कहानी- असंतुलित रथ की हमसफ़र 5 (Story Series- Asantulit Rath Ki Humsafar 5)

दीपा ने बहुत कोशिश की थी, लेकिन उसके स्वर में छुपे दर्द की आहट प्रखर भैया के कानों ने सुन ली थी. अगले ही पल उनका घबराया स्वर आया, ‘‘दीपा तुम ठीक तो हो न?’’

‘‘हां, भैया मैं बिल्कुल ठीक हूं…’’ दीपा अपनी सिसकियों को पीछे धकेलते हुए बोली.
‘‘अगर, ठीक हो तो वीडियो काॅल करो.’’ प्रखर भैया का मन शांत नहीं हो पा रहा था.
‘‘भैया, नेटवर्क ख़राब है. वीडियो काॅल नहीं हो सकती.’’ दीपा नहीं चाहती थी कि उसके दर्द की टीस भैया तक पहुंचे.
‘‘रवीश के फोन से वीडियो काॅल करो. सारे नेटवर्क एक साथ ख़राब नहीं हो सकते.’’ प्रखर भैया की आशंका बलवती होती जा रही थी.

 

… न जाने यह कैसी त्रासदी है कि प्यार कई बार अधिकार का रूप धर पूर्ण स्वामित्व की कामना करने लगता है. यहीं से प्रारम्भ होती है क्रूरता और दमन की दास्तान, जो नित नए भेष धर स्त्री की नियति को लिखना अपना अधिकार समझ लेती है. कुछ ऐसा ही प्रारब्ध था रवीश और दीपा के प्यार का.
मई की गर्मी शुरू हो चुकी थी. दीपा घर के लिए नए पर्दे लेने एक शोरूम गई थी. वहीं रवीश के सहकर्मी प्रोफेसर नवल मिल गए. उन्होंने दीपा के साथ भारी-भरकम थैलों को देखा, तो अपनी कार से घर छोड़ देने के लिए कहा. तपती दोपहरी में रिक्शा मिल पाना मुश्किल था, इसलिए दीपा उनकी कार में बैठ गई. रवीश ने जब उसे प्रोफेसर नवल की कार से उतरते देखा, तो बुरी तरह भड़क गया.
‘‘तुम तो ऐसा चीख-चिल्ला रहे हो, जैसे मैं नवलजी की कार में लिफ्ट लेकर नहीं, बल्कि मुंह काला करके आ रही हूं.” उस दिन पहली बार दीपा ने टोक दिया.
‘तड़ाक’ एक झन्नाटेदार थप्पड़ गाल पर पड़ा. हतप्रभ दीपा संभल भी नहीं पाई थी कि रवीश पागलों की तरह उस झकझोरते हुए चिल्लाया, ‘‘दोबारा ऐसी बात सपने में भी ज़ुबान पर मत लाना, वरना मुझसे बुरा कोई न होगा.’’
अपने अंदर का विष उगल रवीश ने दीपा को छोड़ दिया. किंतु श्रीहीन हो चुकी दीपा का शरीर अपने को संभाल न सका और लहराता हुआ नीचे गिर पड़ा. इसी के साथ उसका माथा समीप रखी मेज से टकराया और ख़ून की धार बह निकली.
संयोग से उसी समय प्रखर भैया का फोन आ गया. दीपा ने पहले काॅल नहीं उठाई, किंतु जब दोबारा काॅल आई, तो अपने को संभालते हुए उसने कहा, ‘‘हैलो… ’’
दीपा ने बहुत कोशिश की थी, लेकिन उसके स्वर में छुपे दर्द की आहट प्रखर भैया के कानों ने सुन ली थी. अगले ही पल उनका घबराया स्वर आया, ‘‘दीपा तुम ठीक तो हो न?’’
‘‘हां, भैया मैं बिल्कुल ठीक हूं…’’ दीपा अपनी सिसकियों को पीछे धकेलते हुए बोली.
‘‘अगर, ठीक हो तो वीडियो काॅल करो.’’ प्रखर भैया का मन शांत नहीं हो पा रहा था.
‘‘भैया, नेटवर्क ख़राब है. वीडियो काॅल नहीं हो सकती.’’ दीपा नहीं चाहती थी कि उसके दर्द की टीस भैया तक पहुंचे.
‘‘रवीश के फोन से वीडियो काॅल करो. सारे नेटवर्क एक साथ ख़राब नहीं हो सकते.’’ प्रखर भैया की आशंका बलवती होती जा रही थी.

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भैया ने बहुत कोशिश की, लेकिन दीपा ने वीडियो काॅल नहीं की. जानती थी कि वे अपनी बहन के शरीर से बहता हुआ रक्त का एक कतरा भी नहीं देख सकते.
फिर वही हुआ जिसका दीपा को डर था. अगली सुबह ही प्रखर भैया आ पहुंचे. बहन के सिर पर बंधी पट्टी और उसका कारण समझ उनका ख़ून खौल उठा. अपने जज़्बातों को काबू कर उन्होंने रवीश को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन उसे अपनी ग़लती समझ में ही नहीं आ रही थी. हर बात का उसके पास एक ही जवाब था कि दीपा उसकी है और उसे केवल उसकी ही बन कर रहना होगा. वह और कोई तर्क मानने को तैयार ही न था.
‘‘दीपा, घर चल. मैं तुझे ऐसे इंसान के पास नहीं छोड़ सकता.’’ प्रखर भैया ने उसी दिन निर्णय ले लिया.
‘‘भैया, रवीश मुझसे बेइंतिहा प्यार करता है, इसीलिए ऐसा कह रहा है.’’ दीपा ने तिनके का सहारा लेने की कोशिश की.
“यह प्यार नहीं वहशीपन है. आज इसने तेरा सिर फोड़ा है, कल कुछ और कर सकता है. तेरा इसके साथ रहना ख़तरे से खाली नहीं है.’’ प्रखर भैया अपने निर्णय पर अडिग थे.

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…


संजीव जायसवाल ‘संजय’

 

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Usha Gupta

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