्या किया था तुम लोगों ने?”

“ममा, मैंने कुछ नहीं किया. दोस्तों ने ड्रिंक्स की थी. मैं तो सॉफ्ट ड्रिंक ही

ले रहा था.”

“ओह!” मेरी अटकी हुई सांसें फिर से चलने लगी थीं. एक ही पल में मैं जाने क्या-क्या सोच गई थी. न चाहते हुए भी स्वर कड़क होने की बजाय रूंधने लगा था, “तुम सच बोल रहे हो न पलाश?”

“हां ममा बिल्कुल! आर्यन ने मेरा मज़ाक उड़ाते हुए मेरी सॉफ्टड्रिंक में थोड़ी वाइन डाल दी, तो मैंने वो ग्लास वहीं छोड़ दिया.”

“उफ़्, क्या हो रहा है यह सब?” मेरा माइग्रेन अचानक ही उभर आया था. मैं दोनों हाथों से सिर थामते हुए अपने बेडरूम की ओर लपकी. पलाश और पलक मेरे पीछे-पीछे भागे आए. पलाश ने मेरे सिर पर कपड़ा बांधकर मुझे लिटाया, तो पलक ने दवा निकालकर दी. बत्ती बुझाकर मुझे सोने की सख़्त हिदायत देकर वे बाहर निकल गए. दवा के प्रभाव से मैं जल्दी ही नींद के आगोश में समा गई.

सवेरे आंख देर से खुली. “ओह, बच्चों के जाने का टाइम हो गया.” मैं चप्पलें घसीटती बाहर आई, तो देखा पलक तैयार हो चुकी थी. “आप आराम कीजिए ममा. भैया और मेरा टिफिन मैंने तैयार कर लिया है. आज एक्स्ट्रा क्लास है, तो मैं कोचिंग से सीधे कॉलेज निकल जाऊंगी. भैया कॉलेज चले गए हैं. और हां, भैया और मेरी सुलह हो चुकी है. भैया ने अपनी ग़लती मान ली है. ममा, आई एम सॉरी! कल मैंने आपके साथ काफ़ी बेरुखी से बात की. अब ऐसा नहीं होगा. मैं आपकी और पापा की चिंता समझ सकती हूं. आप जो कुछ कर रहे हैं, मेरे भले के लिए ही कर रहे हैं.”

मैं दरवाज़ा बंद कर फिर से बिस्तर पर आ गिरी.

      संगीता माथुर

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