… घर में आनंद की तरंग दौड़ गई. समीर के पिता ने सुरभि को आशीर्वाद देते हुए कहा, “तुम तो हमारे अंधेरे जीवन में चिराग़ की तरह आई हो बेटी. समीर को तुम्हारी बहुत ज़रूरत है.“
और समीर, जो जीवन जीने का मोह तक छोड़ बैठा था फिर से जीवन की उमंग से नहा उठा. समीर और सुरभि घंटों तक एक-दूसरे का हाथ थामे बैठे रहे.
“मैं सदा तुम्हारा साथ दूंगी… कभी तुम्हें छोड़कर नहीं जाऊंगी… तुम्हारे ठीक होते ही हम शादी करेंगे..!” सुरभि ने स्नेह से कहा, तो मानो अग्नि स्नान की पीड़ा को भोगते समीर की आत्मा पर मरहम-सा लग गया.
“हे ईश्वर! तू बहुत दयालु है. तूने मुझे जीवन जीने का एक मक़सद दे दिया.“
सुरभि अब प्रतिदिन समीर से मिलने आया करती. उससे ढेर सारी बातें करती. दोनों मिलकर आगामी भविष्य के सपने बुनने लगे थे. सुरभि के माता-पिता भी बेटी की ज़िद के आगे झुक गए थे और बेटी की बात मान ली थी. एक बार फिर से दोनों परिवार एक हो गए थे. फिर से घर में खिलखिलाहटें गूंजने लगी थीं… पर क्या सुरभि का मन सच में बदल गया था.. या इस बदलाव के पीछे कोई कहानी छिपी थी?
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समीर पर एसिड अटैक होने के बाद जब सुरभि के माता-पिता ने इस शादी से मना कर दिया और सुरभि को पढ़ाई में मन लगाने के लिए कहा, तो वो रोज़ कॉलेज जाने लगी. जहां वह जाना नहीं चाहती थी, क्योंकि वहां विशाल था, उसका सहपाठी… जो मन ही मन सुरभि से प्यार करता था और जब उसने अपने प्यार का इज़हार किया था, तो सुरभि ने स्पष्ट कह दिया था कि वो दोनों केवल दोस्त हो सकते हैं. उनके बीच दूसरा कोई रिश्ता नहीं हो सकता, क्योंकि विजातीय होने के कारण सुरभि के माता-पिता इस शादी से मना कर देंगे. और विशाल ने ऊपरी मन से ही सही सुरभि की बात मान ली थी, इसीलिए सुरभि ने एक अच्छी बेटी का फर्ज़ निभाते हुए समीर से शादी के लिए हां कर दिया था.
पर विशाल से मिलते ही उसके आंसुओं का बांध टूट पड़ा. फूट-फूटकर रोती सुरभि ने कहा, “यह क्या हो गया विशाल… शायद मैंने तुम्हारे प्यार की अवहेलना की… यह उसी का फल है… सच कहती हूं, मैं समीर के अच्छे व्यवहार के कारण उसके साथ जुड़ने लगी थी. न जाने किस दुष्ट और पापी ने समीर जैसे सीधे-साधे व्यक्ति का जीवन दुश्वार कर दिया. मां-पापा की बात मानकर शादी के लिए हां कही थी, अब उन्हीं के कहने से मना कर दिया… लेकिन मेरा मन अपराधबोध से भर उठा है.“
विशाल मौन था, पर सुरभि ने देखा उसका चेहरा ख़ुशी से खिल उठा था. उसने सुरभि के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, “मैं तब भी तुम्हें प्यार करता था और अब भी तुम्हें प्यार करता हूं… क्या अब हम शादी कर सकते हैं?”
डॉ. निरुपमा राय
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