कहानी- अनमोल धरोहर 2 (Story Series- Anmol Dharohar 2)

आख़िर ब्याह का दिन भी आ पहुंचा. फेरों का समय हो गया था. रूपाली को तैयार करने के बाद सौम्या, माया आदि सभी तैयार होने लगीं. तभी सौवीर की मौसी की बेटी बिसुरती हुई वहां आई, “देखो न भाभी, मां मेरी फेरों के लिए लाई हुई साड़ी यहां लाना ही भूल गईं. अब मैं क्या पहनूं?”

“अरे लाडो, इसमें रोने की क्या बात है. लाओ, मैं तुम्हें अपनी एक साड़ी देती हूं.” कहकर सौम्या ने न स़िर्फ अपनी महंगी साड़ी निकालकर उसे पहनने को दे दी, वरन् साड़ी के मैचिंग की महंगी ज्वेलरी भी निकालकर दे दी. माया का दिल यह देखकर जल गया.

“अरे नहीं मां, कोई झंझट नहीं होगा. सौवीर के मम्मी-पापा आ जाएंगे और बुआ भी रूपाली को लेकर आ जाएंगी, फिर सब मिल-जुलकर सारा काम कर लेंगे. बड़ा मज़ा आएगा.” सौम्या ख़ुशी के रौ में बहती जा रही थी और माया अंदर ही अंदर तिलमिला रही थी.

जब सौम्या के सास-ससुर भी आ जाएंगे, तब सौम्या पर काम का बोझ बढ़ता ही जाएगा. फिर ब्याह के सारे रिश्तेदार. हे राम! सौम्या कैसे सारा काम संभाल पाएगी? क्या पागलपन कर बैठी यह लड़की? माया को तनाव हो गया, पर सौम्या अपनी धुन में ही मगन थी.

ब्याह को पंद्रह दिन रहते ही सौम्या के सास-ससुर आ गए. माया को वहां देखकर सौम्या की सास मिताली बहुत प्रसन्न हुईं.

“अरे वाह बहनजी! आपने बहुत अच्छा किया कि सौम्या की मदद के लिए यहां आ गईं. मैं तो परेशान थी कि यह अकेली है. जी छटपटा रहा था, पर क्या करूं, सौवीर के पापा को जल्दी छुट्टी नहीं मिली.” मिताली माया से बहुत अपनत्व भरे स्वर में बोली, तो माया को भी ऊपरी मन से प्रसन्नता दिखानी पड़ी.

“पापा रिटायर हो जाएं, फिर मैं आपकी एक नहीं सुनूंगी, तब आपको हमेशा के लिए यहीं आकर रहना होगा.” सौम्या लाड दिखाते हुए बोली, तो सौवीर के पिताजी ने हंसते हुए कहा, “हां बेटा, प्रॉमिस!” फिर मनीष को संबोधित करते हुए बोले, “भई आपकी बिटिया को पाकर तो हम निहाल हो गए. बहुत प्यारी और संस्कारी बेटी दी है आपने हमें.” मनीष ने यह सुनकर राहत की सांस ली और गर्व से सौम्या की ओर देखा, वहीं माया यह सुनकर परेशान हो उठी.

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दो दिनों बाद ही सौवीर की बुआ मालती भी रूपाली के साथ वहां आ गई. फिर तो सौम्या के घर में ब्याह की धूम ही मच गई. एक ओर जहां मालती ने रसोई संभाल ली, वहीं रूपाली व मिताली को लेकर सौम्या रोज़ बाज़ार का काम निबटा लेती. साड़ी, मैचिंग ज्वेलरी, सैंडल-चप्पलें आदि की शॉपिंग होती रही.

मालती के साथ माया पूरे समय रसोई में लगी रहती. मदद के उद्देश्य से नहीं, वरन् इस डर से कि कहीं वह सामान को इधर-उधर न कर दे. मालती बेचारी सीधी-सादी थी, वह माया की चालाकियों को समझ नहीं पा रही थी. माया को सौम्या पर क्रोध आता कि वह भंडार और अलमारियां यूं खुली छोड़ जाती है. उसमें ज़रा भी दुनियादारी की समझ नहीं है.

सौम्या का अति उत्साह देखकर माया ने उसे फिर एक-दो बार टोका, तो सौम्या ने संजीदगी से कहा, “मैं आपकी चिंता समझती हूं मां. अपनी बेटी की चिंता होना स्वाभाविक है, पर बुआ ने सौवीर की उनकी मां से बढ़कर देखभाल की है. उन पर उनका बहुत प्रेम है. आज सौवीर का फ़र्ज़ बनता है कि वो अपना कर्तव्य पूरा करें.”

सौम्या की बात ने माया को निरुत्तर कर दिया और फिर सौम्या की व्यस्तता ने मौक़ा भी नहीं दिया कि माया कुछ कह पाए.

मनीष और सौवीर के पिताजी रिसेप्शन, टेंटवाले, केटरर्स, शादी के कार्ड्स आदि के काम में लग गए. सबके साथ मनीष भी बहुत प्रसन्न लग रहे थे और दौड़-दौड़कर काम कर रहे थे.

धीरे-धीरे सौवीर के बाकी रिश्तेदार भी आ गए. रिश्तेदारों की चहल-पहल से घर भर गया. सबके चेहरे खिले हुए थे. एक माया ही थी, जिसका चेहरा दिन-ब-दिन उतरता जा रहा था.

आख़िर ब्याह का दिन भी आ पहुंचा. फेरों का समय हो गया था. रूपाली को तैयार करने के बाद सौम्या, माया आदि सभी तैयार होने लगीं. तभी सौवीर की मौसी की बेटी बिसुरती हुई वहां आई, “देखो न भाभी, मां मेरी फेरों के लिए लाई हुई साड़ी यहां लाना ही भूल गईं. अब मैं क्या पहनूं?”

“अरे लाडो, इसमें रोने की क्या बात है. लाओ, मैं तुम्हें अपनी एक साड़ी देती हूं.” कहकर सौम्या ने न स़िर्फ अपनी महंगी साड़ी निकालकर उसे पहनने को दे दी, वरन् साड़ी के मैचिंग की महंगी ज्वेलरी भी निकालकर दे दी. माया का दिल यह देखकर जल गया. वह कुछ कहने जा ही रही थी कि एक और घटना घट गई.

रूपाली की ससुरालवालों ने बुआ को नक़दी रुपए भेजे थे कि रूपाली अपने पसंद के गहने ग्वालियर में ही ख़रीद ले. बुआ बाकी गहने तो ले आई थीं, पर क़ीमती हार वे लॉकर में ही भूल गईं. अब उन्हें डर लग रहा था कि लड़केवाले हार के बारे में न जाने क्या सोचेंगे? ऐन फेरों के व़क़्त कहीं बारात में हलचल न मच जाए. बुआ एकदम रुआंसी हो गईं. मिताली भी परेशान हो गई कि अब फेरों के व़क़्त हार कहां से लाएं.

“अरे बुआजी, आप परेशान क्यों हो रही हैं? रूपाली के घरवालों ने आपका हार देखा तो नहीं है ना? बस, आप मेरा हार रूपाली को पहना दीजिए. फेरों के समय ऐसी बात निकालना ठीक नहीं है.” कहकर सौम्या ने लॉकर में से अपना क़ीमती हार निकाला और बुआ को थमा दिया.

डॉ. विनीता राहुरीक

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