कहानी- अग्नि स्नान 6 (Story Series- Agni Snan 6)

“हां! हां ! मैं भी सच कहती हूं कुछ महीनों से मैं भी अग्नि स्नान का दंश झेलती रही हूं… पाप-पुण्य, झूठ-सच, सही-ग़लत के घेरे में फंस कर बहुत जली हूं… पर आज तुम्हारी बातों से मेरी वह जलन शांत हो गई..! और हम दोनों अग्नि स्नान से मुक्त हो गए..!”

 

 

 

 

 

 

 

… तब तो सुरभि किसी को मुंह दिखाने के क़ाबिल नहीं रहेगी.
दिन-रात वह भी मानो एक अग्नि स्नान ही कर रही थी. रोज़ समाचार पत्र देखना, टीवी के एक-एक न्यूज़ पर निगाह रखना उसकी रोज़मर्रा की आदतों में शामिल हो गया था. वहीं दूसरी ओर समीर हर बात से बेख़बर सुरभि के साथ का आनंद ले रहा था. दोनों आगामी जीवन के सपने बुनते रहते.
और फिर वही हुआ जिसका अंदेशा सुरभि और उसके परिवार को था. विशाल ने अपना ज़ुर्म क़बूल कर लिया कि उसने ही सुरभि के प्रति एकतरफ़ा प्रेम के कारण समीर पर एसिड अटैक किया था. सरकार के द्वारा एसिड बेचने पर बैन होने पर भी विशाल ने एसिड जहां से ली थी उस दुकानदार का भी पता चल गया. पुलिस ने इस बात की अच्छी तरह व्यवस्था कर दी थी कि कोई भी मीडिया सुरभि को परेशान ना कर सके. फिर भी कुछ समाचार पत्रों के संवाददाताओं ने और कुछ मीडियाकर्मियों ने फोन कर करके सुरभि को परेशान कर डाला था. सुरभि का मन बहुत बेचैन था उसे लग रहा था कि उसके सास-ससुर या समीर इस बात को कभी नहीं मानेंगे कि उसका विशाल के साथ कोई संबंध नही था. पूरी रात वह बेचैनी से करवट बदलती रही.

 

 

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उसने समीर से फोन पर बात की, तो उसे सब कुछ सामान्य लगा. उसने सोचा कि मम्मी-पापा ने तो ज़रूर समाचार पत्र देखा होगा… शायद समीर को नहीं बताया होगा. जब सुरभि ने अनुराधा से बात की, तो अनुराधा भी उसे सामान्य लगी. डरते-डरते दूसरी सुबह अपने माता-पिता के साथ सुरभि समीर के घर गई, तो वहां का माहौल बहुत ख़ुशनुमा था. अनुराधा ने दौड़कर सुरभि का स्वागत किया और कहा, “हम सब तुम्हारे आभारी हैं… आज तुम्हारे ही कारण पूरी दुनिया और हम सब यह जान सके कि समीर पर एसिड अटैक किसने किया था. तुमने पूरी हिम्मत के साथ सच का साथ दिया. हम जानते हैं इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं… तुम्हारी जैसी बहू पाकर हम तो धन्य हो गए.“
सुरभि के मन का बोझ थोड़ा हल्का हुआ. उसने धीमे कदमों से समीर के कमरे में प्रवेश किया और कहा, “मैं सच कहती हूं मेरा विशाल के साथ कोई संबंध नहीं था, पर मेरे कारण… मुझे माफ़ कर दो समीर!”
समीर ने स्नेह से उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, ”तुम तो मेरी जीवनसंगिनी बननेवाली हो. तुम माफ़ी क्यों मांग रही हो? आभार तो मुझे प्रकट करना चाहिए कि तुमने इस विकट परिस्थिति में भी मेरा साथ नहीं छोड़ा. तुम्हें नहीं पता जितनी जलन मुझे एसिड अटैक से नहीं हुई थी, उससे ज़्यादा पीड़ा, तो तुम्हारे इनकार करने पर महसूस हुई थी. मैं दिन-रात भीषण जलन में जलता रहता था… आज वास्तव में अग्नि स्नान से मुक्त हुआ हूं. शरीर और आत्मा सब शीतल लग रहे है.“
भावविह्वल सुरभि ने समीर के कंधे पर सिर टिका दिया. आंखों से आंसू बह निकले. अधर मौन थे, पर हृदय चीख-चीखकर कह रहा था…
“हां! हां ! मैं भी सच कहती हूं कुछ महीनों से मैं भी अग्नि स्नान का दंश झेलती रही हूं… पाप-पुण्य, झूठ-सच, सही-ग़लत के घेरे में फंस कर बहुत जली हूं… पर आज तुम्हारी बातों से मेरी वह जलन शांत हो गई..! और हम दोनों अग्नि स्नान से मुक्त हो गए.

 

 

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दोनों ने भीगी आंखों से एक-दूसरे को देखा. दोनों की आंखें भविष्य का सपना बुन रही थीं और ड्रॉइंगरूम में बैठे सभी परिजनों का सम्मिलित ठहाका इस तथ्य की पुष्टि कर रहा था कि आनेवाले स्वर्णिम दिनों का शुभारंभ हो चुका है.

डॉ. निरुपमा राय

 

 

 

 

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