कहानी- अंबर की नीलिमा 2 (Story Series- Ambar Ki Neelima 2)

अचानक एक चट्टान पर नीलिमा का पैर फिसल गया. इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, वह गंगा की विकराल लहरों में जा गिरी.

नीलिमा को तैरना नहीं आता था. सभी मदद के लिए चीख रहे थे, किंतु गंगा के प्रचंड वेग के आगे बेबस थे. तभी राफ्टिंग करती अंबर की बोट उधर आ गई. अंबर ने तुरंत छलांग लगा दी. लहरों की विकरालता से लड़ता वह बहुत मुश्किलों से नीलिमा तक पहुंच पाया.

“अपने आपको संभालना सीखो, क्योंकि हर जगह तुम्हें संभालने के लिए मैं मौजूद नहीं रहूंगा.” बेहोश होने से पहले नीलिमा के कानों में अंबर के स्वर गूंजे.

इस दुर्घटना ने नीलिमा और अंबर की दोस्ती की एक नई दास्तान लिख दी थी. दोनों को अब एक-दूसरे को देखे बिना चैन नहीं मिलता था.

नीलिमा ने यह ख़बर सुनी थी, किंतु व्यस्तता के कारण वह उनके बारे में ज़्यादा जानकारी हासिल नहीं कर पाई थी.

वह एक घंटे में कुफरी पहुंच गई. स्कीइंग ग्राउंड पहुंचने पर पता लगा कि पलिया साहब प्रैक्टिस के लिए लास्ट कैंप तक गए हुए हैं. नीलिमा बस आगे बढ़ ही रही थी कि वहां के अनुपम सौंदर्य व नज़ारों को देखने के लिए कुछ पलों के लिए ठहर गई. वो जब भी यहां आती है, तो अक्सर यहां रुककर वादियों के अनुपम सौंदर्य को मन में उतारने के लिए कुछ पलों के लिए यहां ठहर जाती है. इसी बीच उस गुस्ताख़ ने उसका ध्यान भंग कर दिया था. ख़ैर, वह बेस कैंप तक पहुंची ही थी कि एक कार्यकर्ता ने आगे बढ़ते हुए कहा, “मैडम, बधाई हो. अब आपकी जीत पक्की हो गई है.”

“कैसे?”

“थोड़ी देर पहले पलिया साहब ने अपना नाम वापस ले लिया.”

“क्यों?”

“कारण तो नहीं बताया.”

“पलिया साहब कहां हैं?” नीलिमा ने हड़बड़ाते हुए पूछा.

“वे तो शिमला लौट गए.”

नीलिमा का संदेह अब कुछ और गहरा हो गया था. वह भी शिमला लौट पड़ी.  रिसेप्शन पर पहुंचते ही बोली, “पलिया साहब किस रूम में ठहरे हैं? ”

“वे तो चेक आउट करके थोड़ी देर पहले ही एयरपोर्ट के लिए निकले हैं.” रिसेप्शनिस्ट ने कहा.

“प्लीज़, आप ज़रा अपना लैपटॉप दे सकती हैं क्या?”

“सॉरी मैम, इसे हम किसी कस्टमर को नहीं दे सकते.”

“प्लीज़, यह किसी की ज़िंदगी का सवाल है.” नीलिमा की आवाज़ भर्रा उठी.

रिसेप्शनिस्ट ने नीलिमा के चेहरे के भावों को देखा, तो ना नहीं कर सकी. नीलिमा ने जल्दी से गूगल पर

ए. आर. पलिया टाइप किया. कई फाइलें सामने आ गईं. उसने विकीपीडिया को क्लिक कर दिया. अगले ही पल ए. आर. पलिया की फोटो के साथ-साथ उनका पूरा विवरण दिखने लगा.

पूरा नाम: अंबर राज ‘पलिया’

जन्म स्थान: पलिया,

ज़िला: लखीमपुर-खीरी, उत्तर प्रदेश.

शिक्षा: युवराज दत्त महाविद्यालय.

“वही है.” नीलिमा की आंखों से आंसू टपक पड़े और वह आंधी-तूफ़ान की तरह कार की ओर दौड़ पड़ी.

रीतिका सिन्हा उसी समय होटल में प्रवेश कर रही थी. नीलिमा को इस तरह भागते देख उन्होंने उसे आवाज़ भी दी, लेकिन नीलिमा ने जैसे सुना ही नहीं. थोड़ी ही देर पहले कुफरी के लास्ट-कैंप से ख़बर आई थी कि पलिया साहब ने वहां पहुंच प्रतियोगियों की लिस्ट देखी, फिर अचानक ही अपना नाम वापस ले लिया. यह ख़बर सुन रीतिका सिन्हा पहले से ही परेशान थी और उनसे मिलने ही होटल आई थी. यहां नीलिमा को इस तरह भागते देख उनका दिमाग़ चकरा गया था.

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उधर नीलिमा की कार तेज़ी से एयरपोर्ट की ओर जा रही थी, किंतु उसके अंतर्मन में अतीत के दृश्य उससे भी तेज़ी से चल रहे थे. क्लास वन से लेकर इंटर तक वह हर परीक्षा में प्रथम स्थान पाती रही थी. यह सिलसिला टूटा था बीएससी फर्स्ट ईयर के हाफ ईयरली एग्ज़ाम में. हाफ ईयरली में उस शहर में नए-नए आए अंबर ने उसे दूसरे स्थान पर धकेल दिया था. बुरी तरह चिढ़ गई थी वह अपनी इस पराजय से और हमेशा अंबर को अपमानित करने का अवसर ढूंढ़ती रहती. किंतु अंबर उसकी किसी भी बात का बुरा नहीं मानता था.

