कहानी- डील 5 (Story Series- Deal…..)

 

‘‘मम्मी, स्मार्ट लड़की है, इंडिपेंडेट है, कैसे एडजस्ट करना है वह भी बख़ूबी जानती है.’’ तब उसने घरवालों को मना लिया था. पर इस बार मनाना मुश्किल होगा. सच ही कहा था शिखा ने… किसी भी डील में सब कुछ नहीं मिलता. शिखा में लाख ख़ूबियां हों, पर उसका यह निर्णय… राहुल को लगा कि इस डील में केवल नुक़सान ही नुक़सान है.

 

 

 

 

… शिखा की ओर उसने एक नज़र डाली. कोई तनाव नहीं था, कोई उलझन नहीं थी. अपने को लेकर उसका आत्मविश्वास, निर्णय लेने की उसकी क्षमता ने राहुल को हमेशा ही प्रभावित किया है. उसे बहुत समय लगता है. कोई निर्णय लेना हो, तो वह गोल-गोल चक्कर काटता है और एक बड़ा-सा वृत बना लेता है, फिर उस घेरे में से निकलने की कोशिशें चलती रहती हैं. थक-हार कर उसे किसी की मदद लेनी पड़ती है. ज़्यादातर मम्मी की राय पर चलता है, पर जब से शिखा मिली है, वह उसे दुविधाओं में से निकालने में मदद करने लगी है. इस बार तो उसने ही दुविधा में फंसा दिया है. वैसे ही घर पर कितनी मुश्किल से मनाया था शादी के लिए.

 

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वह उसे इस बारे में दुबारा सोचने के लिए कहे क्या… न… वह अपने निर्णय नहीं बदलेगी और उसने कहा तो कभी लगा तो प्लान कर लेंगे. लेकिन कब? मम्मी तो शादी के एक साल बीतते-बीतते हल्ला मचा देंगी कि बच्चा आना चाहिए. अगर उनसे यह बात छुपाकर रखता है, तो उनकी भावनाओं को छलना होगा और अगर शिखा की बात से सहमति जताता है, तो मन से इस बात को स्वीकार न करने की पीड़ा में ख़ुद को छलनी करता रहेगा और एक तरह से वह भी शिखा को छलना ही होगा.
शिखा पार्किंग की ओर बढ़ने लगी. दोनों की कार साथ-साथ ही खड़ी थीं. हमेशा की तरह दोनों एक-दूसरे के गले लगे और निकल गए अपने-अपने रास्तों पर. दोनों के घर एकदम विपरीत दिशाओं में थे… राहुल साउथ दिल्ली के एक पॉश इलाके में रहता था और शिखा नॉर्थ दिल्ली में सोसाइटी फ्लैट्स में. कार चलाते हुए भी राहुल लगातार सोच रहा था. बेशक उसका परिवार आधुनिक है, सब पढ़े-लिखे हैं, पैसा भी ख़ूब है, लेकिन पंजाबी कल्चर उनकी सोच में वैसे ही मिला हुआ है जैसे सब्ज़ी में नमक का मिल जाना… निकालना एकदम असंभव है.
शिखा पंजाबी नहीं है, यह सुनकर मम्मी-पापा दोनों ने एक साथ ही इस रिश्ते के लिए न कर दी थी.
‘‘देख बेटा, बेशक ज़माना बदल गया है और यह भी सच है कि जाति, धर्म, रंग-रूप, गुण, पैसा, कुछ भी देखकर प्यार नहीं होता और हम इतनी पुरानी सोचवाले भी नहीं हैं कि इन बातों को तूल दें, लेकिन हर किसी का अपना एक कल्चर होता है. ब्राह्मण लड़की, चाहे वह नौकरीपेशा है, आधुनिक ख़्यालों की है और आत्मनिर्भर भी, हमारे घर आकर क्या नॉनवेज खा पाएगी? हमारी तरह बिंदास होकर रह पाएगी? उसे हमारा कल्चर शोर-शराबे और फूहड़ता से कम नहीं लगेगा.’’ मम्मी ने उसे बहुत तरीक़े से समझाया था.
‘‘मम्मी, स्मार्ट लड़की है, इंडिपेंडेट है, कैसे एडजस्ट करना है वह भी बख़ूबी जानती है.’’ तब उसने घरवालों को मना लिया था. पर इस बार मनाना मुश्किल होगा.

 

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सच ही कहा था शिखा ने… किसी भी डील में सब कुछ नहीं मिलता. शिखा में लाख ख़ूबियां हों, पर उसका यह निर्णय… राहुल को लगा कि इस डील में केवल नुक़सान ही नुक़सान है. प्यार, शादी…क्या शर्तों में बंध कर की जा सकती है. फिर तो केवल घुटन ही बचेगी, एक तरह की बाध्यता साथ निभाने की. उसे लगा यह डील कैंसिल करना ही ठीक रहेगा… अच्छा महसूस किया उसने अपने वृत्त से बाहर निकल कर.

सुमन बाजपेयी

 

 

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