”घरवालों के लिए मैं तुषार को भूल गई थी, मगर सच पूछिए तो एक पल के लिए भी मैं उसे नहीं भूली थी और कभी भूल भी नहीं सकती थी. मैं बस यह सोचती थी कि आख़िर सारी ज़िन्दगी उसके बिना कैसे कटेगी. कभी-कभी मन करता, आत्महत्या कर लूं, मगर तभी ख़याल आता कि मेरे बाद भैया-भाभी का क्या होगा? आप लोगों का भी ख़याल आता था. जब भारत आई थी तो कई बार आपके घर भी आई थी, मगर कभी दरवाज़े तक आने की हिम्मत नहीं हुई.”
तुषार का एक्सीडेंट हो गया. उसकी मौत ने मुझे पागल-सा बना दिया. मैंने किसी तरह अपना बचा हुआ दो महीने का कोर्स पूरा किया और फिर वहीं पर नौकरी कर ली. कुछ समझ में नहीं आ रहा था. ज़िन्दगी पूरी तरह बिखर गई थी. हर जगह मुझे तुषार ही नज़र आता था. उसकी यादों से भागने के लिए हॉस्पिटल में मैं अठारह-अठारह घण्टे की ड्यूटी करने लगी. छ: महीने बाद हॉस्पिटल में एक दिन बेहोश हो गई, तो मुझे एड्मिट कर दिया गया. भारत से भैया आ गए. उन्हें वहां हॉस्पिटल से ख़बर किया गया था. कई दिनों तक बेहोश रही. जब होश आया तो पता चला कि चिन्ता से बी.पी. लो हो गया था. ख़ून में हीमोग्लोबिन का स्तर बहुत ज़्यादा घट गया था. भइया मुझे ज़बरदस्ती भारत ले आए.
यहां आकर भैया-भाभी से मैं झूठ नहीं बोल पाई. उन्हें तुषार के बारे में बता दिया. भैया मेरा दुख देखकर दुखी रहने लगे. फिर धीरे-धीरे मैं नॉर्मल हो गई. मैं भैया को परेशान नहीं कर सकती, इसलिए हमेशा हंसती रहती थी. ऐसे ही छ: महीने बीत गए. मैं एकदम ठीक हो गई थी और ज़िद करके वापस अमेरिका आ गई थी. पूरे छ: महीने के बाद जब दोबारा अमेरिका पहुंची तो फिर तुषार हर जगह नज़र आने लगा. हर चीज़ से उसकी यादें जुड़ी थीं.
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घरवालों के लिए मैं तुषार को भूल गई थी, मगर सच पूछिए तो एक पल के लिए भी मैं उसे नहीं भूली थी और कभी भूल भी नहीं सकती थी. मैं बस यह सोचती थी कि आख़िर सारी ज़िन्दगी उसके बिना कैसे कटेगी. कभी-कभी मन करता, आत्महत्या कर लूं, मगर तभी ख़याल आता कि मेरे बाद भैया-भाभी का क्या होगा? आप लोगों का भी ख़याल आता था. जब भारत आई थी तो कई बार आपके घर भी आई थी, मगर कभी दरवाज़े तक आने की हिम्मत नहीं हुई.
एक दिन जब मैं अपने लेटर बॉक्स में लेटर देख रही थी, तो एक लिफ़ाफ़ा मिला, जिस पर तुषार का नाम था और केयर ऑफ़ में मेरा नाम था. अन्दर आकर जब मैंने उस लिफ़ा़फे को खोला तो लेटर स्पर्म बैंक का था.
उससे पता चला कि एक साल पहले तुषार ने अपने स्पर्म बैंक में फ्रीज कराए थे. उसने शायद मेरा भी पता दिया था, तभी उसके लेटर का जवाब न मिलने पर मेरे पते पर लेटर भेजा गया था. मेरी समझ में नहीं आया कि आख़िर तुषार को ऐसा करने की क्या ज़रूरत थी और उसने मुझे बताया भी नहीं.
– नीतू
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