फाइनल एग्ज़ाम से पहले उनकी क्लास का टूर ॠषिकेश गया हुआ था. वहां छात्रों ने

वॉटर राफ्टिंग का प्रोग्राम बनाया. नीलिमा और कुछ अन्य लड़कियां राफ्टिंग पर नहीं गईं. वे सब गंगा के किनारे पथरीली चट्टानों पर घ्ाूमते हुए उसके तेज़ बहाव का आनंद ले रही थीं. अचानक एक चट्टान पर नीलिमा का पैर फिसल गया. इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, वह गंगा की विकराल लहरों में जा गिरी.

नीलिमा को तैरना नहीं आता था. सभी मदद के लिए चीख रहे थे, किंतु गंगा के प्रचंड वेग के आगे बेबस थे. तभी राफ्टिंग करती अंबर की बोट उधर आ गई. अंबर ने तुरंत छलांग लगा दी. लहरों की विकरालता से लड़ता वह बहुत मुश्किलों से नीलिमा तक पहुंच पाया.

“अपने आपको संभालना सीखो, क्योंकि हर जगह तुम्हें संभालने के लिए मैं मौजूद नहीं रहूंगा.” बेहोश होने से पहले नीलिमा के कानों में अंबर के स्वर गूंजे.

इस दुर्घटना ने नीलिमा और अंबर की दोस्ती की एक नई दास्तान लिख दी थी. दोनों को अब एक-दूसरे को देखे बिना चैन नहीं मिलता था.

फाइनल एग्ज़ाम में एक बार फिर अंबर प्रथम आया था. नीलिमा ने दिल खोलकर उसे बधाई दी थी. थर्ड ईयर में एनुअल फंक्शन होनेवाला था. पूरे कॉलेज में तैयारी चल रही थी. नीलिमा ऑडीटोरियम में प्रतिदिन बैले की प्रैक्टिस करती थी. कोरियोग्राफर के निर्देशों पर नीलिमा एक दिन ऑडीटोरियम में थिरक रही थी कि उसका पैर फिसल गया. इससे पहले कि वह गिरती, अपने प्ले की प्रैक्टिस कर रहे अंबर ने दौड़कर उसे अपनी बांहों में संभाल लिया था.

नीलिमा के कानों में एक बार फिर महदोश कर देनेवाले शब्द गूंजे, “अपने आपको संभालना सीखो, क्योंकि हर जगह तुम्हें संभालने के लिए मैं मौजूद नहीं रहूंगा.”  “नीलिमा को संभलने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि उसे मालूम है कि अंबर हर पल उसके साथ ही रहता है.” नीलिमा खिलखिलाकर हंस दी थी. अपनी बांहों में उसे संभाले अंबर एकटक उसके चेहरे को देखता रह गया था.

देखते ही देखते थर्ड ईयर के एग्ज़ाम क़रीब आ गए. नीलिमा के फिज़िक्स के नोट्स गुम हो गए थे. उसे परेशान देख अंबर नोट्स की फोटोकॉपी देने नीलिमा के घर पहुंचा. उसे अपने कमरे में बैठाने के बाद नीलिमा ने मम्मी के पास जाकर कहा, “ममा, जल्दी से चाय और कुछ स्नैक्स बना दो.”

“कौन है ये?”

“मॉम, ये अंबर, मेरा क्लासमेट.”

“तो यही है वो, जिसने तुम्हारी ज़िंदगी हराम कर रखी है.” मम्मी, अंबर का नाम सुनते ही उखड़ गईं.

“यह क्या कह रही हैं आप? वह मेरा बहुत अच्छा दोस्त है.” नीलिमा का स्वर आश्‍चर्य से भर उठा.

“बचपन से तू हमेशा फर्स्ट आती रही है, मगर इस दुष्ट ने तुझे दूसरे स्थान पर धकेल दिया है. पढ़ाई करते-करते मेरी फूल जैसी बेटी की आंखें सूज गईं, मगर इससे जीत न सकी. यह तेरा दोस्त नहीं, दुश्मन है.”

संजीव जायसवाल ‘संजय’

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कहानी- अंबर की नीलिमा 2 (Story Series- Ambar Ki Neelima 2) | Hindi Kahani
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अचानक एक चट्टान पर नीलिमा का पैर फिसल गया. इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, वह गंगा की विकराल लहरों में जा गिरी. नीलिमा को तैरना नहीं आता था. सभी मदद के लिए चीख रहे थे, किंतु गंगा के प्रचंड वेग के आगे बेबस थे. तभी राफ्टिंग करती अंबर की बोट उधर आ गई. अंबर ने तुरंत छलांग लगा दी. लहरों की विकरालता से लड़ता वह बहुत मुश्किलों से नीलिमा तक पहुंच पाया. “अपने आपको संभालना सीखो, क्योंकि हर जगह तुम्हें संभालने के लिए मैं मौजूद नहीं रहूंगा.” बेहोश होने से पहले नीलिमा के कानों में अंबर के स्वर गूंजे. इस दुर्घटना ने नीलिमा और अंबर की दोस्ती की एक नई दास्तान लिख दी थी. दोनों को अब एक-दूसरे को देखे बिना चैन नहीं मिलता था.
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