… माधुरीजी का मन तो कर रहा था एक बार फिर से अतीत के गलियारे में पहुंचकर विनी के बचपन और अपने सुखद किन्तु अल्प वैवाहिक जीवन की स्मृतियों में विचरण करने लगे. किंतु बाहर बढ़ती मरीज़ों की कतार ने उन्हें मास्क पहनकर क्लीनिक रूम में घुसने को विवश कर दिया.
कोरोना संक्रमण वैसे तो काफ़ी मंदा पड़ चुका था, किंतु डॉक्टर होने के नाते माधुरीजी न केवल स्वयं पूरी एहतियात बरत रही थीं, वरन आगंतुक प्रत्येक मरीज़ से भी इसके लिए आवश्यक समझाइश कर रही थीं. उम्रदराज़ होने के साथ-साथ मेडिकल फ्रेटरनिटी में उनकी प्रतिष्ठा और साख उत्तरोतर बढ़ती ही जा रही थी. किशोर बेटी विनीता ने जब मम्मी-पापा के चिकित्सकीय पेशे से इतर इंजीनियरिंग में जाने की इच्छा व्यक्त की थी, तो माधुरीजी चौंकी अवश्य थीं, किंतु प्रगतिशील सोच होने के कारण उन्होंने बेटी की इस रुचि का तहेदिल से स्वागत किया था. ठीक वैसे ही जैसे आगे चलकर उसकी पसंद विजातीय अवि को भी सहर्ष अपना दामाद बना लिया था.
विनीता का स्थानीय आईआईटी में एडमिशन हो जाने के कारण मां-बेटी का साथ कुछ साल और बना रहा था. लेकिन मुंबई स्थित एमएनसी में अच्छी जॉब मिल जाने पर अंततः माधुरीजी को बेटी को विदा करना ही पड़ा था.
कोसों की शारीरिक दूरी भी मां-बेटी के दिलों में दूरियां नहीं ला पाई थीं. दिन में जब तक तीन-चार बार फोन पर दोनों की बातचीत नहीं हो जाती थी, तब तक उन्हें चैन नहीं पड़ता था. ऐसे अवसरों पर वे मां-बेटी कम, सहेलियां ज़्यादा बन जाती थीं. विनी अवि से आरंभिक टकराहट, उसके प्रति झुकाव की बात लजाते हुए स्वीकारती, तो माधुरीजी भी कुछ मरीज़ों द्वारा उन्हें रिझाने के प्रयासों को हंसते हुए शेयर करतीं.
“आप अब तो किसी का हाथ थाम लीजिए मम्मा! अब तो आप मेरी ज़िम्मेदारियों से मुक्त हो चुकी हैं.” विनी गंभीर होकर आग्रह करती, तो माधुरीजी भड़क जातीं.
“तेरी शादी कौन करवाएगा? डिलीवरी कौन करवाएगा? और बच्चे पालेगा कौन? बहुत ज़्यादा बड़ी हो गई है क्या तू?” फिर थोड़ा सहज होकर समझाने लगतीं.
“बेटी, पुनर्विवाह ग़लत नहीं है, पर मुझे करना होता, तो बहुत पहले कर चुकी होती. मेरा प्रोफेशन ही अब मेरा प्यार है. और मैं उसके साथ बहुत ख़ुश हूं. इस तरह की बातें कर मेरा दिल मत दुखाया कर, वरना मैं आगे से कुछ शेयर नहीं करूंगी.”
“सॉरी ममा! पर वादा करो मुझसे हर छोटी से छोटी बात शेयर करोगी.”
मां-बेटी का शेयर और केयर का यह सिलसिला विनीता की शादी के बाद भी आज भी ऐसे ही अक्षुण्ण बना हुआ है. इसलिए जब माधुरीजी को अपने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के प्रेसिडेंट मनोनीत किए जाने की ख़बर मिली, तो सबसे पहले उन्होंने विनी को कॉल लगाया. दो-तीन बार लगाने के बाद भी फोन रिसीव नहीं हुआ, तो वे झुंझला उठीं.
‘अजीब प्रॉमिसेज़ में बांध रखा है इस लड़की ने! ख़ुद मीटिंग में बिज़ी है. फोन रिसीव नहीं कर पा रही है और मेरी मजबूरी है कि उसे सबसे पहले बताए बिना किसी से शेयर भी नहीं कर सकती. फोन उठा विनी, मैं अपने साथी डॉक्टर्स को बताने के लिए उतावली हो रही हूं.’ इस बार फोन रिसीव हो गया.
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