“हां, और मैं गया भी. ख़बर सुनकर बाबूजी ख़ुश तो दिखे पर यहां आने, तुमसे मिलने की बात पर विचलित लगे. काकी ने उन्हें आड़े हाथों लिया था, “हूं तो मैं इस घर की नौकरानी, पर अब और नहीं सहा जाता. कहे बिना रहा नहीं जा रहा. बेचारा कब से आपकी खुशामद करता गांव के चक्कर काट रहा है. चौधराइनजी ज़िंदा होतीं, तो कब का बेटे को ख़ुशी से गले लगाकर माफ़ कर दिया होता. दादी बनने की ख़बर पाकर तो वे ख़ुशी से बौरा ही जातीं और नंगे पांव ही बहू की बलाइयां लेने बेटे के साथ रवाना हो जाती.”
बाबूजी साथ तो नहीं आए, पर थोड़े दिनों बाद ही उनके आने की ख़बर ने मुझमें उम्मीद की किरण ज़रूर जगा दी थी. डैडीजी भी इन दिनों विदेश दौरे पर रहनेवाले थे. मैंने सोचा था उनके लौट आने तक या तो बाबूजी चले जाएंगे या तब तक मैं बाबूजी की ग़लतफ़हमी दूर कर दूंगा. उन्हें ग़लतफ़हमी है कि डैडीजी ने मुझे अपनी दौलत का लालच देकर घरजमाई बनने के लिए मजबूर किया. डैडीजी को ग़ुस्सा है कि शादी में शरीक न होकर उन्होंने डैडीजी की भद्द उड़वा दी और अब भी हमारे लाख मनाने पर भी अपनी ज़िद नहीं छोड़ रहे हैं.
यह भी पढ़ें: ख़ुशहाल ससुराल के लिए अपनाएं ये 19 हैप्पी टिप्स (19 Happy Tips For NewlyWeds)
फिर दोनों के रहन-सहन, आचार-व्यवहार में भी तो ज़मीन-आसमान का अंतर है. आज बाबूजी को तुम्हारे लिए लाए सामान घी, फल, मेवे आदि से लदा-फदा उतरता देख मैं ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था. पर अब… अब लगता है ये दो परिवार कभी एक नहीं होगें. देखी दोनों की अकड़! एक म्यान में भला ये दो तलवारें कैसे रह सकती हैं? पहली ही मुलाक़ात में दोनों एक-दूसरे से किस कदर कतरा रहे थे?” मैं चिंतित था.
“डैडी शायद आशंकित हैं कि वे उनसे उनका बेटे जैसा दामाद छीनने आए हैं.” पूजा ने अनुमान लगाया.
“पर बाबूजी तो खुलेआम कह रहे हैं कि उनसे उनका बेटा छीन लिया गया है.” मैंने तल्खी से कहा.
पूजा को लगा उन्हें लेकर कहीं हम दोनों आपस में न झगड़ पड़ें, इसलिए बातचीत को वहीं विराम लगा दिया गया. हम उनकी गतिविधियों पर नज़र रखे हुए थे. दोनों प्रत्यक्ष में एक-दूसरे से कुछ कहना टालते थे, पर बाबूजी की ग्रामीण वेषभूषा, खानपान और बोलचाल के देहाती लहजे के प्रति डैडीजी की आंखों में हिकारत के भाव स्पष्ट देखे जा सकते थे. वहीं बाबूजी के लिए डैडीजी की हर गतिविधि उपहास की चीज़ थी. वे उनका मखौल उड़ाने का कोई अवसर नहीं चूकते थे, बल्कि अपनी हरकतों से उन्हें खिझाने का प्रयास करते और काफ़ी हद तक इसमें कामयाब भी रहते, मसलन- सवेरे जब डैडीजी ट्रैकसूट में जिम में वर्कआउट करते, तो बाबूजी जान-बूझकर उसी वक़्त लंगोट बांधकर जिम से नज़र आनेवाली लॉन में दंड बैठक लगाते. डैडीजी जब भीगे बादाम खा रहे होते, वे उन्हें दिखा-दिखाकर गुड़-चने फांकते.
डाइनिंग टेबल पर डैडीजी कांटे छुरी से भी निःशब्द खाना खा लेते, पर बाबूजी चपर-चपर और सुड़-सुड़ की आवाज़ के बिना कौर या घूंट गले के नीचे नहीं उतारते और डकार लिए बिना तो उनका खाना ही हजम नहीं होता था. डैडीजी नौकरों से एक विशेष दूरी बनाए रखने के हिमायती थे. हम सभी उनकी इस हिदायत का बख़ूबी पालन करते थे. पर बाबूजी ने तो उनकी हिदायतों की धज्जियां उड़ाकर रख दी थीं. मौक़ा मिलते ही वे नौकरों से दोस्तों की तरह बतियाने लगते. उनके पारिवारिक उत्सवों में शरीक हो जाते. मैं और पूजा यह सोचकर लगभग नाउम्मीद हो चले थे कि कोई चमत्कार ही इन दो सिंहों को गले मिला सकता है.
यह भी पढ़ें: बेहतर रिश्ते के लिए पति-पत्नी जानें एक-दूसरे के ये 5 हेल्थ फैक्ट्स
एक दिन फ़ुर्सत के क्षणों में मूवी देखते पूजा अचानक ख़ुशी से उछल पड़ी.
अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES
डाउनलोड करें हमारा मोबाइल एप्लीकेशन https://merisaheli1.page.link/pb5Z और रु. 999 में हमारे सब्सक्रिप्शन प्लान का लाभ उठाएं व पाएं रु. 2600 का फ्री गिफ्ट.
“इस्ला! इस्ला का क्या अर्थ है?” इस प्रश्न के बाद मिवान ने सभी को अपनी…
"इस विषय में सच और मिथ्या के बीच एक झीनी दीवार है. इसे तुम…
“रहमत भाई, मैं स्त्री को डायन घोषित कर उसे अपमानित करने के इस प्राचीन…
प्यारे इसी जंगल के बारे में बताने लगा. बोला, “कहते हैं कि कुछ लोग…
नागाधिराज की अनुभवी आंखों ने भांप लिया था कि यह त्रुटि, त्रुटि न होकर…
‘‘आचार्य, मेरे कारण आप पर इतनी बड़ी विपत्ति आई है. मैं अपराधिन हूं आपकी.…