कहानी- कॉकटेल बनाम मॉकटेल 3 (Story Series- Cocktail Banam Mocktail 3)

जीजाजी भी ऐसे जता रहे हैं मानो विदेश में सुख-सुविधापूर्ण घर में रहने का प्रबंध कर दीदी पर कोई एहसान लाद रहे हैं? पेट भरने और लजीज़ खाना खाकर तृप्त होने में फ़र्क़ तो ये मर्द बख़ूबी समझते हैं. लेकिन ज़िंदगी काटने ओैर ज़िंदादिली से ज़िंदगी जीने में फ़र्क़ समझते हुए भी नहीं समझना चाहते.

… ‘तनु दीदी ने जीजाजी को बख़ूबी समझा है. तभी तो उन्हें कोई हैरत नहीं हो रही है. वे यह भी समझती हैं कि उनकी पसंद के अनुसार ख़ुद को ढाल लेने में ही समझदारी है, वरना व्यर्थ ही सबके सामने तमाशा खड़ा हो जाएगा. इतने समय तक भाई पर बोझ बनी रहीं (हालांकि हमने कभी ऐसा नहीं समझा) अब हंसी-ख़ुशी विदाई में ही सबका हित है. जो होगा, वहां पहुंचकर देखा जाएगा.’ दीदी की समझदारीभरी सोच की बात सोचकर ही नंदिनी का मन एक बार फिर विरह की वेदना से व्याकुल हो उठा.
फिर उसकी नज़रें एक के बाद एक परांठे उड़ाते अपने पति मयंक पर ठहर गई. व्याकुलता का आवेग थमने लगा और कहीं जमा आक्रोश का लावा पिघलने लगा.
‘कैसे भाई हैं ये? अपनी छोटी बहन का दुख भी नहीं समझते? या समझकर भी अनजान बने रहते हैं? बस, बहन सकुशल पति के घर चली जाए, उसकी गृहस्थी बनी रहे… सिर्फ़ इतना सोचकर ये पुरुष कैसे संतुष्ट रह पाते हैं? जीजाजी भी ऐसे जता रहे हैं मानो विदेश में सुख-सुविधापूर्ण घर में रहने का प्रबंध कर दीदी पर कोई एहसान लाद रहे हैं? पेट भरने और लजीज़ खाना खाकर तृप्त होने में फ़र्क़ तो ये मर्द बख़ूबी समझते हैं. लेकिन ज़िंदगी काटने ओैर ज़िंदादिली से ज़िंदगी जीने में फ़र्क़ समझते हुए भी नहीं समझना चाहते.’

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जीजाजी और उनके दोस्त जल्दी-जल्दी नाश्ता समाप्त करके उठे, तो नंदिनी की विचार श्रृंखला भंग हुई. दोस्त को घर जाने की जल्दी थी. जीजाजी ने उन्हें छोड़ने का जिम्मा लिया. पत्नी तनु को उदास कांटे से खेलते देख वे बोल उठे, “यह देखो मायका छूटने के ग़म में अभी से खाना-पीना छूट रहा है. यू नो मयंक, अपनी इसी भावुकता की वजह से इंडियन्स आगे नहीं बढ़ पाते. एनी वे… हम चलते हैं.” मयंक उन्हें बाहर तक विदा करने चले गए.
नंदिनी ने देखा तनु दीदी वाक़ई जाने किन विचारों में खोई अभी भी कांटे से खेल रही थीं. प्लेट का नाश्ता ज्यों का त्यों रखा था. उसने चुपके से वह प्लेट हटाकर उनके आगे दूसरी प्लेट में एक परांठा रख दिया.
“खाओ दीदी, परांठा ठंडा हो रहा है.”
“हं…” तनु गहरी निद्रा से यकायक लौट आई.
“व… वो प्लेट…” वह अचकचा गई थी.
“उसे रहने दो.” इतना मात्र कहकर नंदिनी अपना परांठा समाप्त करने में जुट गई. आगे कुछ कहने की किसी ने ज़रूरत नहीं समझी. तनु जान गई कि भाभी यह कहना चाहती हैं कि यहां हो, तब तक तो चार दिन मन का खा-पहन लो…

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…

 


संगीता माथुर

 

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Usha Gupta

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