मैं उन्हें ध्यान से दरवाज़े की ओर जाते देख रहा था. मैं जानता था मेरे पास समय बहुत कम है फिर भी किसी तरह मैंने ख़ुद को घड़ी देखने से रोका. एक गहरी सांस ली और मन ही मन उल्टी गिनती गिनना आरंभ कर दिया दस, नौ, आठ, सात… काउंटिग समाप्त होने से पूर्व डैडीजी गाड़ी में बैठकर रवाना हो चुके थे. मैंने राहत की सांस ली. घड़ी देखी और अपनी कार की ओर भागा. बाबूजी कहीं अपने से ही न आ जाएं. अभी कार का गेट खोला ही था कि पों पों… करती काली-पीली टैक्सी अहाते में आकर रूक गई. उसमें से बाबूजी को उतरते देख मैंने मन ही मन भारतीय रेल्वे को सैंकड़ों गालियां दे डालीं. हमेशा देरी से चलनेवाली ट्रेन को आज ही वक़्त पर आना था. बाबूजी को गाड़ी से बक्सा उतारते देख मैं उनकी ओर लपका. मुझे उनसे बक्सा लेते देख वॉचमेन मेरी ओर लपका. सब्ज़ी-फलों के टोकरे, घी-गुड़ का टिन आदि बाबूजी मानो पूरा गांव ही उठा लाए थे.
“बाबूजी, मैं बस निकलने ही वाला था. लगता है गाड़ी वक़्त से पहले आ गई है.” मैंने खींसे निपोरते हुए कहा.
“गाड़ी सही वक़्त पर ही आई है. तू ही हमेशा की तरह लेट है. लेटलतीफ़!”
मैं कैसे बताता कि एक के बाद एक फोन कॉल्स से डैडीजी को एयरपोर्ट निकलने में देरी हो गई, वरना मैं तो कब का उन्हें लेने स्टेशन पहुंच गया होता. बाबूजी शायद और भी दो-चार खरी-खोटी सुनाते, पर तभी पूजा ने आकर उनके पैर छू लिए और बहू को आशीर्वाद देते बाबूजी की तनी हुई मुद्रा शिथिल होकर सौम्य हो गई. मुझे भी संभलने का मौक़ा मिल गया.
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“पूजा, बाबूजी लंबा सफ़र करके आए हैं. उनके नहाने और नाश्ते का प्रबंध करो.”
“सब तैयार है.” बाबूजी से सुशील बहू का खिताब पाने को लालायित पूजा ने सब तैयारी कर रखी थी. बाबूजी नहा-धोकर, पूजा-पाठ से निवृत हुए तब तक टेबल पर नाश्ता सज चुका था. मैं उन्हें टेबल पर आमंत्रित करने ही वाला था कि पोर्टिको में गाड़ी रूकने की आवाज़ से चौंक उठा. कार में से डैडीजी को निकलते और पीछे-पीछे ड्राइवर को सामान अंदर लाते देख मैं भौंचक्का रह गया.
“क… क्या हुआ डैडीजी, आप वापिस कैसे आ गए?”
“किसी ने प्लेन में बम होने की ख़बर दी है. सुरक्षा के मद्देनजर फ्लाइट कैंसल कर दी गई है. मुझे आधे रास्ते में ही ख़बर मिल गई थी. तो मैं लौट आया.” उनका ध्यान पहले हाथ में फलों की ट्रे लिए हक्की-बक्की खड़ी पूजा पर गया, फिर गेस्टरूम से बाहर आते बाबूजी पर. इससे पहले कि वे कोई सवाल दागे, पूजा ने आगे बढ़कर ख़ुद ही परिचय कराना उचित समझा.
“डैडी, ये शिव के बाबूजी हैं, अभी-अभी गांव से आए हैं.”
सूट-बूट, टाई में सजे मशहूर उद्योगपति आनन्द सिन्हा उर्फ डैडीजी ने धोती-कुर्ते पर पगड़ी पहने उस कसरती बदन पर अधेड़ उम्र शख़्स को एक नज़र निहारा और अपने कमरे की ओर बढ़ गए. जाते-जाते यह कहना नहीं भूले, “मेरा नाश्ता कमरे में भिजवा देना.”
“बहू मेरा नाश्ता भी कमरे में ही भिजवा देना.” मूंछे उमेठते चौधरी हरपालसिंह उर्फ बाबूजी भी अपने कमरे में लौट गए, तो मैंने सिर पकड़ लिया.
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