कहानी- आंखें बोलती हैं… 6 (Story Series- Aankhen Bolti Hain… 6)

तभी पीछे से धम्म से शीना उसी अंदाज़ में बैठते हुए पूरे अधिकार से बोली, “चलो…”

चौंककर चश्मा उतारकर सरस ने पीछे मुड़कर देखा, कहीं आज फिर कोई धोखा तो नहीं.
“मेरा ही इंतजा़र कर रहे थे न…” शीना ने भी अपना चश्मा उतारकर उसकी आंखों में झांका. दोनों की आंखें मुस्कुरा रही थीं और बहुत कुछ बोल रही थीं.

 

… उनका दिल कर रहा था कि यह समय कभी ख़त्म ही न हो. एक-दूसरे के अनुकूल स्वभाव के कारण वे जैसे एक-दूसरे से बंध रहे थे. काफ़ी देर दोनों बातें करते रहे. उन्हें समय का पता ही नहीं चला. आखिर जाना तो था ही. शीना ने घड़ी देखी.
“चलें…” न चाहते हुए भी शीना के मुंह से निकला.
“चलो…” अनमना-सा सरस बोला और दोनों सड़क तक आ गए.
सरस ने मोटरसाइकिल स्टार्ट की शीना पीछे बैठ गई. दोनों चुप थे. जाते समय भी एक-दूसरे के प्रति कुछ ख़ास भावों से भरे थे, पर बिना जाने. वापस आते समय भी एक-दूसरे के प्रति कुछ ख़ास भावों से भरे थे, पर सब कुछ समझकर. जिन कारणों से वे नीलेश व रुहानी से परेशान थे, इस समय वे कारण और भी पारदर्शी नज़र आ रहे थे. एक-दूसरे के गुणों की छाया में रुहानी और नीलेश के अवगुण और भी चुभ रहे थे. दोनों अपने-अपने ख़्यालों में गुम थे. तभी सामने पैसिफिक माॅल दिख गया. सरस ने मोटरसाइकिल रोक दी. शीना नीचे उतर गई.
“ठीक है फिर…” न चाहते हुए भी सरस मोटरसाइकिल आगे बढ़ाने का उपक्रम करने लगा. दोनों पहली बार मिले थे. एक्सीडेंटली मिले थे, पर कुछ ऐसे मिले थे जैसे कभी वर्षों में भी नहीं मिल पाते.
“ओके” शीना ने भी मुस्कुराते हुए कहा. दोनों की आंखें क्षण भर के लिए मिली और जैसे एक हो गई. बिना कुछ बोले दोनों विदा हो गए. सरस घर पहुंचा, तो शीना के ख़्यालों में ही डूबा हुआ था. उसने एक बार भी रुहानी से बात करने की कोशिश नहीं की और न रुहानी का ही फोन आया. यही हाल शीना का भी था. दूसरे दिन उसी समय सरस यत्रंवत-सा तैयार होकर एक उम्मीद वश वहीं उसी जगह पर पहुंच गया और वैसे ही नीचे पैर रख कर मोटरसाइकिल रोक कर खड़ा हो गया.
तभी पीछे से धम्म से शीना उसी अंदाज़ में बैठते हुए पूरे अधिकार से बोली, “चलो…”
चौंककर चश्मा उतारकर सरस ने पीछे मुड़कर देखा, कहीं आज फिर कोई धोखा तो नहीं.

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“मेरा ही इंतजा़र कर रहे थे न…” शीना ने भी अपना चश्मा उतारकर उसकी आंखों में झांका. दोनों की आंखें मुस्कुरा रही थीं और बहुत कुछ बोल रही थीं. दोनों की आंखों में एक बहुत बड़े तनाव के बोझ से मुक्त होने का एहसास झलक रहा था. दोनों की आंखें इस सच्चाई को बयान कर रही थी कि वे एक-दूसरे के लिए सही साथी हैं. सरस ने मुस्कुराते हुए मोटरसाइकिल स्टार्ट की और मसूरी रोड़ की तरफ़ दौड़ा दी. दोनों होंठों ही होंठों में न जाने क्या सोचकर मुस्कुराते चले जा रहे थे.

 


सुधा जुगरान

 

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