कहानी- भीगा भीगा सा रिश्ता 1 (Story Series- Bhiga Bhiga Sa Rishta 1)

“अच्छा बाबा प्रॉमिस! अब फोन रख! मेरी क्लीनिक का टाइम हो गया है. तू फ्री होगी. मेरे पास इतना बतियाने का टाइम नहीं है.”

“किसने कहा कि मैं फ्री हूं? इस वर्क फ्रॉम होम ने तो पहले से ज़्यादा बिज़ी कर दिया है. मीटिंग पर मीटिंग, कॉल पर कॉल!” बड़बड़ाती विनी ने फोन बंद कर दिया, तो माधुरीजी के चेहरे पर स्मित मुस्कान बिखर गई.

 

 

 

“ममा, मैंने तो आंटी को सॉरी मतलब मेरी सास को मम्मी और अंकल यानी ससुरजी को पापा कहना शुरू कर दिया है.. कब से कह रहे थे वे लोग इस सब के लिए, बल्कि अब तो नाराज़ भी होने लगे थे.”
“हां तो ठीक किया न.”
“पर अवि ने तो आपको अभी तक मम्मा कहना शुरू नहीं किया?”
“आंटी कहना तो बंद कर दिया है न! जब दिल से मां मानने लगेगा, तो मम्मा कहना भी शुरू कर देगा. वैसे भी बोलने में क्या रखा है? एक अच्छा रिश्ता हमेशा हवा की तरह होना चाहिए. ख़ामोश, मगर हमेशा आसपास.”
“मैं बोलूं उनसे?”
“बिल्कुल नहीं. दिल के दरवाज़े अंदर से खुलते हैं, बाहर से नहीं. जबरन थोपा गया मातृत्व मुझे आत्मसंतुष्टि नहीं दे पाएगा. बेटी, रिश्ते सूरजमुखी के फूलों की तरह होते हैं, जिधर प्यार मिल जाए, उधर ही घूम जाते हैं.”
“पर आप तो अवि को शुरू से ही बेटा कहती आ रही हैं.”
“जब मेरी बेटी ने उसे पसंद कर लिया, तो वह मेरा भी आत्मीय हो गया. वैसे भी किसी को बेटा, बेटी, चाचा, मामी, अंकल, आंटी का दर्जा देना आसान है. हम अपने पड़ोसियों, रिश्तेदारों से वार्तालाप में यही सब संबोधन तो प्रयुक्त करते हैं. पर किसी को मां-बाप का दर्जा देना बहुत महत्वपूर्ण और मुश्किल बात होती है. बेटी, ज़िंदगी में बहुत-सी चीज़ों को समझने के लिए दृष्टि से ज़्यादा दृष्टिकोण की ज़रूरत होती है. अधिकांश नए जोड़ों को इस समस्या से दो-चार होना ही पड़ता है.”
“हमेशा की तरह अपने तर्कों से आपने आज फिर मेरा मुंह बंद करा दिया है. कभी-कभी आप मुझे डॉक्टर से ज़्यादा वकील लगने लगती हैं.”

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“अच्छा, और मां कब लगती हूं?”
“चौबीसों घंटे! होश संभालने के बाद से आप में ही तो मां और पापा दोनों को देखा है. गुल्लक-सी है मेरी मां! जैसे गुल्लक पैसों को संभालती है, आपने मेरी ख़ुशियों को संभाला है. क्या मैं जानती नहीं कि मेरी ही वजह से आपने दूसरी शादी नहीं की? वरना पापा गए तब आपकी उम्र ही क्या थी!”
“यह तू सुबह-सुबह क्या अतीत के पन्ने पलटने लगी?मिस विनी, अब आप मिसेज विनीता दीक्षित बन गई हैं. एक भरी-पूरी गृहस्थिन! अपनी नई ज़िम्मेदारियां संभालिए!” माधुरी ने प्यार से बेटी को फोन पर झिड़का, तो वह सचमुच गंभीर और नाराज़ हो गई.
“और पुरानी ज़िम्मेदारियों, अधिकारों से नाता तोड़ लूं? बिल्कुल नहीं मम्मा. हम अब भी उतने ही अधिकार और आत्मीयता से दिन में तीन-चार बार फोन पर बात करेंगे जैसे पहले करते थे. अपने सुख और दुख, एक-दूसरे से अपनी अपेक्षाएं पहले की ही तरह सबसे पहले एक-दूसरे से शेयर करेंगे. प्रॉमिस?”
“अच्छा बाबा प्रॉमिस! अब फोन रख! मेरी क्लीनिक का टाइम हो गया है. तू फ्री होगी. मेरे पास इतना बतियाने का टाइम नहीं है.”
“किसने कहा कि मैं फ्री हूं? इस वर्क फ्रॉम होम ने तो पहले से ज़्यादा बिज़ी कर दिया है. मीटिंग पर मीटिंग, कॉल पर कॉल!” बड़बड़ाती विनी ने फोन बंद कर दिया, तो माधुरीजी के चेहरे पर स्मित मुस्कान बिखर गई. बेटी पर ढेर सारा लाड़ उमड़ आया. शादी हो गई है, पर फिर भी निरी बच्ची ही है.

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…

 

 

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Usha Gupta

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